कभी-कभी सच्चाई की तलाश में भी कोई बात फिसल ही जाती है ....
किसी दुसरे इंसान पर भरोसा करके , गलती इंसान से हो ही जाती है ......... ....
भरोसा वो काठ की हांडी जो चूल्हे पर दोबारा ना चढ़ती है ....
गलती मुझसे भी हुई है , जो मेरी गुनाह बन गई ....
शर्मिन्दा हूँ , यकीं ना दिला पाई , जब ख़ुद मुझे यकीं नहीं ....
ख्याल था हाथी पचा जाने का , वहाँ चना हज़म नहीं हुई ....
उन्हें मुझ पर यकीं नहीं , मुझे इस जमाने पर भरोसा नहीं ....
"बात तब तक अपनी है, जब तक अपने पास है" सहमत हूँ आप से ............
समय सीखा ही देता है ........ !!
किसी दुसरे इंसान पर भरोसा करके , गलती इंसान से हो ही जाती है ......... ....
भरोसा वो काठ की हांडी जो चूल्हे पर दोबारा ना चढ़ती है ....
गलती मुझसे भी हुई है , जो मेरी गुनाह बन गई ....
शर्मिन्दा हूँ , यकीं ना दिला पाई , जब ख़ुद मुझे यकीं नहीं ....
ख्याल था हाथी पचा जाने का , वहाँ चना हज़म नहीं हुई ....
उन्हें मुझ पर यकीं नहीं , मुझे इस जमाने पर भरोसा नहीं ....
"बात तब तक अपनी है, जब तक अपने पास है" सहमत हूँ आप से ............
समय सीखा ही देता है ........ !!
बहुत बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
बिल्कुल सच...सुन्दर
ReplyDeleteहम्म्म ...होता तो है ऐसा , मगर किसी से भी कहे बिना रहे कैसे !
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,
ReplyDeleterecent post: वजूद,
सच कहा.. बहुत बढ़िया
ReplyDeletegalti mujhse bhi huyi
ReplyDeletejo mera gunah ban gayi..
bahut khoob..
http://ehsaasmere.blogspot.in/
बहुत बेहतरीन
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