उच्च मध्यम परिवार के पात्र
सुबोध : पति/उम्र पैतालीस वर्ष
संध्या : पत्नी/उम्र बयालीस वर्ष
सुयश : पुत्र/उम्र सोलह वर्ष
सुनीता : सहायिका/उम्र पच्चीस वर्ष
समय : मध्याह्न काल 4 बजे...
स्थल : गृह की ड्योढ़ी पर बैठक
°°
"मैं बाजार हो आता हूँ। क्या लाना है उसकी सूची दे देना।" सुबोध ने कहा।
"आज धनतेरस है चाचा जी। एक झाड़ू लाना शुभ होगा।" सुनीता ने कहा।
"झाड़ू लाना क्यों शुभ होता होगा दीदी?" सुयश ने पूछा।
"दीवाली की अतिरिक्त सफाई में पुराने झाड़ू खराब हो जाते होंगे तो नए लाने का विधान शुरू हुआ होगा। पुरानी पीढ़ी की मजबूरी नयी पीढ़ी की परम्परा हो जाना स्वाभाविक है।" संध्या ने कहा।
"धनतेरस पुस्तक मेला शुरू हुआ है। तुम कहो तो ऑन लाइन तुम्हारी पसंद की दो चार पुस्तक मंगवा लूँ?" सुबोध ने कहा।
"जी जरूर! मैं सोच रही थी कि बच्चों के अपनालय में एक पुस्तकालय खोल दूँ ?" संध्या ने कहा।
"उम्दा ख्याल है..! मैं अपने मित्रों और तुमलोग अपने-अपने मित्र मंडली में सबको उत्साहित किया जाएगा...!" सुबोध ने कहा।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 27 अक्टूबर 2022 को 'अपनी रक्षा का बहन, माँग रही उपहार' (चर्चा अंक 4593) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
हार्दिक आभार आपका
Deleteसुनीता केजरीवाल होगी :)
ReplyDeleteशुभकामनाए दीप पर्व की|
😀🙏
Deleteशुभकामनाएं
ReplyDelete"दीवाली की अतिरिक्त सफाई में पुराने झाड़ू खराब हो जाते होंगे तो नए लाने का विधान शुरू हुआ होगा। पुरानी पीढ़ी की मजबूरी नयी पीढ़ी की परम्परा हो जाना स्वाभाविक है।" संध्या ने कहा।
सादर
सस्नेहाशीष
Deleteसार्थक लघुकथा। हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteविचारणीय लघुकथा।
ReplyDeleteसुंदर लघुकथा
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