Wednesday 17 February 2021

कील गहरा धँसा


 पार्थक्याश्रय–
आईना की किरचें
एड़ी में चुभे

>>><<<

"क्क्या आंटी! इतनी जल्दी क्यों जा रही हैं? सुनिए आपलोग आपसे भी कह रहा हूँ अंकल,  होली के बाद जाइये। होली में हम सब साथ रहेंगे तो अच्छा लगेगा।" दिनेश ने कहा।

रवि माथुर पत्नी के संग अपने बेटे के पास विदेश आये हुए थे।  हालांकि वो लोग छः महीने के लिए ही आये थे लेकिन आकस्मिक वैश्विक जंग छिड़ने के कारण लगभग पन्द्रह महीने के लिए रुक गए थे। आज वापसी थी तो बेटे के कुछ दोस्त उनसे मिलने आये और साग्रहानुरोध कर रहे थे कि कुछ दिनों के लिए और ठहर कर जाएँ।

"जाना जरूरी नहीं होता तो जरूर रुक जाता बेटा जी। पेंशन सुचारू रूप से चल सके उसके लिए लाइव सार्टिफिकेट के लिए सशरीर उपस्थिति होगी तथा एक जरुरी मीटिंग है उसमें शामिल होना है और सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि टिकट कट गया है।"

"टिकट का क्या है उसे बदला जा सकता है। वर्त्तमान काल में सबकुछ ऑन लाइन हो रहा है। आप हमसे बहाना नहीं बनाइये। प्लीज़ रुक जाइये।" दिनेश के स्वर में बेहद दर्द नज़र आ रहा था, मानों कुछ है जो उसे बेहद सता रहा है।

"जानती है आंटी आपलोग यहाँ हैं तो हमलोगों को भी अच्छा लगता है!" दिनेश की पत्नी ने कहा।

"हाँ आंटी! बड़ों के साथ रहने से ही तो घर, घर लगता है। वरना हमें देखिए दो जन हर पल का साथ फिर भी यहाँ यहाँ दिल में ऐसा दर्द है कि आप दिखला नहीं सकता।" दिनेश ने पुनः कहा।

"जानती हैं आंटी हमारी सासु माँ के यहाँ नहीं आ पाने का बेहद दुःख है।" दिनेश की पत्नी ने कहा।

"हाँ! मेरी माँ का बीजा बार-बार रिजेक्ट हो जा रहा है। कैंसिल करने के पीछे उन्हें लगता होगा कि अकेली औरत बेटे पर ही निर्भर होगी जाएगी तो लौट पाने का कोई आधार नहीं होगा। रुक ही जाएंगी। इसलिए बीजा नहीं दे रहा है।" दिनेश ने कहा!"

"तुमलोग ही क्यों नहीं अपने देश वापस चले जाते हो?" रवि माथुर का हर्षित स्वर में सवाल था।

"यह तो पक्का तय है अंकल कि मैं अपने देश लौट जाऊँगा। दो साल में लौट जाऊँ या चार साल में लौट जाऊँ। एकलौता पुत्र होने के नाते इतना ख्याति कमा लेना चाहता हूँ कि समाज को गर्व हो सके मुझपर। पिता का देखा सपना पूरा करना चाहता हूँ। जिस देश में मेरी माँ नहीं आ सकती है उस देश में तो मुझे रहना ही नहीं है।" दिनेश ने कहा।

"एक दिन भी ऐसा नहीं जाता कि ये अपनी माँ से फोन पर बात ना करते हों। इनकी सुबह माँ से बात करने के बाद ही होती है। मुझे भी लगता है कि हमें माँ के पास ही रहना चाहिए।" दिनेश की पत्नी ने कहा।

"और नहीं तो क्या जिसके खून से मैं बना हूँ उसके लिए कुछ ना कर पाना.. ओह्ह! मैं समझा नहीं सकता अपनी बैचेनी।" दिनेश बिन जल मीन की स्थिति में दिखलाई दे रहा थ।

"तुम जो अर्जन करना चाहते हो वह तो तुम अपने देश में भी कर सकते हो..!" अंकल ने कहा।

"मुझे इस देश की एक बात बहुत व्यवहारिकता पूर्ण लगी। एक-दो महीने के बच्चे को अलग कमरे में सुलाना। वयस्क होने पर अलग कर लेना।" आंटी का स्वर कहीं दूर गए व्यक्ति सा गूँज रहा था।

सभी एक दूसरे को स्तब्धता से देख रहे थे।


14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. सुन्दर सारगर्भित रचना..

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

      Delete
  4. दोस्तों का ही आग्रह रहा ! बेटा एक शब्द नहीं बोला !!

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर व अलहदा सृजन।

    ReplyDelete
  6. "मुझे इस देश की एक बात बहुत व्यवहारिकता पूर्ण लगी। एक-दो महीने के बच्चे को अलग कमरे में सुलाना। वयस्क होने पर अलग कर लेना।" आंटी का स्वर कहीं दूर गए व्यक्ति सा गूँज रहा था।
    ये बात आंटी को सचमुच भा गई थी या उन्होंने व्यंगात्मकशैली में अपनी मनोदशा को व्यक्त करने के लिए कहा था,ये तो आंटी ही जाने।
    छोटी सी कहानी में बहुत बड़ी सीख,सादर नमन दी

    ReplyDelete
  7. गूढ़ बात से लघु कथा का अंत । अच्छी लघु कथा

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

काली घटा

“ क्या देशव्यापी ठप हो जाने जाने से निदान मिल जाता है?” रवि ने पूछा! कुछ ही दिनों पहले रवि की माँ बेहद गम्भीररूप से बीमार पड़ी थीं। कुछ दिनो...