Wednesday, 10 February 2021

बस यूँ

01.हिमस्खलन–

कोने से फटी चिट्ठी

डाकिया बाँटे

02.चैता के संग

ध्वनित जंतसार-

चौका चौपाल

03.खण्डों में बँटे

ओस में गीले पत्ते 

मध्याह्न तम

>>><<<

छोटी सी ही थी

तो किसी ने कहा

'अरे! बड़ी चुलबुली है

सोती कब है?

जरा नहीं थकती है!"

थोड़ी ही बड़ी हुई

तो किसी ने कहा

'अरे! इतनी चहकती परी

रेगिस्तान में जल की बूँदें सी'

और थोड़ी बड़ी हुई

तो 'सायरा बानो' सी लगती हो

चुहलबाजी में जी डरता है 

उससे आगे थोड़ी और बड़ी हुई

तो घमंडी, हिटलर, खड़ूस कहने लगे

जानते हो क्यों ?

मनमानी नहीं चलने लगी थी

खुद से प्यार होना खटकने लगी थी  ...


अपने अंगों की सुरक्षा

हर जीव करता है

तभी तो हिमपात के पहले

पेड़ों से पत्ता झरता है।

शाखाओं पर जो टिक जाता हिम

गलन पैदा करता हानिकारक

अंबरारंभ सा नजरों का भरम

जलन पैदा करता हानिकारक

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज बुधवार 10 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर रचना..

    सादर प्रणाम

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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    Replies
    1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

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  4. वाह!!
    बहुत सुन्दर।

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  5. बहुत सटीक प्रस्तुति। जीवन मे ऐसा ही होता है।

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