Tuesday 25 June 2013

सज़ा एक ही होनी चाहिए थी .... ??



एक बार .... एक अदालत में तीन खूनी पकड़ कर लाये गये .... उनमें से एक को बरी कर दिया गया .... दूसरे को पाँच साल की सज़ा मिली .... तीसरे को फांसी की सज़ा मिली ....

जिसे बरी किया गया ,वो मकान बनाने वाला एक मजदूर था .... ,छत पर काम करते वक़्त एक बड़ा पत्थर उसके हांथ से अचानक छुट कर गिर गया और वो पत्थर नीचे चलते एक राहगीर के सिर पर लगा और उससे उस राहगीर की मृत्यु हो गई .... हत्या तो हुई लेकिन मजदूर ने वो जान-बुझ कर पत्थर नहीं फेंका था उसकी नियत गलत नहीं थी इसलिए उसे बरी कर दिया गया ....

दूसरा मुजरिम एक किसान था .... उसके खेत में लगे फसल को एक चोर काट रहा था ,उस चोर को किसान ने ऐसी लाठी मारी कि चोर मर गया .... चोरी गलत काम है ,किसान का नुकसान भी हो रहा था .... लेकिन ऐसा अपराध नहीं था कि उसकी हत्या कर दी जाये .... इस लिए उस मुजरिम किसान को 5 साल की सज़ा हुई ....

तीसरा मुजरिम एक मशहूर डाकू था .... एक धनी इंसान के घर में रात को डकैती के नियत से गया और धनी पुरुष की हत्या कर के घर का सारा धन चुरा लिया .... उस डकैत का अपराध जघन्य था ,इसलिए उसे फांसी की सज़ा दी गई ....

तीनों ही अपराधी ने खून किया था .... जुर्म का बाहरी रूप एक सा था .... सतही सोच के आधार पर सज़ा एक ही होनी चाहिए थी .... ??


ऊपर के न्यायलय में भी ऐसा ही न्याय होता होगा ना .... ??

हम सभी को भी अपने अन्तर्मन के सत्यनिष्ठ जज के फैसले के अनुसार न्याय का साथ देना चाहिए .... ??

अन्तर्मन कोई काट -छांट  नहीं करता .... लोभ - लालच ,भय - स्वार्थ उसे प्रभावित नहीं करता .... अन्तर्मन तो बस विश्वास पर निर्णय (जजमेंट) देता है ....


17 comments:

  1. बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
    सादर...!
    शशि पुरवार

    ReplyDelete
  2. न्याय तो यही कहता है।

    ReplyDelete
  3. बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!

    ReplyDelete
  4. न्याय तो होना चाहिए , उत्तराखंड की त्रासदी में देश की दुर्दशा ,चैनलों पर नेताओं की चीख पुकार , कभी कभी शक होता है , क्या यह इश्वर का न्याय है :(

    ReplyDelete
  5. सज़ा में अंतर होना ही चाहिये !

    ReplyDelete
  6. न्यायसंगत बात कहती पोस्ट....

    ReplyDelete
  7. सच कहा है आपने .. अंतरमन गलत नहीं कहता ... सोच के फैंसला लेना चाहिए ...

    ReplyDelete
  8. अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनें, वह कभी गलत नहीं होती...

    ReplyDelete
  9. बहुत ही अच्छी कहानी .सच ही कहा चाची जी आपने व्यक्ति का अन्तर्मन सच्चा न्याय करता है ।

    ReplyDelete
  10. बिल्कुल सही कहा आपने.." हम सभी को भी अपने अन्तर्मन के सत्यनिष्ठ जज के
    फैसले के अनुसार न्याय का साथ
    देना चाहिए".. क्योंकि हमारे अन्तर्मन का फैसला कभी गलत नहीं हो सकता है।..

    ReplyDelete
  11. बात तो बिलकुल सही है विभा मौसी, गुनाहों से ज्यादा उनके परिपेक्ष्य महत्वपूर्ण हैं।
    लेकिन अफ़सोस कि हमारी न्याय प्रणाली बस सबूतों के आधार पर चलती है, और परिपेक्ष्य कुछ का कुछ प्रस्तुत कर दिया जाता है ..जो ज्यादा अमीर है, काबिल वकील रख सकता है, उसे परिपेक्ष्य बदलने का पूरा सुयोजन मिलता है ...

    ReplyDelete
  12. Vibhaji,
    You have presented story in a very nice manner,we all should listen to inner voice.
    Please visit my blog"Unwarat.com" & give your comments.
    Vinnie

    ReplyDelete
  13. aaj is soch ki jarooratha.bat saheekahi

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

शिकस्त की शिकस्तगी

“नभ की उदासी काले मेघ में झलकता है ताई जी! आपको मनु की सूरत देखकर उसके दर्द का पता नहीं चल रहा है?” “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो, मैं माँ होकर अ...