Monday, 17 December 2012

शकलेंदु भी शंस्य तो नहीं होता .... !!


कहाँ से करूँ शुरूआत ...........
या .......
कहाँ ले जा कर करूँ समाप्त .....
क्या ....

दर्द जो समय दिया , वो , ज्यादा है दर्दनाक ......
या ...........
वो जो शरीर दे रहा दर्द , है ज्यादा दर्दनाक ....
अकेला रहना है , सजा .....
या ....
अकेलापन है , बड़ी सजा ........
शरीरवृत्ति का न रहना , शगुनियाँ  है बना देता ......
या .....
शरीरवृत्ति का होना , शक्तिमत्ता  , है बना देता ....
बालिश सा बालम , बारीस हो तो ...
कैसे ....
समाहित हो जाए बादरिया सी बाला .....
शकलेंदु भी शंस्य तो नहीं होता .... !!



शरीरवृत्ति = जीविका .... शगुनियाँ = शुभाशुभ का विचार करने वाला .....

बालिश = मूर्ख ...... बारीस = समुंद्र ..... शकलेंदु = अपूर्ण चन्द्रमा ....

शंस्य = स्तुति करने योग्य

8 comments:

  1. दर्द भरा दिल भर भर आये
    किसे अपनी व्यथा सुनाएं

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  2. अब किस विध तुमको पाऊँ प्रभु .....!!!

    बालिश सा बालम , बारीस हो तो ...
    कैसे ....
    समाहित हो जाए बादरिया सी बाला .....
    शकलेंदु भी शंस्य तो नहीं होता .... !!

    गहन अभिव्यक्ति और बहुत सुंदर शब्दों का प्रयोग .......बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ....
    उत्कृष्ट रचना विभा जी ....संग्रहणीय ....!!

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  3. didi mere pass shabd nahi is rachna kay liye....dard bhari....aur itni gehan abhivyakti...apko pranam...

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  4. कौन क्या होता है ये पता नहीं... मैंने तो कभी नहीं चाँद पर प्यार बरसाया पर तुम वन्दनीय हो...:)
    अपने को बस खुश रखो.. हम सब साथ साथ हैं..:)

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  5. बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको

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  6. हर सुबह शाम में ढल जाता है
    हर तिमिर धूप में गल जाता है
    ए मन हिम्मत न हार
    वक्त कैसा भी हो
    बदल जाता है ….

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  7. बहुत उत्कृष्ट भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  8. बेहतरीन अभिव्यक्ति,निशब्द करती सुंदर रचना,,,,

    recent post: वजूद,

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