Thursday 1 August 2019

सजग हम


"आयाम" – साहित्य का स्त्री स्वर
आयाम = अधिकतम सीमा/विस्तीर्णता

"लेख्य-मंजूषा"~लेख्य=लेखन योग्य
ऐसी पेटी जिसमें अनर्थक कुछ भी नहीं

लगभग 145-146 प्रेमचंद की कहानियों में से कुछ न कुछ कहानियाँ सबके_जीवन को प्रभावित करती रही है... हर मौके पर, दैनिक कार्यकलापों पर उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत कर दी जाती है.. बड़े घर की बेटी सच लिख दे–समुन्दर में आग लग जाये

ना यह मुश्किल है ना मुश्किल वह है।
त्यागना अहम-वहम व होना प्रसह है।
गर्दन अपनी सर अपना पूरा हर सपना,
जीना चाहूँ मरने के बाद कर्म का गह है।

प्रसह= नीलकंठ
गह = हथियार

कल 31 जुलाई 2019 कथा-सम्राट प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर साहित्य का स्त्री स्वर 'आयाम' द्वारा 'लेख्य-मंजूषा' के सहयोग से पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान की अध्यक्षता में हुए एक महती आयोजन में लखनऊ से आईं हिंदी की सुप्रसिद्ध उपन्यासकार और कथाकार रजनी गुप्त ने अपनी कहानी 'पगडंडियों पर साथ साथ' का पाठ किया। शहरी, विशेषकर कामकाजी स्त्रियों की स्वातंत्र्यचेतना, उनके सपनों और संघर्षों को बेहतरीन अभिव्यक्ति देने वाली रजनी गुप्त का शुमार स्त्री विमर्श की प्रमुख लेखिकाओं में होता है। कहानी-पाठ के बाद उस पर चर्चा का लंबा सिलसिला चला जिसमें पटना के कई प्रमुख लेखकों और लेखिकाओं ने अपने विचार व्यक्त किए।

पहली बार बिहार आई सम्पादक उपन्यासकार कथाकार रजनी गुप्त जी (गोमतीनगर/लखनऊ) का हार्दिक स्वागत और अभिनंदन !

साहित्य और समाज हित में जो उचित हो, हमारा वो कर्म हो
आवाज दो–हम एक हैं

बलात्कार के खिलाफ कड़ी सजा की मांग करने भी हम कल शाम में जुटे
समाज कब बदलेगा समझ के बाहर

3 comments:

  1. जी जरूर
    सस्नेहाशीष संग हार्दिक आभार आपका

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  2. वाह, बहुत बधाई

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
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अनुभव के क्षण : हाइकु —

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