कुहू का शोर–
दराज में अटके
चिट-पुरजे
मेघ गर्जन–
पन्ने की नाव पर
चींटी सवार
हिमावृत्ताद्रि–
मालकौंस टंकार
तम्बू में गूँजें
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–"सुनो ना ! मुझे जानना है आज के समय में अकेले का साथ कौन देता है? यानी जैसे "बिना शादी किये जीवन व्यतीत करना..?"
-"अपने शर्तों पर जीवन व्यतीत करने वालों को दूसरे का अपने दिनचर्या में प्रवेश स्वीकार ही नहीं तो उन्हें क्या फर्क पड़ता है कि उनका कोई साथ दे रहा है या नहीं दे रहा है..।"
–"विवाहित जोड़ी में से किसी एक का ही जीवित रह जाना?"
-पास में धन नहीं है तो कोई साथ देने वाला नहीं होता है। अगर धन है तो साथ देने वाले अनेक आस-पास में होते हैं...। शहद पर मक्खियों की तरह। निःस्वार्थ सहायता करने वाले विरले होते हैं। परन्तु अपवाद तो प्रत्येक जगह मिल जाता है।"
–"यह तो अकाट्य सत्य है कि तकनीकी समृद्धि ने कहीं ना कहीं अकेले रहना सीखला दिया है..?"
-"वैसे पूरी तरह यह भी सत्य नहीं है..। अपने विचारों के अनुरूप भीड़ सभी जगहों पर एकत्रित कर लिया जाता है। लगभग चालीस-पैंतालीस परिवारों का एक संगठन है 'जीवन की दूसरी पारी' । इसमें सभी लोग लगभग साठ-सत्तर वय के होंगे। एक बार इस संगठन में तय हुआ कि प्रीतिभोज किया जाए। लगभग डेढ़-दो सौ व्यक्तियों का भोजन बनना था। ऐसा केटर्टर ढूँढ़ना था जिसका भोजन लज़ीज हो। अब मस्ती करने हेतु बेवक्त की शहनाई बजाने का मौका ढूँढ़ लिया गया था। कुछ महिलाओं की मण्डली बनी कि वे लोग कुछ कैटरर्स के भोजन का स्वाद लेंगी और तब एक केटर्टर तय किया जाएगा ताकि उस सुुुनहले अवसर पर मिट्टी पलीद ना हो। स्वाद लेने वालीी मण्डली किसी दिन मध्याह्न भोजन तो किसी दिन रात्रि भोजन का स्वाद लेतीं और बिना निर्णय वापिस हो जातीं.. उस 'मुंडे मुंडे स्वादेर्भिन्ना' मण्डली का कुछ वैसा हाल था कि
एक बादशाह के आगे पाँच आदमी बैठे थे –अन्धा, -भिखारी, -प्रेमी , -इस्लाम धर्मगुरु , -सत्य ज्ञानी
बादशाह ने पाँचों के आगे एक शे’र की अन्तिम पङ्क्ति (मिस्रा)
“इस लिये तस्वीरे-जानान् हमने बनवाई नहीं।”
बोल कर कहा कि, इसमें पहली पङ्क्ति को जोड़कर इसे पूरा करो।
अन्धे ने इस पद्यांश (शे’र) में पहली पङ्क्ति जोड़ते हुए कहा –
इसमें गूयाई नहीं और मुझमें बीनाई नहीं। इस लिये तस्वीरे-जानान् हमने बनवाई नहीं
भिखारी ने कहा –माँगते थे ज़र्रे-मुस्वर जेब में पाई नहीं। इस लिये तस्वीरे-जानान् हमने बनवाई नहीं।
प्रेमी ने कहा –एक से जब दो हुए फिर लुत्फ़ यक्ताई नहीं। इस लिये तस्वीरे-जानान् हमने बनवाई नहीं।
इस्लाम धर्मगुरु ने कहा –बुत परस्ती दीने-अह्मद में कभी आई नहीं। इस लिये तस्वीरे-जानान् हमने बनवाई नहीं
सत्य ज्ञानी ने कहा –हमने जिस को हक़ है मान, हक़ वो दानाई नहीं। इस लिये तस्वीरे-जानान् हमने बनवाई नहीं।
हर किसी की सोच भिन्न-भिन् होती है। संस्कृत (वायुपुराण) में एक कथन है –
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः।
जातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे।।
जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं; एक ही गाँव के अंदर अलग-अलग कुऐं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है, एक ही संस्कार के लिए अलग-अलग जातियों में अलग-अलग रिवाज होता है तथा एक ही घटना का बयान हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से करता है ।
मण्डली में सबका स्वाद अलग-अलग था... इसमें आश्चर्य कर लेने या बुरा मान लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी। और सभी ने एक संग मिलकर स्वयं ही बनाने कानिश्चय किया और महीनों व्यस्त रहने का अवसर भी प्राप्त हुआ।
जहाँ दीवाली के अवसर पर सबके ड्योढ़ी पर मिठाई का पैकेट रखा गया और दरवाजे को खटखटाकर दूर से ही शुभकामनाओं के संग बधाई का आदान-प्रदान हुआ था वहाँ वसन्तोत्सव के प्रीतिभोज में सामाजिक तन से तन की दूरी भी मिटी और किसी के मन में अवसाद रहा होगा तो वह भी मिटा दिया गया।"
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2028...कलेंडर पत्र-पत्रिकाओं में सिमट गया बसंत...) पर गुरुवार 04 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteमुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः।
ReplyDeleteजातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे।।
----सत्य वचन
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 03 फरवरी को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteसार्थक सृजन...
ReplyDeleteसाधुवाद आदरणीया 🙏
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुंदर व सार्थक सृजन।
ReplyDeleteसादर।
आदरणीय विभा दी, आपकी सुन्दर और सारगर्भित रचना से एक पुरानी कहावत याद आई कि "कोस कोस पे पानी बदले तीन कोस पे बानी" ..सुन्दर एवं सार्थक सृजन..
ReplyDeleteमुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः।
ReplyDeleteजातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे।।
बढ़िया लगा दी।
सादर।
बहुत खूब ! बेहतरीन और लाजवाब सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ।
कितने ''बेल्ले'' होते थे बादशाह लोग !!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक सृजन।
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक
ReplyDeleteआप हमेशा कुछ नया और प्रभावी
सृजन करती हैं
कमाल