Friday, 4 January 2019

हिन्द , हम व हिन्दी..



"हेल्लो मैम! वन मिनट...,"
"जी हाँ! कहिए..,"
"क्या आप ऑथर हैं?"
"नहीं ! नहीं तो..! क्यों क्या हुआ?"
"पापा के पास आपकी लिखी बुक मैंने पढ़ा है...!"
"देख लो बेटा ... इसे कहते हैं बड़प्पन... आठ पुस्तक का संपादन कर भी अपने को लेखक मानने से इंकार करती... सीखने की भूख अभी बाकी है... शीर्ष का मंजिल अभी बाकी है...!"
"मेरे गुरू अस्सी पुस्तक लिख चुके..., उनसे पूछा गया उनकी द बेस्ट कृति कौन सी है ? तो उन्होंने कहा ,"अभी लिखना बाकी है!"
"आप पहली ऑथर हैं जिनसे मैं मिला हूँ... आज तक बहुत सी पुस्तक पढ़ा लेकिन कभी किसी ऑथर से मिला नहीं था...!" झुककर चरणस्पर्श कर लिया
"मुझे आपकी ब्लेसिंग चाहिए, मैं भी बुक लिखना चाहता हूँ!"
"बेहद खुशी की बात... आपको कामयाबी मिले... अच्छी शुरुआत हो...!"
"कैसे बुक छपेगी... माने कैसे छपती है...?"
"आपके लेखन पर निर्भर करता है... उत्तम लेखन हुआ तो प्रकाशक खुद से छाप देंगे... वैसे कहना मुश्किल है कि ऐसा हो ही चाहेगा... आप अच्छा लेखन कर भी लेंगे तो जल्दी कोई प्रकाशक मिल जाएगा... आप अपनी पूँजी लगाकर छपवा सकते हैं...,"
"क्या मेरी उम्र यानी क्या लोग उनतीस-तीस साल के लेखक के लेखन को महत्त्व देंगे या मैं कुछ साल रूक जाऊँ?
"लेखन का उम्र से क्या ताल्लुक? चेतन भगत की पहली पुस्तक किस उम्र में आई ?
"जी! जी! यह तो आपने ठीक कहा...!"
"आप किस विषय पर पुस्तक लिखना चाहते हैं?"
"स्प्रिचुअल! कैसे लिखूँ ? शुरुआत कैसे करूँ ? अंत कैसे करूँ ? बहुत उलझनें हैं..! थॉट को कैसे..,"
"आप श्री गणेश तो करें... लिखते जाएं... एक दिन का तो काम है नहीं... लिखने के क्रम में लगे कि इसे शुरू में होना चाहिए तो कट-पेस्ट शुरू में कर लीजिए... लगे कि मध्य या अंत में होना चाहिए तो उस क्रम में सजा लीजियेगा.. लेकिन पहले यथाशीघ्र शुरू कीजिए...।"
"क्या पाठक को मेरी उम्र देखते हुए मेरे ज्ञान की बातों पर विश्वास होगा?"
"क्यों नहीं होगा...? पहले भी कह चुकी हूँ अनुभव का उम्र से कोई ताल्लुक नहीं... मैं आपसे उम्र में बहुत बड़ी हूँ... लेकिन हमारा माहौल अलग है... मैं पूर्णतया साधारण गृहणी हूँ... चौके से चौखट तक की दिनचर्या है मेरी... आपका दिनभर में ना जाने कितने लोगों से मिलना-जुलना होता है... किस भाषा में लेखन करना है आपको ?"
"जी! इंग्लिश!"
"क्यों लिखना चाहते हैं ? लेखन किसके लिए करना चाहते हैं?"
"अपने नॉलेज को दूसरे तक पहुँचाने की चाह है... लेखन से ही तो बाँट सकूँगा...।"
"बिलकुल सही... अपनी भाषा में क्यों नहीं लिख रहे ?.. ताकि जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते उनतक भी आपकी बातें पहुँच सके... ऐसे तबके के लोगों के पास ही भ्रांतियाँ ज्यादा है... ,"
"इंग्लिश बुक ज्यादा लोगों को प्रभावित करती है...। ज्यादा बिकेगी..।"
"मृगतृष्णा में नहीं भटकें... अनुवाद कई भाषाओं में हो सकती है...। आप बस लेखन शुरू करें...।"
"मुझे आपसे मदद की बहुत जरूरत पड़ेगी क्या जब चाहूँ आपसे बात कर सकता हूँ..?"
"निसंकोच जब इच्छा हो बात कर लें... मैं आपको अंग्रेजी में मदद नहीं कर पाऊँगी ज्यादा... हम हिन्दी में विमर्श कर सकते हैं , आप उसे अंग्रेजी में अनुवाद कर लीजियेगा..।"
"जी!जी! मैम! हम मातृभाषा में ही सोचते भी हैं न...!"


5 comments:

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  2. हिंदी पुस्तकों के बारे में प्रकाशकों और पाठकों को लेकर इस युवा लेखक की जो आशंकाएं हैं वो गलत नहीं हैं. भारतीय भाषाओँ में अच्छा लिखने वालों को प्रायः वैसा सम्मान नहीं मिलता जैसा अंग्रेज़ी में कचरा लिखने वालों को भी मिल जाता है. चेतन भगत से कितने लोग भारतीय भाषाओँ में अच्छा लिखते होंगे पर क्या इस अंग्रेज़ी के गुलशन नंदा की ख्याति के शतांश तक भी वो पहुँच पाए हैं?
    हिंदी कहानियां और उपन्यास छापने वाले कई प्रसिद्द प्रकाशन अब अंग्रेज़ी साहित्य की पुस्तकें छापना चाहते हैं. यह सही है कि अपनी मातृभाषा में लिखना बहुत सहज और स्वाभाविक होता है लेकिन हमको यह भी याद रखना चाहिए कि रबीन्द्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार 'गीतांजलि' के अंग्रेज़ी अनुवाद पर मिला था, न कि मूल बांगला कविताओं पर.

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  3. सस्नेहाशीष संग शुक्रिया छोटी बहना

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