Tuesday, 26 September 2023

अभियंता की डायरी : सारथी की यात्रा

मई 1998

बतौर कार्यपालक अभियन्ता गोदाम का दायित्व भार संभालते हुए ही बात समझ में आ गयी थी कि छोटी मछली को लील लेने के लिए व्हेल के संग अजगर मौजूद है। किसी कम्पनी को काली सूची में डलवाने में प्राण खतरे में आ जाना स्वाभाविक था।

जुलाई 2013

ईमानदारी का सूरज भभक गया। दो-चार नहीं, पाँच-छ वरिष्ठ अभियंताओं को दरकिनार कर मुझे पदोन्नति देकर मुख्य कार्य भार दिया गया। जाति विशेष से आक्रांत क्षेत्र को सुरक्षित करने में प्राण जोखिम में पड़ना ही था। इस सरकारी जिम्मेदारी के कारण एक राष्ट्रीय संगठन-बहु-विषयक पेशेवर निकाय के सर्वोच्च पद के लिए पंजीयन नहीं करवा रहा हूँ।

अगस्त 2015

तीन सौ करोड़ में से चुनाव लड़ रहे नेताओं को सौ करोड़ का हिस्सा चाहिए था जो मेरे रहते सम्भव नहीं था तो रातोरात मेरा तबादला पूर्व पद से भी नीचे कर दिया गया। और इस तनाव का असर मुझे मेरे मस्तिष्क आघात के रूप में मिला। एक बार नहीं दो बार।

जुलाई 2017

राम-राम करते मेरी सरकारी नौकरी से बा-ईज्जत सेवानिवृत होकर प्राण सस्ते में सांसत से भी स्वतंत्र हो गया। अब पूरा समय राष्ट्रीय संगठन को दे पाऊँगा। कई बार प्रांत शाखा के उच्च पद हेतु अधिक मत से चयनित हूँ।

जून 2022

सभी ज़िद कर रहे हैं, राष्ट्रीय संगठन के सर्वोच्च पद के लिए चुनाव लड़ लूँ! लेकिन मैं जानता हूँ कि संगठन में हो चुके लगभग पैतीस-चालीस करोड़ के घपले का निपटारा मुझसे नहीं हो सकेगा। रेल के वातानुकूलित कुप्पे में चलना जब जेब को भारी लगे, हवा में उड़ने के सपने देखना मूर्खता है।

सितम्बर 2023

राष्ट्रीय संगठन की प्रान्त शाखा के उच्च पद {लगभग चौदह साल (कोरोना की वजह से अतिरिक्त साल का मौका मिल जाने की वजह से ) के बाद} से मुक्त हो गया। अब राष्ट्रीय संगठन के युवा सदस्यों को योद्धा बनाने में ज्यादा समय लगाऊँगा।

2 comments:

  1. "ईमानदारी का सूरज भभक गया।"
    वाकई जिन्दगी निकल जाती है ये समझने के लिए कि ईमानदारी श्राप या अभिशाप से कम नहीं होती है और जब कोई सामने वाला कहता है आप ईमानदार हैं तो लगता है गाली दे रहा है |

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