Wednesday, 23 April 2025

टाइम कैप्सूल

“बड़े मामा! बड़े मामा! बुआ नानी बता रही थीं कि मझले नाना कुँआ में घुसकर नहाते थे! इस कुँआ को देखकर तो ऐसा नहीं लगता इसमें कभी पानी भी रहा होगा…!”

“तुम्हारी बुआ नानी बिलकुल सही कह रही थीं। उनके पास बढ़ते उम्र के खजाने में वर्षों का अनुभव संजोया हुआ है…। पापा और मझले चाचा का कुँआ के अन्दर जाकर नहाने-झगड़ा करने का किस्सा प्रसिद्ध है। जब तक चापाकल नहीं आया था तब तक कुँआ का ही पानी भोजन बनाने और पीने में प्रयोग होता था।”

“चापाकल की तस्वीर माँ ने दिखलायी! नहाने के दौरान मझले नाना की मौत जिस नहर में डूब कर हुई उसे देखकर अब कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि उसमें कभी पानी रहा होगा. . .!”

“मेरी नानी की माँ एक बोली की ज्ञाता थीं! उस बोली को संरक्षित नहीं किए जाने से उनके साथ उनकी बोली लुप्त हो गई…! एक दिन ऐसा न हो कि धरती से पानी भी लुप्त हो जाये. . .! और जलरोधक पात्र में जल भरकर जमीन में दबाना पड़ जाए. . .!”

“नहीं! नहीं! ऐसा नहीं होगा बड़े मामा. . .! आप ही तो अक्सर कहते हैं, ‘जब जागो तभी सवेरा’! कोशिश करते हैं अभी से जागने-जगाने हेतु. . .!”

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पुनः वे जागे

दोपहरी की रात

पूर्ण ग्रहण

Wednesday, 2 April 2025


“नगर के कोलाहल से दूर-बहुत दूर आकर, आपको कैसा लग रहा है?”

“उन्नत पहाड़, चहुँओर फैली हरियाली, स्वच्छ हवा, उदासी, ऊब को छीजने के प्रयास में है। अच्छा लगना स्वाभाविक है!”

“यहाँ होने वाले, दो दिवसीय विधा-विशेष पर आधारित आयोजन में क्या आप भी सम्मानित होने के होड़ में हैं?”

“साहित्य की अध्येता हूँ…! मेरे लिए विधा विशेष पर लेखन भी कठिन है! यह बात आयोजक को भी पता है। इसलिए मुझे क्यों सम्मान मिलेगा. . .! मेरे आने का उद्देश्य सिर्फ सीखना है और मुख्य बात जो सीख मिली साहित्य साथ खड़ा होना सिखलाता है!”

तभी मंच संचालक उत्तर देने वाली का नाम पुकारती है और उसे सम्मानित करने के लिए मंचासीन अतिथियों से सादर अनुरोध करती है! संयोजक बेहद भावुक होकर सम्मानित करते हैं। मंच से अलग हटते ही पुनः अपनी उत्सुकता प्रकट करती है पत्रकार 

“वैसे तो आपको सम्मानित करने वाले भी गौरवान्वित होंगे। जो सम्मान भाभी माँ(माँमीरा) के हाथों मिलना था : वही माँमीरा सम्मान पाना : कैसी अनुभूति रही?

“कैसे कोई शब्दों में व्यक्त करे—!”

साहित्य साथ खड़ा होना सिखलाता है— लेकिन शायद कुछ लोगों को आपका सम्मान होना समयोचित नहीं लगा हो : आपका क्या विचार है?”

“मुख्य आयोजक की यह इच्छा सन् 2018 से थी : अनेक कार्यक्रमों में मेरी अनुपस्थिति होने के कारण यह अभी तक 2025 में हो सका। वक्त जब समय तय कर दे-। बुरा लगना -अच्छा लगना अपने मन के भाव है।”

“क्या आपको भी ऐसा लगता है कि यह संस्था महिलाओं के लिए है?”

“जैसे हमारी संस्था को आगन्तुक अतिथि कहते हैं, ‘महिलाओं की संस्था है?’ कोई भी संस्था सृजकों की, रचनाकारों की, साहित्यकारों, इन्सानों, मनुष्यों की होती है. . .! कुंठित मानसिकता लिंग भेद पर विचार व्यक्त करते हैं. . .!

: क्षणभंगुर जीवन : बुलबुले सा : मोह में फँसें मानव. . .! बस! पाने की चाहत है : देने की होड़ हो तो कुछ कमाया जा सके, जिसे छोड़ कर जाने में आनन्द आए. . .!” 







सहानुभूति के ओट में राजनीति

“दीदी अगर डाँटो नहीं तो एक बात कहूँ…” रात के ग्यारह बजे राजू ने कहा। “डाँटने वाली बात होगी तो नहीं डाँटने की बात कैसे कह दूँ? तुमसे डरने लगू...