एक बुलबुल की थेथरई जग प्रसिद्ध हुई ....
एक बुलबुल से मुलाकात हुई , बात हुई ....
वो सोने के पिंजड़े में वर्षों से कैद थी .... !!
समय गुजरता गया .... धीरे - धीरे उसकी उपयोगिता कम हो गई .... उसके पिंजड़े को खोल दिया गया था .... फिर भी वो बाहर खुले में न जाकर , पिंजड़े में ही दिन काट रही थी .... !!
" उससे पूछी :- क्यूँ नहीं उड़ जाती हो .... ?
तो वो बोली :- इतने वर्षों से कैद में रहने की आदत हो गई है .... बाहर नभ का कोई कोना वो अपने लिए कहाँ बना पाई है और आत्मा का घायल होना दूसरों को कहाँ दिखता है .... !!
" अरे .... डर लगता है .... कुछ नहीं होगा एक बार दिल से कोशिश तो करो .... !!
वो बोली :- ना डर लगता है और ना हौसले की कमी है .... कोई जरुरत नहीं है .... बाहर कुछ हो ना हो , बाहर तीखे नुकीले चोंच से शरीर भी घायल हो ना हो .... घायल आत्मा जरुर लहू-लुहान हो जायेगा .... !!
वो बोली :- थेथर और थेथरई में हम ज्यादा ही निपुण होती हैं .... !!
इसे ही तो कहते हैं .... *थेथरोलोजी .... !!
थेथरई का अर्थ बेअदब-जबरदस्ती .... !!
जब तक स्त्रियाँ भी थेथर रहेगीं , यही होता रहेगा और उनका हाल भी यही रहेगा .... !!
वृथा हैं बातें थोथी ...
थोथी बातों से कभी ,
जीती गई ना ,
जग की कु-प्रथा !!
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बहुत बढिया प्रस्तुति,,,, बधाई।
ReplyDelete: हमको रखवालो ने लूटा,.
बेहद लाजबाब रचना.शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन.बधाई।
ReplyDeleteअन्तस् को छूने वाली रचना!
ReplyDeletetouchy ..... dar aadat ban jaata hain
ReplyDeletebulbul ki thethrayi ne bulbul ko khaas bana diya
ReplyDeleteमन को छू गई.. सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut bahut acchi hai ye lines....bahut kuch hume kehti aur samjhati rachna
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी आलेख ....
ReplyDeleteबेहद लाजबाब रचना...
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति | मुबारकबाद
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
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