Tuesday, 28 January 2014

तितिक्षा=सर्दी -गर्मी सहने का सामर्थ्य



दूसरों की कही सारी नाकारात्मक बातें सुना नहीं करते 
कुछ की आदत अपनी हार का बदला ,आलोचना हुआ करते 
ऊपर वाले ने ऐसे समय के लिए ही तो दो कान दिया है
जिसका रास्ता दिल-दिमाग तक जाने नहीं दिया करते 

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किसी वृक्ष को जान लिए होते करीब से 
लोग इश्क से रश्क करते उनके जमीर से 
रह गए वे डुबकी लगाए अहंकार में 
तितिक्षा ही तो फिसल गई समीप से 

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7 comments:

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
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“नगर के कोलाहल से दूर-बहुत दूर आकर, आपको कैसा लग रहा है?” “उन्नत पहाड़, चहुँओर फैली हरियाली, स्वच्छ हवा, उदासी, ऊब को छीजने के प्रयास में है...