Friday, 22 November 2024

प्रघटना


“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चलते हैं! वे अमेरिका में विद्या धाम चलाती हैं यह हमारे लिए हर्ष और गर्व की बात है…!” माँ, बेटे को सन्देश देती है।

करोना काल से ही वर्क फ्रॉम होम के लिए माइक्रोसॉफ्ट टीम्स आल रांउडर ऐप्स में शामिल हैं जो ऑडियो-वीडियो कम्यूनिकेशन का बेहतरीन जरिया है जिसके कारण अधिकतर कार्यदिवस को माँ-बेटे की बातचीत व्हाट्सऐप्प चैट के ज़रिए हो पाती है।
“बेहद खेद है माँ! उस दिन मेरा, मेरे बॉस के साथ बाहर जाने का प्रोग्राम है! स्थगित नहीं कर सकता क्योंकि एक विद्यालय में प्रवक्ता का दायित्व भी लिया हूँ! तुम्हें सूचित करने ही वाला था।” बेटे का संदेश आता है।
“अरे! यह तो बेहद खुशी की बात है। तुम बिना किसी उलझन में पड़े अपने दायित्व को निभाओ! मैं आयोजन का मना कर देती हूँ!” माँ पुनः संदेश देती है और कवयित्री को फोन करती है-
“…”
“बेहद खेद के साथ, रविवार की भेंट गोष्ठी को स्थगित करना पड़ रहा है!”
“…”
“चूँकि बिना बेटे के सहारे के हमलोग यहाँ अपाहिज हो जाते हैं! हमें डॉलर समझ में नहीं आता है, नेट पैक समाप्त होगा…”
“…”
“आपसे मिलना, हमारे लिए भी अत्यंत खुशी की बात होती। दरअसल मेरे पति बिना बेटे के कहीं जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं।”
“…”
“हाँ उनकी उम्र ज़्यादा नहीं! बीमारी का उम्र से कोई सरोकार भी नहीं होता…! उन्हें गिर जाने का भय बना रहता है…!”
“…”
“उनका मस्तिष्क उनके अंगों को निर्देश देने में विफल होता है…! हमलोग ऑन लाइन वर्चुअल गोष्ठी आयोजित कर सकते हैं। समय ने साथ दिया तो अगली बार आने पर भेंट होगी!”
“…”
“आह्ह! अब आपकी बात को कैसे टाला जा सकता है! इस अव्यवहारिक काल में कहाँ किसी को इतनी फुरसत है कि अपने स्वार्थ के वर्तुल से बाहर निकल सके..! जब आप सभी समस्याओं के हल लेकर आयेंगी तो हम तितली ढूँढने अवश्य निकलेंगे!

Saturday, 16 November 2024

पुनर्योग

“भाभी घर में राम का विरोध करती हैं और बाहर के कार्यक्रम में राम भक्ति पर कविता सुनाती हैं !” अट्टाहास करते हुए देवर ने कहा।

 “ना तो मैं घर में राम का विरोध करती हूँ और ना बाहर राम भक्ति की कविता पढ़ती हूँ। आप पुनः चुग़ली में सिद्ध होने की कोशिश कर रहे हैं..,” भाभी ने कहा।

“अख़बार में जो लिखा है सारी दुनिया तो वही मानेगी…” देवर ने कहा।

 “आज की दुनिया फेसबुक ब्लॉग ट्विटर पर भी है जहाँ और घर में राम विग्रह में हो रहे आडम्बर पर सवाल करती हूँ! आज एक सवाल आपसे से भी जब सीता की अग्नि परीक्षा हो चुकी थी तो साक्षी देवर भाभी को वन में छोड़ने क्यों गए, जैसे किसी भी मामूली बात से कलह में भी आप मेरे मायके चले जाते रहे मेरे पिता-भाई को बुलाकर लाने….,” भाभी ने पूछा।

“भाई से मिले आज्ञा का पालन करना था और राम को अपना राजा पक्ष को प्रबल करना था…! मैं आपके पिता भाई को अनेकों बार बुलाकर लाया लेकिन आप एक बार भी गयीं नहीं न?”देवर ने कहा।

 “बोगनविलिया जो होना था, वैसे भी सीता की तरह जाकर नहीं लौटना कहाँ सम्भव था…!”

Thursday, 31 October 2024

मनाजीताभ


विदेशों में रहने वाले भारतीय किसी भी आयोजन को शनिवार/रविवार को मनाते हैं…। दीपोत्सव के पर्वमाला शुरू होने के ठीक पहले वाले शनिवार को तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन और राहुल शर्मा संतूर वादक (प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा के पुत्र) का संगीत समारोह और रविवार को दीपोत्सव में जाने और आनन्दित होने की चर्चा पति और पुत्र के मध्य चल रही थी। चर्चा में रुकावट डालते हुए मुख्य-द्वार की घंटी की मधुर ध्वनि से किसी के आने की सूचना मिलते पुत्र ने एक बेहद प्यारे शिशु के संग दम्पति का स्वागत करते हुए बैठक में ही ले आया। पुत्र और दम्पति के मध्य चल रहे बातचीत से लग रहा था कि कुछ पुरानी अच्छी मित्रता है। परिचय करवाते हुए पुत्र ने बताया भी कि वह जब कुछ वर्षों पहले यहाँ रहने आया तो उनके पड़ोस में रहता था। कुछ वर्षों के लिए दूसरे शहर में जाने के बाद भी सम्पर्क बना रहा और वापिस आने के बाद तो दोस्ती गहरी हो गयी। दीवाली की शुभकामनाएँ देने आया है। माता-पिता बेहद ख़ुश हो रहे थे कि परदेश में दोस्त परिवार मिल गया है! शनिवार की छुट्टी का सदुपयोग करते हुए उस दम्पति को किसी और मित्र के घर भी जाना था। उनके जाने के बाद, “भारत के किस शहर का रहने वाले हैं?” पिता ने पूछा।“पंजाब का कोई शहर बताया था। अभी याद नहीं आ रहा।” पुत्र ने कहा।“पंजाबी बड़े सजे-सँवरे रंगीन पोशाकों में अच्छे लगते हैं। तुम्हारा मित्र तो थोड़ा रंगीन शर्ट डाले हुए था। उसकी पत्नी श्वेत शर्ट-पैंट पहने त्योहार का कोई उमंग ही नहीं झलक रहा था!” पिता ने कहा।“आप भी न! ज़माना बदल गया है…!” माता ने कहा।“चाहे ज़माना कितना भी बदले ‘अप रूपी भोजन’…,” पिता ने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया।“चलिए हमलोग कार्यक्रम में चलें। आया-गया मेरा मित्र पाकिस्तानी है…!” पुत्र ने कहा।

 शुभ दीपावली

Wednesday, 21 August 2024

काली घटा

क्या देशव्यापी ठप हो जाने जाने से निदान मिल जाता है?” रवि ने पूछा!

कुछ ही दिनों पहले रवि की माँ बेहद गम्भीररूप से बीमार पड़ी थीं। कुछ दिनों तक वेंटिलेटर पर रहना पड़ा था। आज वह अपनी माँ को पुनः जाँच के लिए अस्पताल लेकर गया था तो पाया कि सभी हड़ताल पर हैं।

 “सांप्रदायिक हिंसा, पैशाचिक कुकर्म अब यह सब समाज में बढ़ती घटनाओं पर क्या हमलोग मौन होकर अपने-अपने दायित्व को पूरा करते रहें! चुप रहने वाले अक्सर अनजाने ही सही अपराधी का हौसला बन जाते हैं, चुप्पी का सन्नाटा एक तरह से अपराधियों का साथ देना ही तो हुआ।”

“आपलोग भगवान होने के भूमिका में होते हैं! अपनी भूमिका पर गौर करें! यह सुधार में कैसा बदला है एक मौत की प्रतिक्रिया में हजारों को मौत के मुँह में धकेल देना। बदला ले लेने से समाज का भला होता है या बदलाव के आ जाने से?”
“लगता है अभी आप ज्ञान परोसने के मनोस्थिति में हैं, चलिए हम भी फ़ुरसत में हैं शुरू कीजिए आप अपना परबचन।” 
“किसी अपराध को वर्ग, लिंग, जाति, प्रान्त, संप्रदाय में बाँट कर नहीं देखना होगा। लोकतंत्र में पैशाचिकतंत्र को पैर पसारने से रोकने का प्रयास करना होगा!” 
“यानी बदलाव चाहने वाले को ख़ुद सड़क पर नहीं आना है, परदे में रहकर अपराध की योजना बनाने वाले को सड़क पर लाने का प्रबन्ध करना है।”
 “जी हाँ! सदैव याद रखना है, काली घटा छायी, हौसले की रुत आयी! सिर्फ हंगामा खड़ा करना तेरा मकसद नहीं तेरी कोशिश हो कि यह सूरत बदलनी चाहिए…,”

जयप्रकाश ‘विलक्षण’ :- बहुत बढ़िया!
वास्तव में चिकित्सा और अन्य सार्वजानिक सेवाओं में इस प्रकार की हड़ताल का विकल्प अपनाना सही नहीं है क्योंकि ऐसा करने पर लाखों निर्दोषों को सजा मिलती है।

लेकिन समस्या यह है कि ऐसा किए बिना किसी के कान पर जूँ भी नहीं रेंगती। 

भारत की सबसे बड़ी समस्या है, मूल कारणों से दूर भागना। सेक्स एजुकेशन के नाम पर अभी भी भारत निचले पायदान पर है। जबकि वर्तमान में बच्चों के लिए इसकी बहुत आवश्यकता है, ताकि संगी-साथी या गलत लोग उन्हें भटका न सकें। जाने क्यों हमारे यहाँ प्राकृतिक क्रियाओं के विषय में खुलकर बात करने से क्यों परहेज किया जाता है, जबकि बच्चे पैदा करने में हमने विश्व रिकॉर्ड बना दिए हैं और उसी का कुपरिणाम है कि आज हम इस मामले में सर्वोच्च शिखर पर हैं। लेकिन बात करने में शर्म आती है। इस परहेज के कारण हर साल लाखों बच्चियाँ, महिलाएँ खतरनाक बीमारियों का शिकार हो रही हैं। जीवन भर दुःख भोगती हैं। लाखों की दवाएँ खा जाती हैं और अंत में गर्भाशय निकलवाने पर मजबूर होती हैं। लाखों महिलाएँ यौन अपराधों का शिकार होती हैं। मनुष्य की प्रवृति है कि जिस विषय को उससे दूर किया जाता है, वह उसी की ओर उन्मुख होता है। 

इसके लिए स्कूलों में विशेष सत्र चलाए जा सकते हैं। थोड़ा-बहुत प्रयास हो भी रहा है, किंतु पर्याप्त नहीं है।

वैसे बात केवल एक अपराध की नहीं है सभी अपराधों की है और उसके लिए अपराधी के मन में कानून का डर जरूरी है।

उदाहरण के लिए ऐसा क्यों है कि दुबई, कतर आदि मुस्लिम देशों में सोने से, नोटों से भरी गाड़ी रोड पर खड़ी होती है और किसी की हिम्मत नहीं होती कि उसे छू भी सके?

कुछ तो है, जो वहाँ हो गया, और हम महान संस्कृति वाले नहीं कर सके। हम कब कोशिश करेंगे कि प्राचीन का फिजूल गुणगान करने के स्थान पर काम ऐसे करें कि हमारा देश सचमुच महान बन जाए।

और इसके लिए सबसे पहले अपने गिरेबान में झाँकना पड़ेगा कि अपने देश को स्वस्थ खुशहाल और महान बनाने के लिए हम अपने स्तर पर क्या कर रहे हैं।

Thursday, 25 July 2024

सुनामी

सुना है तुम बेहद क्रोधित हो…! समझा करो मोटा अर्थ के असामी के नख़रे उठाने ही पड़ते हैं…!”

 “समय के पहले से उपस्थित साहित्यकार, राजनीति के नेताओं की असफल प्रतीक्षा करें तो क्रोध कम, क्षोभ ज़्यादा होता है…। जो अर्थ मिला है वह हक़ से मिला है। बैंक हो, सरकारी कार्यालय हो या कोई भी विभाग हो वहाँ साहित्य के लिए ‘धन का पूल’ (फंड) होता ही होता है। उचित पात्र तक ना पहुँचे यह अलग मसला है। उचित पात्र को मिल जाए तो ऋण नहीं हो जाता है! ऋण है तो फिर चुकाना पड़ेगा…! चुकाने का कोई सोचता है क्या?”

 “तुम्हारा कहना सही है लेकिन निरंकुश शासन में किया क्या जा सकता है…!”
“विरोध के स्वर को सशक्त किया जा सकता है, निरंकुश को जताया जा सकता है, अपने को ‘कुकरी’ ना समझें, जिसे पैरों पर नभ टिके होने का भरम हो जाता है…,” 
“तुम ही समझ जाओ, बूँद की औक़ात ही कितनी…,”
 “चातक-सीप के लिए बूँद होना स्वीकार है…! सागर में समा गयी बूँद होना क़ुबूल है! सूरज सोखेगा, बादल में बदलेगा फिर खेत, खलिहान, नहर, कुँआ, पोखर, नदी, सागर में उलीच देगा…! कभी-कभी बादल फट जाता है! सैलाब आ जाता है…! हाथी के नाक में चींटी की जैसी, आँख में पड़े रेत के कण सी औक़ात…! दो-चार और उदाहरण दे दूँ क्या…!”
“अच्छा छोड़ो! चलो, अब पेट में चूहों की कबड्डी शुरू हो गयी है…!”
“भोजन में पूड़ी-सब्ज़ी तो होगी ही! चना की घुघनी मिल जाये,”
“तो तुम्हारी मनोस्थिति बदल जाये! चना की घुघनी 
(सामग्री :— 1 कटोरी भीगा हुआ काला चना, 1 प्याज़ कटा हुआ, 2 टमाटर कटा हुआ, 1 टुकड़ा अदरक, 2-4 हरी मिर्च, 1/2 छोटा चम्मच ज़ीरा, 2 तेज पत्ता, नमक स्वादानुसार, 1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला, 1/2 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, थोड़ा सा हरा धनिया कटा हुआ, 2-3 चम्मच सरसों का तेल
पकाने का निर्देश : — चने में नमक डालकर उबाल लें। अदरक, हरी मिर्च, प्याज़ और टमाटर को मिक्सी में पिस लें।
—एक पैन में तेल गरम करें और ज़ीरा चटकाये, तेज पत्ता और अदरक, हरी मिर्च, प्याज़ टमाटर का पेस्ट डालें। सारे मसाले डालकर भून ले और उबले चने डालकर अच्छे से पानी सूखा लें। तैयार है काला चना घुघनी।) तुम्हें कितना पसन्द है…!”
“मुझे चना की घुघनी बेहद पसन्द है। अंकुरित भीगा हुआ चना सुबह खाली पेट खाने से पाचन तंत्र, बीपी, इम्यूनिटी पावर, वजन कम, हड्डी मजबूत, खून की कमी, एनर्जी बूस्टर इत्यादि कई बीमारियों में बेहद लाभ मिलते हैं। मेरी सासूजी को भी बेहद पसन्द था! आजीवन वो सुबह के नाश्ते में एक कड़ाही में थोड़े पानी में बिना फुलाये चना को उबाल लेतीं, जब पानी सूखने के कगार पर होता तो उसमें नमक, कटी हरी मिर्च, कटा प्याज, थोड़ा सरसों का तेल डालकर भून लेतीं और भुने चूड़े के संग खाती थीं।”
“बढ़िया! चना की घुघनी तो नहीं है, छोला और पूरी-सब्जी, चावल है।”
“जो सब्जी उपलब्ध है वह ख़राब हो रही है, पूरी सूखकर पापड़ हो रही है! अच्छा यह बताओ, भोजन समय से आ गया था फिर सारा कार्यक्रम ख़त्म कर के चार बजे भोजन करवाने का क्या कारण रहा होगा…!”
“हाँ। वही सही होता। सदस्यों की रचना का पाठ भी बाक़ी है।”
“सदस्यों की रचना का पाठ कहाँ होना है…!”
“सदस्यों के उत्थान पर इतना शोर और जलसा और सदस्य केवल भीड़ का हिस्सा…”
“सदस्य ताली बजाने वाली भीड़!”

Wednesday, 17 July 2024

ज्ञानमीमांसा : अनरसा

 “पिछले चालीस वर्षों से मैं अपनी पत्नी को अपने साथ लेकर जाता था! अब ये मुझे अपने साथ लेकर चल रही हैं!” बिहार के गया जी में साहित्यिक यात्रा के क्रम में देश के कोने-कोने से एकत्रित हुए साहित्यकारों के सम्मुख, विदाई सत्र में गोखले मुख़ातिब थे!

 “महोदय! हमारी माँ पहले भी आपकी अनुगामिनी थीं और आज भी उन्हें हमलोगों ने आपकी अनुगामिनी बने ही देखा! इस तुषार के बच्चे को देखिए अपनी पत्नी से तलाक़ ले रहा है!” 

“तलाक़ लेने का प्रस्ताव मैंने नहीं रखा था…! हाँ नहीं तो!”

 “चलो मान लिया कि तलाक़ का प्रस्ताव तुमने नहीं रखा लेकिन पत्नी को खर्च करने के लिए रुपया नहीं देना पड़े इसलिए तुमने नौकरी से सेवानिवृत्ति ही ले लिया…!”

“हाँ! ना रहेगा बाँस और ना बज सकेगी बाँसुरी..!”

“आजकल जितने महीने शादी के चोंचलें चलते हैं उतने महीने शादी ही नहीं चलती है…!”

“हाँ! हाँ! अब बताओ कौन कितना सही और कौन कितना ग़लत? हमने माँ को भूटान यात्रा के क्रम में जिस तरह महोदय का ख़्याल रखते देखा! और आँखों के सामने से माँ के ओझल होते, महोदय को परेशान होते देखा गया! इश्क़ के उफान का उदाहरण इनदोनों के जज़्बात को नमन करता हूँ।”

 “सुनो तुषार! दोशीज़ा के लिए थोड़ी सी फ़िकर और थोड़ी सी क़दर : रिश्तों पर दिख जाता है गहरा असर…!”

 “गया जी को केवल मोक्षधाम के लिए नहीं जाना जाता है। यहाँ का तिलकुट {भागलपुर के कतरनी चूड़ा और गया के तिलकुट का अब भी कहीं दूसरा जोड़ नहीं! (सामग्री : 8 —500 ग्राम तिल, 400 ग्राम गुड़ / गुड़ पाउडर, 250 भूना खोया, मुट्ठी भर भूना हुआ काजू का टुकड़ा (ड्राई रोस्ट) 1. सबसे पहले तिल को सूखा भून लेना है हल्का सा सुनहरा। 2. अब अगर आपने साबुत गुड़ लिया है तो पहले उसको टुकड़ों में तोड़ ले गुड को कुटेंगे तो वो काफी अच्छे से टूट जायेगा मै तो गुड़ का पाउडर ही ले रही हूँ जो आजकल आराम से बाज़ार में मिल जाता है। 3. अब थोड़ा-थोड़ा गुड़ और तिल को साथ में मिक्सर/ब्लेंडर में धीरे धीरे पीस लें ध्यान रहे तिल का तापमान गरम से गुनगुना तक हो, ठंडा नहीं। 4. खोया मिला ले और अब इसमें सूखा भूना काजू टुकड़ा भी मिला लें। वैसे ये पूरी तरह से वैकल्पिक भी है।) आइये पूरी तैयार है सीधी सरल किन्तु बहुत ही स्वादिष्ट और सेहतमंद सर्दियों की मिठाई। उसे आकार तो हम-आप अपनी-अपनी मर्ज़ी से दे लेंगे…!} भी प्रसिद्ध है तो क्या आपलोग जानते हैं कि गया जी की एक और मिठाई लोगों की जुबान पर खूब चढ़ती है। जी हाँ! आपने सही पहचाना, बात कर रहा हूँ यहाँ की ही प्रसिद्ध अनरसा की।

चावल का अनरसा {2 कटोरी चावल आवश्यकतानुसार घी/तेल तलने के लिये 1.1/2 कटोरी चीनी मावा -सौ ग्राम तिल आवश्यकता के अनुसार दूध पकाने की विधि 1. सबसे पहले चावल को तीन दिनों के लिये भिगोकर रखना है और रोज़ पानी को बदलते रहना है 2. तीन दिनों के बाद चावल को अच्छे से धोकर सूखा लेना है। पंखें के नीचे कपड़े पर फैलाकर। चावल को मिक्सर जार में डालकर बारीक पीस लेना है और छलनी से छान लेना है… 3. अब आधा कप चीनी को भी बारीक पीसकर छान लेना और एक पैन में एक कप चीनी आधा कप पानी डालकर एक तार की चाशनी बना लेना है 4. अब चावल के आटा और खौलते चाशनी को मिला लेना है 5. अब दो चम्मच दूध डालकर आटा गुथ लेना है और दो घंटे के लिये सेट होने के लिये रख देना है 6. अब आटे और आधा मावा को मसल-मसलकर चिकना कर लेना है उसके लिये 5 मिनट तक मसले और अब छोटी-छोटी लोई बना लेना है 7. आधा मावा में चीनी का पाउडर मिला कर भरावन के लिये गोली बनाना है। 8. ⁠अब एक लोई को हाथों से दबा कर थोड़ा सा गोल बेल लेना है और उसमें मावा की गोली को भर लेना है। और सभी अनरसा ऐसे ही बना लेना है 9. ⁠एक अनरसा के बॉल को हल्का चिपटाकर एक तरफ तिल चिपका लेना है 10. ⁠अब एक कड़ाही में घी/तेल गरम कर लें और धीमी आँच पर अनरसे को तल लेना है, अनरसा को एक ही तरफ से ही सेंका जाता है 11. ⁠सभी अनरसो को एक जाली पर रखते जाये ताकी अतिरिक्त घी/तेल निकल जाये} स्‍वाद का जादू ऐसा कि गया जी आने वाले अनरसा लेकर ही लौटते हैं। ज़ुबान भी थोड़ी मीठी रखनी चाहिए…!”

Wednesday, 3 July 2024

पटी दरारें

आग पर चढ़े बर्त्तन में खौलते अदहन में खुदबुदाते चावल सी नहीं होती स्त्रियाँ कि अँगूठे और तर्जनी के बीच एक दाने को मसल कर अंदाज़ा लगा लिया जाता है, चलो सारे चावल पक गए होंगे : अब भात तैयार हो गया…! वैसे भी! उस तरह देखने के बाद भी चावल का स्तर कुछ चावल अधपके रह ही जाते हैं…! स्वतंत्रता से एक कदम आगे ही होती स्वच्छंदता : विनाश की ओर बढ़ जाती हैं स्त्रियाँ! लेकिन दोष केवल स्त्रियों का भी नहीं होता है...। यह ढूँढ़ना सबसे आसान है दूसरे को क्या करना चाहिए। सबसे कठिन है यह ढूँढ़ना मुझे क्या करना चाहिए…। आगे की कहानी कुछ यूँ है, अगुआ की मेहरबानी से पुष्पा की शादी तय हो गयी थी। दोनों पक्षों की बड़ाई को बढ़ा-चढ़ा कर बताना उसका धर्म था। अगुवा अपने कार्य में कुशल था। वैसे कुछ बातें सच भी थी, जैसे कि पुष्पा सारे कार्य करने में दक्ष है-खाना अच्छा बनाती है, कढ़ाई बुनाई-सिलाई अच्छा कर लेती है। अपने कपड़े ख़ुद सिलती है। लेकिन शादी में सिलाई मशीन नहीं मिलने के कारण उलाहने मिलते। कोई ना कोई शब्दों से कोंच देता। उसकी शादी के पाँच वर्षों के बाद उससे बड़े भाई की शादी में उसे सिलाई मशीन नेग में मिल गया। बिहसती हुई सिलाई मशीन लेकर ससुराल आयी। विदाई में मिले माठ (— भइ जो मिठाई कही न जाई। सुख मेलत खत जाय बिलाई। मतलड़ छाल और मरकोरी। माठ पिराँके और वुँदौरी ।— जायसी (शब्द॰)। विशेष— मैदे की एक मोटी और बड़ी पूरी पकाकर शक्कर के पाग में उसे पाग लेते हैं। इसी को माठ कहते हैं। यही मिठाई जब छोटे आकार में बनाई जाती है, तब उसे 'मठरी' वा 'टिकिया' कहते हैं। मठरी नमकीन भी बनाई जाती है। बिहार में वर पक्ष से वधू के घर माठ आता-जाता है।)-लड्डू-खाजा-गाजा-खुरमा-बालूशाही से ससुर जी को प्रसन्न करने का बहाना बना रही थी। घर में बने मिठाई का स्वाद ही अलग होता है। आसानी से बनाया जा सकता हैं। बालूशाही खाने में एकदम खस्ता होती है। यह बाहर से हल्की कठोर और अंदर से एकदम मुलायम होती है। बालूशाही मुँह में रखते ही पिघल जाती है। जानें कैसे बनती है बालूशाही...। बालूशाही बनाने की सामग्री:

मैदा- 2 कप

घी- 1/2 कप

बेकिंग पाउडर- 1 छोटी चम्मच

मावा- 1/4 कप

पिस्ते- 10-12 बारीक कटे

बादाम- 3 बारीक कटे

काजू- 3 बारीक कटे

पाउडर चीनी- 2 टेबल स्पून

चीनी- 2 कप, चाशनी बनाने के लिए

इलायची पाउडर- 1/2 छोटी चम्मच

घी- तलने के लिए

एक बड़े बर्तन में 2 कप चीनी और 1 कप पानी डालकर उसको गैस पर रख दें। चाशनी को एक तार बनने तक पकाएं। अब उसे ठंडा होने तक रख दीजिए, लेकिन ढँककर रखी जाएगी ताकि हल्की गरम भी रहे। बालूशाही इसमें ही डुबाकर निकाला जाएगा।

विधि :– मैदा को एक बर्तन में लें, इसमें बेकिंग पाउडर, घी डालकर मिक्स कर फ्रिज के ठंडे पानी से गूंथ लें, लेकिन पूरी तरह मसल-मसल कर रोटी की तरह नहीं मिलाना है और उसको 10-15 मिनिट के लिए ढक्कर रखें। स्टफिंग बनाने के लिए पैन को गैस पर रखें और इसमें मावा डालें। मावा को भूनकर एक बर्तन में रखें। मावा ठंडा हो जाने पर 2 बड़े चम्मच पाउडर चीनी, बारीक कटे काजू, बादाम, थोडा़ सा इलायची पाउडर मिलाकर रख लीजिए।

गुथे मैदे से छोटी-छोटी लोइया बनाएं। एक-एक लोई को कटोरी का आकार देते हुए गोल करें, बीच में 1/2 छोटी चम्मच मावा स्टफिंग डालकर मैदे को चारों ओर से उठाते हुए स्टफिंग को बंद करें। ऐसे ही सारी बालूशाही बनाएं। तलने के लिये कढ़ाई में घी डालकर धीमी आंच पर हल्का गरम कीजिए। बालूशाही को डालकर हल्की सी ब्राउन होने तक तल लें। जब सब तल जाए तो हल्की गरम चाशनी में डाल-डालकर निकाल लें।

कुछ ही दिनों में उसकी ननद की शादी तय हो गयी तो उसे समझाया गया कि अपना उपहार वो ननद को दे दे। वो तो सास की मशीन पर अपनी कुशलता की परीक्षा पास कर ही चुकी है, (ननद अपने कपड़े भाभी से सिलवाती, पहनकर महाविद्यालय में प्रचार भी करती। प्रधानाध्यापक की बिटिया पक्की सहेली थी। अब सहेली की भाभी के हुनर का आनन्द उसे भी मिलना चाहिए तो उसके भी कपड़े सिलने आये। भाभी का डर से हालत ख़राब। गला काटने में गलती हो जाना स्वाभाविक बात रही। वो तो पूरा कपड़ा था जिससे कुशलता से गलती को सुधार लिया गया। राज का राज आज खोला जा रहा है…।) आगे भी सफलता पाती रहे। पति महोदय ने वादा किया कि शादी के ख़र्चों से उबरते ही पत्नी की पसन्द की सिलाई मशीन ख़रीद देंगे। बड़े भाई हैं अत्यधिक खर्च करना उनका दायित्व बनता है। वो भी सहयोगी होने के ध्येय से ख़ुशी-ख़ुशी अपने ज़िगर के टुकड़े सा सिलाई मशीन ननद को सौंप दी। ननद के लिए तो हाथी शौक़ के लिए पालने वाली सी चीज थी…! बहुत समझा-बुझाकर मशीन से सिलने के लिए एक बार बैठायी गयी थी। ख़ैर! पति महोदय अच्छा वाला जिससे कढ़ाई भी आसानी से हो और सिलाई भी बढ़िया हो सके महँगा वाला सिलाई मशीन ख़रीद देने को कहा गया। वे अनसुना करते रहे तो उनका वादा याद दिलाया गया क्योंकि त्रिया चरित्र आँसू हथियार असर नहीं करता था…! उन्होंने अपना वादा पूरा करने के लिए पुष्पा के सामने शर्त रखी कि “तुम वादा करो कि किसी तरह से भी सिलाई मशीन को आमदनी का माध्यम नहीं बनाया जाएगा।” सपना का अण्डा टूटकर बह गया! क्या करेगी इतना महँगा सिलाई मशीन लेकर…। कोखजाई नहीं होने की टीस उस दिन पुनः हृदय में फफोले बना गयी…! पति अभियन्ता थे, उनके साथ काम करने अनेकों अभियंताओं की पत्नियों का कल्ब खोला गया जिसमें कढ़ाई-सिलाई, वाटिक, बाँधनी, फ़ैब्रिक पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग, बालू पेंटिंग, निब पेंटिंग, स्केचिंग इत्यादि तमाम कलाओं को सीखने सिखलाने में अपने को रमा दी। देखने वाले कहते गिनीज़ बुक में नाम दर्ज करवाना है क्या? व्यंग्य रहा हो या खिल्ली उड़ाना, मुस्कुराकर वक्त के बनाये राह पर चल रही थी। पति का जहाँ तबादला होता वहाँ उसका प्रचार पहले पहुँच जाता। पति उसके मुँह पर प्रशंसा नहीं करते लेकिन उसकी कला को उसकी क्षमता को पहचानते तो थे! उसके पति अपने पेशे में बेहद ईमानदार थे तो तबादला भी जल्दी ही जल्दी होता। एक नये शहर में पहुँची तो चमड़े-रेक्सिन के बैग बनाना सीखने का मौक़ा दिखा। वहाँ फार्म भरना था जिसमें आय भरना था। जहाँ सिखाया जाता था वहाँ रहने, नाश्ते-खाने की व्यवस्था थी, सामान ख़रीदने का पैसा मिलता था। उसमें उसके पति के आय के कारण उसका नामांकन नहीं हो सकता था। वह प्रबंधक से मिलने का समय ली और सीखने का मौक़ा माँगी बिना किसी चीज का लाभ लिए। तब उसका नामांकन हो गया। उसी समय वह मोती, पोत, नग जड़े पत्थर से गहना बनाना भी सीख ली। अलग-अलग प्रांतों की महिलाओं से मिलने का जब मौक़ा मिलता तब उस प्रान्त का भोजन बनाना सीख लेती। कुशल महिला बनने में दूरदर्शन भी बहुत सहायक रहा। अनेक कार्यक्रम प्रसारित जो होते सभी को ध्यान से देखती सीखती बनाने का प्रयास करती। मायके से बुनाई मशीन भी उपहार में मिल गया। उसके हाथ से बुनाई का हुनर ज़्यादा पसन्द किए जाते। उसके हाथ का बना भरवा दही बड़ा आह-वाह निकलवा ही लेता!

भरवा दही बड़ा बनाने की सामग्री

250 ग्राम उड़द की दाल

एक मुट्ठी मूंग की धुली दाल

आवश्यकतानुसार सूखे मेवा (काजू,किशमिश, पिस्ता) बारीक काटा हुआ

2 हरी मिर्च कटी हुई

थोड़ा सा हरा धनिया

चुटकी भर सोडा

स्वाद अनुसार नमक

आवश्यकतानुसार तलने के लिए तेल

1/2 किलो दही

1 छोटी कटोरी खट्टी मीठी इमली की चटनी

आवश्यकतानुसार हरी चटनी

थोड़ा जैम

थोड़ा सा अनारदाना

थोड़ा सा हरा धनिया

थोड़ा सा चाट मसाला

थोड़ा सा भुना जीरा पाउडर

स्वाद अनुसार काला नमक

स्वादानुसार भूना लाल मिर्च पाउडर

पकाने का निर्देश : कटी हुई हरी मिर्च, सूखे मेवे, धनिया मिलाकर भरने के लिए

दाल को अच्छे से धो कर 6-8 घंटे के लिए भिगोकर मिक्सर में थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट बना लें इसको हाथों से अच्छे से 5 मिनट तक लगातार फैटे । कुछ घंटे ढँककर छोड़ दें जिससे मिश्रण थोड़ा हल्का हो जाए तब उसमें नमक मीठा सोडा डालकर अच्छे से मिक्स करें और हथेली में हल्का पानी लगाकर थोड़ा पेस्ट रखें उसमें भरावन भरें तथा गर्म तेल में मध्यम आँच पर छोटे-छोटे बड़े तल लें। हल्के गर्म पानी में दही बड़ों को डालते जाएं और आधे घंटे तक भिगोकर रखें। थोड़ा सा दबाकर एक बड़े बर्तन में दही बड़े रखें दही को छलनी में मैश करके छान लें इसमें दो तीन चम्मच पिसी हुई चीनी मिक्स करें और बड़ों के ऊपर डाल दें। इसके ऊपर मीठी चटनी हरी चटनीहरा धनिया, भुना जीरा पाउडर, चाट मसाला, नमक, लाल मिर्च, अनारदाना डालें और सबसे ऊपर जैम सजायें

जिस तरह पुष्पा अपने को तपाती रही बिना कोई मंजिल तय किए चलती रही…, बस! चलती रही, चलती रही! आमदनी की ज़रूरत ही क्या थी!


Monday, 24 June 2024

गुलाबजामुन : ©️नीरजा कृष्णा, पटना


आज रवि की पत्नी मधु की मुँह दिखाई की रस्म होने जा रही है। पास- पड़ोस की महिलाऐं तथा घर की सब बड़ी-बुजुर्ग महिलाऐं एकत्रित हो गई थी। अद्वितीय रूप की मालकिन मधु की सब बलैया ले रही थी। वो सबको बहुत पसंद आई थी। मालती जी मोहित होकर अपनी बहू को निहारे जा रही थी, तभी जो़र का शंखनाद हुआ। सबने चौंक कर दादी जी की ओर देखा, सबके मन में था ...बाप रे ! इस शुभ घड़ी में कौन सा बम फूटेगा? मालती मिन्नत भरी निगाहों से उन्हें देखने लगीं, मानों कह रही हों आज कोई कड़ी बात ना बोलें पर दादी तो दादी है। उन्होंने मालती जी को ही ललकार डाला, “देख बहू! तू तो भोली-भाली है पर ये आजकल की बहुएं बहुत चोखी होशियार होती हैं। तू! बहू, को समझा दे कि हमारे घर में बड़े बुजुर्गों का नाम नहीं लिया जाता है। ये आजकल की छोरियाँ कितनी शान से अपने मरद का नाम भी लेती है। तू  इसे समझा दे.. यहाँ हर टाइम रवि, रवि न चलेगा।"

सब चुप पर रवि की बड़ी दीदी रंजना को मजा़ आने लगा.."दादी! ऐलान भी किया तो अधूरी बात का। अरे पूरी तरह नई बहू को समझाओ 'क्या बोलना है रवि की जगह?"

"हट निगोड़ी! मुझसे ठिठोली कर रही है। आजकल छोरियाँ सब सीखी-पढ़ी हैं! हम लोग तो 'एजी, ओजी, सुनोजी तो' करते थे, सब सुनकर मधु लोटपोट हो गई।

उसी दिन शाम को मधु से रसोई में कुछ बनवाकर रस्म करवाई जानी थी, बुआजी ने बड़े चाव से पूछा ..."मधु ! क्या बना रही हो बेटा?"

"सब तो मम्मी जी ने बनवा ही लिया है ,मैं तो केवल पापा और ताऊजी को चीनी के रस में डुबोने जा रही हूँ। दोनों के ऊपर  आपको सजा दूँगी...।"

बुआजी और दादीजी तो अवाक् देखने लगी..."ये तू क्या अंट-संट बक रही है बेटा! पापा और ताऊ जी के लिए क्या बोल रही है? और उनके ऊपर मुझे सजाएगी, तेरा मतलब क्या है..?"

"बुआजी! इसमें ना समझने वाली क्या बात है?  दादी जी की आज्ञा का पालन ही तो कर रही हूँ। मैं गुलाबजामुन बना रही हूँ, ऊपर से केसर डालूँगी...।"

तब सबको समझ में आया कि पापाजी का नाम गुलाबचंद, ताऊजी का नाम जमुना प्रसाद तथा प्यारी बुआजी का नाम केसर देवी है।

©️नीरजा कृष्णा, पटना

गुलाबजामुन : लहालोट

—विभा रानी श्रीवास्तव, पटना

 “शानदार—मज़ेदार—धारदार नीरजा कृष्णा, पटना की लिखी रचना, लेकिन : लेकिन, शीर्षक उस मुक़ाबले में थोड़ा पिछड़ गया! आदरणीया क्या इस रचना का शीर्षक बदलकर और गुलाबजामुन की रेसपी के संग पुस्तक ‘बिहारी व्यंजन : स्वाद कथा’ में शामिल करना चाहेंगी?”

“विभा रानी श्रीवास्तव! कुछ मार्गदर्शन करिए न।”

“नीरजा कृष्णा आदरणीया! : नहले पर दहला : बीस पर बाईस…!”

“विभा रानी श्रीवास्तव! वाह वाह: : ‘बीस पर बाईस’ में नवीनता है, उपयुक्त है! इसे ही रहने दें।”

जी! दादी सास, सास से बीस थी तो पोता बहू को बाईस हो जाना स्वाभाविक था!

सर्दियों में अक्सर कुछ मीठा और गर्मागर्म खाने की लालसा/तीव्र इच्छा होती है। ऐसे में हलवाई की दुकान पर जाने की बजाय आप घर पर ही ये गुलाबजामुन बनाकर मिलावट से बच सकते हैं। आइए बिना देर किए जान लीजिए ये आसान (पाँच लोगों के लिए) रेसिपी।

गुलाबजामुन बनाने के लिए सामग्री :- 

खोया (मावा) - 1 कप

मैदा (आटा) - 1/4 कप

देसी घी - 1/4 चम्मच

इलायची पाउडर - 1 चम्मच

बेकिंग पाउडर - 1/4 चम्मच

चीनी - 1 कप

पानी - 1/4 कप

केसर - 1 चुटकी

गुलाबजामुन बनाने की विधि :- सबसे पहले एक कढ़ाई में घी गरम करें और उसमें मावा डालकर अच्छी तरह भून लें, इसके बाद इसमें बेकिंग पाउडर डाल दें। इसे धीरे-धीरे मिक्स करते हुए गूंथ लें, इसमें आधा चम्मच इलायची पाउडर भी डाल दें। इसके बाद अगर गोल आकार में गुलाबजामुन बनाने हैं तो इनकी छोटी-छोटी गोली बना लें। अब एक तरफ चाशनी तैयार करनी शुरू कर दें। इसमें सबसे पहले कढ़ाई गैस पर रखें और इसमें चीनी और पानी डालें और उबालने दें, इसमें बाकि आधा चम्मच बचा हुआ इलायची पाउडर भी डाल दें और उबलने दें। जब इसमें एक तार बनने लगे तो गैस बंद कर दें। अब तैयार की हुईं गोली से गुलाबजामुन तलने हैं। इसके लिए एक कढ़ाई में घी गर्म कर लें। जब ये अच्छी तरह गर्म हो जाए तो इसमें गुलाबजामुन को डालकर भूरा-कत्थई रंग आने तक तल लें। ध्यान रहे, इस वक्त गैस की लौ माध्यम ही होनी चाहिए। जब ये सब तल जाएं तो इन्हें गर्म चाशनी में डाल दें। इन्हें 1 घंटा इसी चाशनी में भीगने के लिए छोड़ देंगे तो ये खाने के लिए तैयार हो जाएंगे। इन्हें गर्मागर्म ही सर्व करें।

एक विशेष बात ध्यान रखने योग्य :- तलने के पहले गुलाबजामुन के बॉल में एक-एक इलायची दाना भर दिया जाये तो बढ़िया बनता है…। इलायची के दाने पर चीनी की परत होती है जो बाद में गरम होने पर पिघल जाती है और गुलाबजामुन के बीच में गुलठी भी नहीं हो पाती है…।

तथा बिना कुछ और साझा किए, इस कहानी का समापन नहीं हो सकता है…! मेरे घर में अक्सर गुलाबजामुन (मिठाई! फल नहीं! आपको पता होगा गुलाबजामुन फल भी होता है। इस फल का नाम गुलाबजामुन इसलिए रखा गया क्योंकि बताया जाता है कि इसका स्वाद बिलकुल गुलाबजामुन की तरह ही होता है। यह अमरूद की तरह हल्का पीले-हरे रंग का होता है। यह फल पेड़ पर फरवरी में लगना शुरू हो जाता है और अप्रैल- मई तक खाने लायक हो जाता है। इसमें एक बड़ा बीज भी होता है।फल के बीज का सेवन शरीर में नए सेल्स बनाने का काम करता है। इस फल के बीज का पाउडर ब्लड शुगर स्तर को कंट्रोल कर डायबिटीज़ में फायदा पहुँचाता है। जामुन के बीज की तरह। गुलाबजामुन फल के पत्ते के गुण किसी भी तरह की डायबिटीज़ में फायदा पहुँचा सकते हैं। पत्तियों को सुखाना है और फिर इनका पाउडर तैयार कर गुनगुने पानी के साथ पी लेना है। मुख्यत: उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बंगाल, राजस्थान में पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों में भी कहीं-कहीं मिल जाते हैं।) रहता था। मेरे पति (डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव) और बेटे (महबूब श्रीवास्तव) को बहुत ही पसन्द था! (था इसलिए कि समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है…) बेटा को जब गुलाबजामुन मिठाई खाने की इच्छा होती, फ्रीज खोलता डिब्बा/बर्त्तन निकालता और पहले गिनती करता। उपयुक्त संख्या को तीन भाग करता, मान लीजिए, , गुलाबजामुन मिठाई संख्या में सोलह है तो तीन हिस्सा करने पर पाँच-पाँच-पाँच और एक अधिक तो झट से वो खा लेता फिर थोड़ी-थोड़ी देर अपने हिस्से का पाँच मिठाई खा लेता। अगर यह बँटवारा सुबह के समय हुआ है तो उसके पिता कार्यालय जा चुके होते और मुझे खाने की इच्छा नहीं तो हमदोनों के हिस्से का दस मिठाई फ्रिज में रखा जाता। दोपहर-शाम में फिर दस का तीन हिस्सा लगता, तीन-तीन-तीन और शेष एक बेटे के हिस्से… यानी बेटे के फिर से चार गुलाबजामुन मिठाई खाने के बाद , रात में ६ बच जाता तो हमतीनों कभी-कभी दो-दो-दो के भागीदार हो जा सकते थे…। नहीं तो…,

Saturday, 22 June 2024

लड्डू : फूटना मन का!

जॉर्ज बर्नाड शॉ ने कहा है, “दुनिया में दो ही तरह के दु:ख हैं —एक तुम जो चाहो वह न मिले और दूसरा तुम जो चाहो वह मिल जाए!”

हमलोग कामख्या मन्दिर बहुत बार गये हैं : बहुत पहले जब गये तो गोहाटी मेरे पति अपने सरकारी दौरे पर थे तो वहाँ के लोगों ने आराम से दर्शन की व्यवस्था करवा दी। : दूसरी-तीसरी बार गये तो भी पंक्ति में लगकर बहुत परेशानी नहीं उठानी पड़ी। पिछले साल (सन् २०२३) गये तो भीड़ देखकर भाग चलने की इच्छा हुई, लेकिन हमारे साथ जो लोग थे उनकी पहली यात्रा थी बिना दर्शन मायूस हो रहे थे : एक पण्डित जी मिले बोले पाँच सौ लेंगे चार व्यक्ति का : सौदा बुरा नहीं लगा एक बार और चित्र उतारने का मौका मिल रहा था। मन में लड्डू फूटना स्वाभाविक था। मन्दिर में प्रवेश के कई दरवाज़े बन गये हैं : दो दरवाजे के पहले ही पण्डित जी बोले कि हो गया दर्शन, अब बाहर निकल लेते हैं और आपलोग मेरी तय राशि दे दीजिए।

“अरे। वाह! हमलोग गोहाटी रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डा से ही नहीं मान लेते कि दर्शन हो गये? बिना दर्शन के राशि तो नहीं देने वाले।”

कुछ देर बकझक के बाद पण्डित जी बिना राशि लिए ग़ायब हो गए…। पता नहीं उनके मन के लड्डू का क्या हुआ होगा…! लड्डू यानी चूड़ा, मूढ़ी (मुरमुरा), गोंद, तिल, तीसी, बेसन इत्यादि के लड्डू : आमतौर पर सर्दियों के मौसम में लड्डू बनाये जाते हैं। लोहड़ी और संक्रांति के त्योहार के मौके पर भी तिल के लड्डू बनाएं जाते हैं। भूने तिल, गुड़ और केसर के साथ आप भी इन्हें आसानी से घर पर बना सकते हैं। तिल के लड्डू बनाने के लिए सामग्री: आप चाहे तो इन्हें अन्य किसी मौके पर भी बना सकते हैं। इन्हें बनाने के लिए आपको तिल, गुड़, केसर और फुल क्रीम दूध की जरूरत होती है।

चार लोगों के लिए : मध्यम आकार : तिल के लड्डू की सामग्री :- एक कप सफेद तिल

आधा कप खोया

आधा कप गुड़

एक चुटकी केसर

दो बड़ा चम्मच फुल क्रीम दूध

तिल के लड्डू बनाने की वि​धि

एक पैन लें उसमें थोड़ा घी डालें फिर इसमें तिल डालें।इसे लगातर चलाते रहे जब तक तिल हल्के गोल्डन ब्राउन न हो जाएं। पैन को आंच से हटा लें और भूने हुए तिल को एक प्लेट में निकाल लें।

केसर को गर्म दूध में भिगों दें। जिस पैन में तिल भूनें थे उसमें गुड़ को डालकर पिघला लें इसे लगातर तब तक चलाते रहे जब तक वह आधा न रह जाए। इसे आंच से हटा लें।

इसके सख्त होने से पहले इसमें केसर वाला दूध डालें और मिलाएं। फिर इसमें मुलायम खोया और तिल डालकर चम्मच की मदद से अच्छी तरह मिला लें।

अब अपने हाथ में थोड़ा सा घी/पानी लगाएं और तैयार किए गए मिश्रण से मध्यम आकार के लडूड बनाएं।इसे सर्व करें और घर पर होने वाली पार्टी के दौरान आप इसे स्वीट स्नैक के रूप में भी सर्व कर सकते हैं।

आप चाहें तो इसमें सूखे मेवा जैसे बादाम काजू और अखरोट पिस्ता भी डाल सकते हैं। लेकिन इन्हें हल्का भून लें और बारीक करके मिश्रण में डालें। इसके बाद आप लड्डू बना सकते हैं।

चूड़ा का लड्डू (बिहारी लाई) बनाने में ठंढ के मौसम में भी पसीना छूट जाता है। पड़ोसन चाची रात में सभी के सो जाने के बाद में बनाती थीं। देर रात बाहर से किसी के आने की उम्मीद भी नहीं रहती थी। उनका कहना था कि “नज़र लग जाने पर बिखरता है। उनका मानें तो नज़र लगाने से गुँथें रिश्ते भी बिखर जाते हैं…! सबसे आसान है तिल का लड्डू बनाना! टूटता-फूटता नहीं है…! वैसे भी टूटना-फूटना तो विश्वास और मन का होता है! ना जाने किस पदार्थ से गढ़ा गया तथा कच्चा-पक्का पकाया गया…! उस ज़माने की बात है मॉल संस्कृति अपना पैर अंगद सा जमायी नहीं थी! लड़कियाँ चौके में समय बिता लिया करती थीं। उनमें यह स्पर्द्धा करने का साहस नहीं था कि मैं भी बाहर से आयी हूँ, मैं ही चौके में क्यों जाऊँ! मेरी ननद को भी पाक-कला में निपुण होने का शौक़ था। नया व्यंजन आज़माती रहती थीं। उन्हें अपनी सहेली के घर से गोंद का लड्डू चखने का मौक़ा मिल गया था। 

गोंद! माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण होते हैं।गोंद हिन्दी में ‘खाद्य गोंद’ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जो एक पौधे का गोंद है जो विभिन्न पेड़ों के रस से प्राप्त होता है। एशियाई खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले सबसे आम खाद्य गोंद बबूल गोंद (अरबी गोंद) और ट्रैगैकैंथ गोंद हैं। इन दोनों के गुण और पोषक तत्व अलग-अलग होते हैं, इसलिए ये व्यंजनों में और यहाँ तक ​​कि सेवन के बाद शरीर पर भी अलग-अलग तरीके से काम करते हैं। बबूल का कीकर इस पेड़ का हिन्दी नाम है।गोंद के लड्डू बनाने में बबूल/कीकर के पेड़ का सूखा हुआ रस इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल गोंद पंजीरी बनाने में भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि बबूल का गोंद शरीर को गर्म रखता है, इसलिए इसका प्रयोग सर्दियों के दौरान व्यापक रूप से किया जाता है तथा गर्मियों के दौरान इसका प्रयोग नहीं किया जाता, क्योंकि इसकी प्रकृति गर्म होती है। दूसरे प्रकार का खाद्य गोंद है ट्रागाकैंथ गोंद। इसे भारतीय भाषा में ‘गोंद कतीरा’ या ‘बादाम पिसिन’ के नाम से जाना जाता है। यह मूल रूप से बेस्वाद होता है और पानी में डालने पर फूल जाता है और जेली की तरह नरम हो जाता है। गोंद कतीरा का व्यावसायिक रूप से खाद्य पदार्थों को गाढ़ा करने, स्थिर करने और पायसीकारी बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे जिगरथंडा, फालूदा जैसे पेय पदार्थों और यहाँ तक ​​कि शेक, स्मूदी और शर्बत में भी मिलाया जाता है। ट्रागाकैंथ गम की प्रकृति बेहद ठंडी होती है और इसे गर्मियों के दौरान इस्तेमाल करना फायदेमंद माना जाता है।

मेरी ननद में अब उतावलापन था ख़ुद से गोंद का लड्डू बनाकर निपुणता हासिल करने का। सहेली को सिखलाने के लिए कहा गया तो पता चला उनकी माँ बनाती हैं। उनसे सामग्री लिखवाकर ला दी :- 

(कप = 240 मिलीलीटर)

▢1¼ कप गेहूं का आटा

▢¾ से 1 कप गुड़ पाउडर (मैंने ¾ का इस्तेमाल किया) या पाउडर चीनी

▢½ कप घी (गोंद के लिए 5 बड़े चम्मच + आटे के लिए 3 बड़े चम्मच) (आवश्यकतानुसार अधिक)

▢⅓ कप गोंद लगभग 65 ग्राम खाने योग्य गोंद/अंटू

▢2 बड़े चम्मच सूखा नारियल (खोपरा - वैकल्पिक)

▢¼ कप बादाम और काजू (कटे हुए या मिक्सर ग्राइंडर में पिसे हुए)

▢1 बड़ा चम्मच चिरौंजी (वैकल्पिक या सफेद खसखस)

▢¼ से ½ चम्मच इलायची पाउडर या इलायची

गोंद के लड्डू स्वादिष्ट, पौष्टिक और समृद्ध पारंपरिक मीठे गोले हैं जो खाने योग्य गोंद, गुड़, पूरे गेहूं के आटे, मेवे, बीज और घी से बनाए जाते हैं। ये पारंपरिक मेवेदार गोंद के लड्डू स्वाद से भरपूर होते हैं, इनकी बनावट बहुत अच्छी होती है और माना जाता है कि ये तुरंत ऊर्जा बढ़ाते हैं। प्रतिरक्षा बढ़ाने और शरीर को गर्म रखने वाले गुणों के लिए प्रसिद्ध, ये गोंद के लड्डू और पिन्नी पारंपरिक रूप से भारत में सर्दियों के दौरान बनाए और खाए जाते हैं।

गोंद के लड्डू बनाने की सारी सामग्री तो तुरन्त ख़रीद कर बाज़ार से आ गयी। सहेली के द्वारा उनकी माँ तक सूचना भेज दी गयी। उनकी माँ हमारे घर पर ही आकर महाविद्यालय के किसी छुट्टी वाले दिन बताने और बनवाने की सहमति भी भेजवा दीं। किसी रविवार को भी आ सकती थीं लेकिन वो लोग मारवाड़ी थीं और रविवार उन लोगों के लिए ज़्यादा व्यस्तता वाला दिन होता था। जिस दिन ननद की सहेली की माँ गोंद का लड्डू बताने-बनवाने हमारे घर पधारीं उस दिन मेरी ननद और सास घर में अनुपस्थित थीं। मेरे सामने दुविधा थी कि मैं क्या करूँ? सीखना तो ननद को था। सहेली की माँ के सामने मुझे जाना भी है कि नहीं! आज का ज़माना होता तो मोबाइल खटखटा दिया जाता। आज कितनी आसान ज़िन्दगी है! ख़ैर! घूँघट हटा ली उन्हें सादर चरण-स्पर्श कर बैठने के लिए कहा और उनके ज़िद पर कि उनके अगली बार आने तक गोंद ख़राब ना हो जाये तथा ननद सीखे भी तो बनाना भाभी को ही होगा सदा। बनाने की विधि शुरू हुई

नट्स तलें

1. एक भारी तले वाले पैन में। बड़ा चम्मच घी गरम करें। इस काम के लिए नॉन-स्टिक पैन का इस्तेमाल न करें क्योंकि मेवे और गोंद आसानी से पैन को खरोंच सकते हैं।

2. गरम घी में ¼ कप कटे हुए बादाम और काजू डालें। उन्हें हल्का सुनहरा होने तक तलें। वैकल्पिक रूप से आप तलने से पहले नट्स को ग्राइंडर में पीस सकते हैं या पूरे नट्स को तलकर ठंडा कर लें और ब्लेंडर में दरदरा पीस लें। ये सभी तरी

3. जब मेवे हल्के सुनहरे हो जाएं, तो 2 बड़े चम्मच सूखा नारियल (वैकल्पिक) डालें और हल्का सा भूनें। आप और भी डाल सकते हैं या इसे छोड़ भी सकते हैं। सूखा नारियल कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है। ताज़ा नारियल का उपयोग न करें क्योंकि इससे शेल्फ़ लाइफ़ कम हो जाती है। खुशबू आने तक एक मिनट तक भूनें।

यदि आप भोजन के शौकीन हैं और भारतीय भोजन के प्रति नए हैं, तो मुझे यकीन है कि आप गोंद के बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुक होंगे।

गोंद क्या है?


गोंद एक प्रकार का पौधा है जो खाने योग्य गोंद है, जिसका पारंपरिक भारतीय भोजन में उपयोग किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण होते हैं।


गोंद हिंदी में ‘खाद्य गोंद’ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है, जो एक पौधे का गोंद है जो विभिन्न पेड़ों के रस से प्राप्त होता है। एशियाई खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले 2 सबसे आम खाद्य गोंद बबूल गोंद (अरबी गोंद) और ट्रैगैकैंथ गोंद हैं।

गोंद के लड्डू बनाने में बबूल/कीकर के पेड़ का सूखा हुआ रस इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल गोंद पंजीरी बनाने में भी किया जाता है।

गोंद के लड्डू का मतलब है खाने योग्य गोंद की मीठी गेंदें। इन लड्डू को बनाने के कई तरीके हैं। गोंद के लड्डू मूल रूप से उत्तर भारतीय संस्करण हैं और इन्हें ज़्यादातर गेहूं के आटे, गोंद, चीनी, सूखे अदरक, मेवे और घी से बनाया जाता है।

इसका एक अन्य प्रकार कर्नाटक के व्यंजन अंतिना उंडे है, जिसमें आटे का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि इसकी जगह बड़ी मात्रा में सूखे नारियल (खोपरा) का उपयोग किया जाता है।

डिंक लड्डू के नाम से जाना जाने वाला एक प्रकार का लड्डू महाराष्ट्रीयन भोजन में बनाया जाता है और इसमें सूखे खजूर (खारिक/खजूर पाउडर) मिलाया जाता है।

गोंद के लड्डू अक्सर प्रसव पीड़ा से उबरने वाली महिलाओं को दिए जाते हैं। हालाँकि गोंद के लड्डू सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए अच्छे होते हैं, जिनमें बच्चे और शिशु भी शामिल हैं। गोंद के लड्डू आयरन, प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर होते हैं।

कहा जाता है कि कई सप्ताह तक गोंद के लड्डू का नियमित सेवन करने से हड्डियाँ मजबूत होती हैं, प्रतिरक्षा और पाचन में सुधार होता है, जिससे पूरे शरीर में स्फूर्ति आती है।

गेहूं का आटा, गोंद और मेवे शरीर को गर्म रखने वाले तत्व हैं। इसलिए ये गठिया के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द से राहत दिला सकते हैं और न केवल बच्चों में बल्कि बड़ों में भी मौसमी सर्दी से बचाव कर सकते हैं।

आप इन लड्डुओं में खसखस, खजूर, सूखे छुहारे, तिल, मखाना आदि डालकर कई प्रकार के बदलाव कर सकते हैं।

इस कथा में मैंने केवल उन सामग्रियों का इस्तेमाल किया है जो बुनियादी हैं और जिन्हें महिलाएं प्रसव के बाद खा सकती हैं। बहुत से लोग इसमें सूखी पिसी हुई अदरक (सौंत) और सौंफ के बीज जैसी सामग्री भी मिलाते हैं।

गोंद के लड्डू कैसे बनाएं 

1. एक भारी तले वाले पैन में 1 बड़ा चम्मच घी गरम करें। इस काम के लिए नॉन-स्टिक पैन का इस्तेमाल न करें क्योंकि मेवे और गोंद आसानी से पैन को खरोंच सकते हैं।

2. गरम घी में ¼ कप कटे हुए बादाम और काजू डालें। उन्हें हल्का सुनहरा होने तक तलें। वैकल्पिक रूप से आप तलने से पहले नट्स को ग्राइंडर में पीस सकते हैं या पूरे नट्स को तलकर ठंडा कर लें और ब्लेंडर में दरदरा पीस लें। ये सभी तरीके कारगर हैं, जो आपके लिए आसान हो, वही करें।

3. जब मेवे हल्के सुनहरे हो जाएं, तो 2 बड़े चम्मच सूखा नारियल (वैकल्पिक) डालें और हल्का सा भूनें। आप और भी डाल सकते हैं या इसे छोड़ भी सकते हैं। सूखा नारियल कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है। ताज़ा नारियल का उपयोग न करें क्योंकि इससे शेल्फ़ लाइफ़ कम हो जाती है। खुशबू आने तक एक मिनट तक भूनें।

5. इन सभी को एक प्लेट में निकाल लें। अगर आप खसखस ​​का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उन्हें भी डाल दें और सुनहरा और कुरकुरा होने तक तल लें।

तलें गोंद

6. गोंद को एक प्लेट में डालें और अगर वह साफ न हो तो उसे साफ कर लें। आपको गोंद में छाल या पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े चिपके हुए मिल सकते हैं, बस उन्हें हटा दें।

7. गोंद तलने के लिए एक पैन में ¼ कप घी डालें। अगर अच्छी मात्रा में घी डाला जाए और मध्यम तेज़ आंच पर अच्छी तरह से तला जाए तो गोंद अच्छे से फूलेगा। बिना फूला हुआ गोंद पेट की समस्या पैदा कर सकता है और खाते समय दांतों से चिपक सकता है।

8. जब घी गरम हो जाए तो उसमें 1 छोटा टुकड़ा गोंद डालकर चेक करें कि वह ठीक से गरम हुआ है या नहीं। उसे अच्छे से फूलना चाहिए। फिर उसमें 1/3 कप (65 ग्राम) गोंद डालें। गोंद को घी में पूरी तरह से डूबा होना चाहिए, नहीं तो वह फूलेगा नहीं। बहुत ज़्यादा गरम घी में तलने से उसका स्वाद कड़वा हो सकता है।

9. इसे तब तक चलाते रहें जब तक कि यह अच्छी तरह से फूल न जाए। सारा घी गोंद में समा जाएगा।

गोंद सारा घी सोख लेगा। इसे कप के तले से अच्छी तरह से पीस लें या मिक्सर ग्राइंडर में पीस लें या बेलन का इस्तेमाल करें। मैं ग्राइंडर में पीसना ज़्यादा पसंद करता हूँ।

आटा तलें

11. अगर आपको लगता है कि आपका गोंद बहुत साफ नहीं है, तो पैन को टिशू से साफ करें। आपको पैन में छाल के छोटे-छोटे टुकड़े जैसे कुछ गंदे कण मिल सकते हैं। 3 बड़े चम्मच और घी डालें और गर्म करें। 1¼ कप आटा/गेहूं का आटा डालें।

12. मध्यम से धीमी आंच पर तब तक भूनें जब तक कि यह गहरा सुनहरा और खुशबूदार न हो जाए। आटे में कोई कच्चा स्वाद नहीं होना चाहिए। चखकर देखें कि यह कच्चा नहीं है और इसका स्वाद कड़वा भी नहीं है।

13. स्टोव बंद कर दें। आप इसमें पिसा हुआ गोंद भी डाल सकते हैं या फिर इसे मिक्सर में पीस सकते हैं। मैंने इसमें कुछ मेवे भी मिलाए क्योंकि मेरे बच्चों को पिसा हुआ गोंद पसंद नहीं है।

गोंद के लड्डू बनाएं

14. पैन को स्टोव से उतार लें। इसमें तले हुए मेवे, ¼ चम्मच इलायची पाउडर और पिसी हुई गोंद डालें। सभी चीजों को अच्छे से मिला लें।

15. ¾ से 1 कप पिसा हुआ गुड़ या पिसी चीनी डालें। अगर कद्दूकस किया हुआ गुड़ इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उसे बारीक़ कद्दूकस करें। ¾ कप से शुरू करें।

16. गोंद में मौजूद घी को बाकी मिश्रण के साथ अच्छी तरह मिलाने के लिए अपने हाथ या स्पैटुला से अच्छी तरह मिलाएँ। स्वाद के लिए थोड़ा गुड़ पाउडर या इलायची मिलाएँ।

17. इस अवस्था में सुनिश्चित करें कि आपका मिश्रण हल्का गरम हो। इस मिश्रण के छोटे-छोटे हिस्से अपने हाथ में लें और मिश्रण को मुट्ठी में दबाते हुए बॉल्स बनाएं। अगर आपको उन्हें बांधने में परेशानी हो रही है तो ज़रूरत पड़ने पर थोड़ा गरम घी डालें। मैंने कोई अतिरिक्त घी नहीं डाला।

गोंद के लड्डू को एयर टाइट जार में भरकर रख लें और एक महीने में इस्तेमाल कर लें। सर्दियों/ठंडे तापमान में घी जमने के कारण इनका थोड़ा सख्त हो जाना सामान्य बात है। इन्हें कुकर या स्टीमर में भाप में पका लें। लड्डू को एक छोटे कंटेनर में रखें और ढक्कन से बंद कर दें ताकि पानी कटोरे में न जाए। इस कटोरे को कुकर या स्टीमर में रैक/ट्राईवेट पर रखें। लड्डू के गर्म होने तक भाप में पकाएँ।

ननद की सहेली की माँ मुझे तो गुणवती बनाकर चली गयीं! मैं सपने संजोने लगी जब मायके जाऊँगी तो अपनों को कैसे-कैसे बताऊँगी! अनजान थी ननद-सास के वापस आने के बाद के परिणाम से। ननद के मन के लड्डू की हत्यारी मैं-

किस-दर्जा दिलशिकन थे मुहब्बत के हादिसे 

हम जिंदगी में फिर कोई अरमां न कर सके।-साहिर

Thursday, 20 June 2024

धोखा : चोखा : नज़रिए का फेर

“आस्तीन का साँप कह देना कुछ ज़रूरत से ज़्यादा नहीं हो गया?”

“कार्यक्रम के दो दिन पहले बीस दिन के मेहनत पर पानी फिर जाता है…! संदेश आता है बहुत बीमार हैं। अस्पताल में हैं। दवा पानी चढ़ रहा है।अपने सहयोग के लिए दूसरे को तैयार कर लीजिए! ठीक कार्यक्रम के दूसरे दिन अन्य दूसरे कार्यक्रम में शामिल की तस्वीरों से जलाने का प्रयास किया जाता है। तस्वीरों को देखकर लगता ही नहीं कि यही व्यक्ति दो दिन पहले अस्पताल में भर्ती होगा। जितना संसाधन (प्राकृतिक और सांस्कृतिक) उपलब्ध है और बूते से बाहर अत्यधिक समय, श्रम, साधना लगाकर कोई योजना बनाया जाता है उसको नेस्तनाबूत कर देने का प्रयास कर लेना, हालाँकि मेरे रहते ऐसा कर पाना असंभव नहीं तो कठिन तो है ही।”

“नेस्तनाबूत कैसे कोई करेगा? आप कहती हैं मन संचालक को समय नहीं खाने को! ऐसा मंच संचालन तो आकस्मिक भी किसी पर आए तो कोई भी कर लेगा!”

“अत्यधिक खाने के लिए मना करते हैं, भूखे रहने के लिए तो थोड़े न कहते हैं, ह न त! काव्य-पाठ, मुशायरा में मंच संचालक प्रतिभागी को बुलाने के पहले चार पंक्ति और पाठ का बाद विदा करने में चार पंक्ति, कुछ अपनी, कुछ भानुमति के पिटारे से यानी आयोजन सत्र का आधा नहीं तो दो तिहाई समय अपने को प्रदर्शित करने में खाते रहते हैं-खाते-खाते मंच पर छाये रहने का प्रयास करते हैं…! लेकिन किसी परिसंवाद, परिचर्चा, पुस्तक पर चर्चा में समय खाने के लिए मंच संचालक को विषय का ज्ञाता, पुस्तक पढ़ा होना होगा जो आकस्मिक नहीं किया जा सकता।”

“स्वास्थ्यप्रद है अधिक ग़म खाना -कम खाना खाना। लेकिन फिर भी…, हो सकता है वो किसी अन्य के बहकावे में हो?”

“अच्छा! दूध पीता बच्चा है! फिर भी क्या! इसी से न कहे आस्तीन का साँप—नियत समझने में देरी कैसी! बिना प्रमाण कुछ नहीं कहा जाता।”

“हाँ! एक-दो बार ऐसा हो तो शक नहीं होता है। अनेक बार हो जाता है तो शक कर लेना स्वाभाविक है।”

“ऐसे धोखा करने वाले का कीमा बना देने का जी करता है। कूट-कूट कर बुकनी बना दिया जाये। भूसा भरके किसी कोने में खड़ा कर दिया जाये, बतौर उदाहरण!”

“कीमा कि चोखा? चोखा खा के धोखा मत करिह कहा जाता है! बिहारी चोखा बनाने में माहिर भी होते हैं। खिचड़ी के संग चोखा, लिट्टी के संग चोखा।”

“बिहारियों का क्या हुनर चोखा बनाने में। आलू उबाल लो टमाटर, बैंगन भून लो। जी भर मसल-मसल कर उसमें कच्चा प्याज, हरी मिर्च-लहसुन (बैंगन के पेट में घुसाकर पकाया सोंधा-सोंधा स्वाद लगता है) थोड़ा सा सरसों का तेल स्वादानुसार नमक मिला लो।”

“छौंक-बघार कर सभी चीज को भून-भानकर भी तो चोखा बनाया जाता है।”

“बिलकुल! लेकिन जो जीभ को रुचता है वह पेट को नहीं जँचता है। रूचना, पचना, जुड़ना-एक साथ नहीं होता है! जानते हो मेरे एक परिचित हैं। बैंगन की सब्ज़ी को चलाये छोलनी से अगर चावल या अन्य दूसरी सब्जी चला दिया जाये तो वे उस चावल या अन्य दूसरी सब्जी नहीं खा सकते हैं…! बैंगन की सब्जी तो नहीं ही खाते हैं। किसी भी सब्जी में टमाटर पड़ जाये तो सब्जी नहीं खाते हैं। आज के दौर में किसी होटल की किसी तरह की सब्जी उनके घर के लोगों का साथ नहीं दे सकते हैं। शायद स्वाद अच्छे नहीं लगते हों या स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से…! लेकिन-लेकिन सिर्फ बैंगन का चोखा, बैंगन-आलू-टमाटर का मिश्रित चोखा, टमाटर की मीठी चटनी बड़े शौक़ से चाट-चाट /चाट-पोंछकर खाते हैं…! 

गुड़ खाए गुलगुले से परहेज करें!

गुलगुले की सामग्री

2 1/2 कप आटा

1 1/4 कप गुड़1”

1 बड़ा चम्मच सौंफ

3 बड़ा चम्मच घी 

स्वादानुसार नमक

आधा छोटा चम्मच बेकिंग सोडा

तलने के लिए घी

गुलगुले बनाने की वि​धि

1.गर्म पानी में गुड़ डाले और उसे पूरी तरह घुल तक हिलाएं।

2.एक दूसरे बाउल में आटा, घी, नमक और बेकिंग पाउडर डालें।

3.तैयार किए गए मिश्रण में अब गुड़ वाला पानी डालें और एक बैटर तैयार कर लें।4.इसमें सौंफ डालें।

5.एक पैन में तेल गर्म करें और एक बड़े चम्मच से बराबर मात्रा में बैटर डालें, आंच को तेज रखें।

6.आंच को धीमा कर दें और गुलगुले को मीडियम आंच पर पकाएं।

7.छलनी वाले चम्मच से जले हुए टुकड़े निकाल लें।

8.फिर से आंच तेज करें और इसमें बैटर डालें इससे सभी गुलगले एक-दूसरे चिपकेंगे नहीं।

9.आंच धीमी करें और पकाएं, गुलगुलों को एक-दो बार पलटें ताकि वे ब्राउन हो जाए।

10.बचें हुए बैटर से इसी तरह गुलगुले बना लें।“

“इसे क्या कहेंगी? विरोध में कशीदे कढ़े जाते हैं। लम्बे-लम्बे लेख लिखे जाते हैं और ऐसा क्या मिलने वाला होता है कि विरोध का स्वर फेंके गये आकर्षक दाने चुगने लगता है?”

“खुलकर स्पष्ट कहो तो बात समझकर उचित उत्तर देने का प्रयास कर सकूँ!”

“बाबा गुरु लघुकथा दिवस सितम्बर में मनाने की बात करते थे और उनके सामने उनके कहे को मानने वाले जून में ही अलग राग में शामिल हो जा रहे हैं?”

“चलो! छल-धोखा-चोखा पर पहले ही बहुत बात हो चुकी है आगे मटन-करी पर बात करते हैं!

चंपारण मटन करी की सामग्री

 एक किलो मीट

पौन किलो प्याज,

कटा हुआ2 लहसुन

छ बड़ा चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट

एक बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

एक बड़ा चम्मच हल्दी पाउडर

दो बड़ा चम्मच देगी मिर्च

दो बड़ा चम्मच कश्मीरी मिर्च

दो बड़ा चम्मच नींबू का रस150 gms दही

आधा कप सरसों का तेल

एक छोटा चम्मच सौंफ पाउडर

एक छोटा चम्मच गरम मसाला पाउडर10 लौंग8 काली मिर्च2 इंच की दालचीनी छड़ें1 तेज पत्ता4 छोटा चम्मच जीरा1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, साना हुआ गेहूँ का आटा (बर्तन को सील करने के लिए) स्वादानुसार नमक

चंपारण मटन करी बनाने की वि​धि

1.तीन या चौथाई कप सरसों के तेल और बाकी बची सामग्री के साथ मिलाएं मटन को मैरिनेट करें. इसे 20 मिनट के लिए एक तरफ रख दें।

2.एक बड़े मिट्टी के बर्तन या एक भारी तली वाला सॉस पैन लें, बचा हुआ तेल और मैरीनेट किया हुआ मटन डालें। ढक्कन रखें, और किनारों को आटे से सील करें।

3.धीमी आंच पर पकाएं। फिर धीरे-धीरे आंच को मध्यम तक बढ़ाएं और मटन को 45-50 मिनट तक पकने दें।

4.सील को 45 मिनट के बाद बाहर निकालें, देखें कि तेल ऊपर आ गया है या नहीं।

5.धनिया पत्ती से गार्निश करें और गर्मागर्म सर्व करें।

और कम्बल ओढ़ के घी पीने वालों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं…!”

“लगे हाथ बिहार में बनने वाले ‘मीट का ताश’ को बनाने की भी सामग्री और विधा बता देतीं।”

“ज़िन्दगी बस आज भर नहीं न है!”

Monday, 17 June 2024

भरवा करेला

 करैला ज़्यादा कडुवा या स्त्रियों पर लगी पाबन्दी

कारण पर इल्ज़ाम लगाया जाता है कुंदन को बेकार ही तपाया जाता है परेशानी का कोई आकार नहीं होता.. यानी परेशानी छोटी/बड़ी/मंझली/सझली नहीं होती। परेशानी सिर्फ और सिर्फ परेशानी होती है! 

भतीजे के बारात में भतीजी को नाचते (डान्स करते) देख ; मैं सोच रही थी, समय कितना बदल गया या भैया कितने बदल गए…! मेरी शादी के पहले मेरी कोई सहेली ; हमारे घर मिलने आ जाती थी तो मैं उसके जाते समय, दरवाजे तक छोड़ने नहीं जा पाती थी क्योंकि भैया की नजरें टेढ़ी हो जाती थी….। अभी कुछ साल पहले तक उनका किसी लड़की/औरत का बरात में जाना पसन्द नहीं था क्यों कि लड़की वालों ने अगर इंतजाम बढ़िया नहीं किया हो तो फजीहत हो जायेगी…। बरात में हुड़दंग होता ही है।

 एक तो रूढ़िवादिता का युग और दूसरे भैया की सोच : एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा : करेला से याद आया, जब मेरी माँ-पापा की शादी हुई थी तो माँ को करेला बिलकुल ही पसन्द नहीं था और मेरे पापा को करेला बेहद पसन्द था। मेरी माँ का करेला खाना शुरू करना स्त्री विमर्श का मुद्दा हो सकता था? काश! हम तब स्त्री विमर्श समझने का मादा रखते। मेरा बेटा जब छोटा था तब उसे भी करेला खाना पसंद नहीं था। अरे! उसे तो भिंडी छोड़कर कुछ भी खाना पसंद नहीं था! संयुक्त परिवार था, मीठी से ज़्यादा कड़वी बातें पचानी पड़ती थी! मेरा बेटा थोड़ा बड़ा हुआ तो भरवा करेला खाने लगा…

 सामग्री : मध्यम आकार का गोल-मटोल (गुलाबी शिशु सा जिसे चिकुटी काटने को जी चाहे) करेला -४ बड़ा प्याज -२ बारीक छोटे-छोटे काटा हुआ लहसुन अदरक पीसा हुआ -२ छोटे चम्मच धनिया, काली मिर्च, जीरा बारीक पीसा हुआ -दो छोटा चम्मच हल्दी पाउडर -एक चौथाई छोटी चम्मच धनियाँ पाउडर -एकछोटी चम्मच सोंफ पाउडर — 2 छोटी चम्मच अमचूर पाउडर — 1 छोटी चम्मच (लाल मिर्च पाउडर -आधा छोटी चम्मच या हरी मिर्च एक-दो -स्वादानुसार : मेरे घर में तीखा स्वाद में नहीं पसन्द तो मैं प्रयोग नहीं करती हूँ!) नमक -स्वादानुसार तलने-भूनने के लिए सरसों का तेल

करेलों को अच्छी तरह धो लीजिये। चाकू की सहायता से हल्का खुरच कर छील लीजिये तब करेले में कुछ ज़्यादा मात्रा में नमक डालकर आधा घण्टे के लिये रख दीजिये। आधा घण्टे के बाद पुनः करेले को अच्छे से धोकर उबाल लेना है। थोड़ा ठंढा होने पर करेले को एक तरफ से काटें लेकिन उसका दूसरा साइड जुड़ा रहे। अब चाकू की सहायता से करेले के अन्दर से बीज और गूदा प्लेट में निकाल लें। बीज को हटा देना है (करेले का बीज हो, नीबू का बीज हो पेट के लिए हानिकारक होता है) गूदा को भूनते मसाले में मिला लेना है।

 तेज गरम कढ़ाई में तलने लायक तेल डाल कर गरम करिये और उसने बीज-गूदा निकाला करेला तलकर निकाल लेना है।बचे गरम तेल में हींग (मुझे नहीं पचता) और जीरा डालिये, जीरा भुनने के बाद ,हल्दी पाउडर, धनियाँ पाउडर सोंफ पाउडर इत्यादि संग सभी सामग्री डालिये. 2 - 3 बार चमचे से चलाकर भूनिये, इस मसाले में करेले से निकला हुआ गूदा, अमचूर पाउडर (चाहें तो अमचूर के बदले नींबू का रस प्रयोग किया जा सकता है। मुझे खटापन से परहेज़ है तो मैं नीबू का भी प्रयोग कम करती हूँ) नमक डाल दीजिये। मसाले को चमचे से चलाकर 6-7 मिनिट तक भूनिये। यह भुना हुआ मसाला करेलों में भरने के लिये तैयार है। तले करेले में भरिए और ख़ुद स्वाद लीजिए पहले : अचानक की परिस्थिति में ना मिले तो : खिलखिलाकर रहिए! —चूँकि कुछ तलने के लिए एक बार तेल को गरम कर लिया जाये तो उसे पुनः दोबारा अन्य कुछ तलने के लिए के प्रयोग करना वर्जित है स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। यूँ भी करेला तले वाले तेल में दोबारा करेला भी नहीं तला जा सकता है। 

सन् 1980 की बात है : बात का रुख़ नहीं बदलने के लिए मुख्य कहानी…

हमारे घर में दूध देने वाले की बेटी की शादी थी। भाभी का मन था जब बरात लगेगा तो हम दूल्हे को देख आयेंगे । पड़ोस की चाची, उनकी बेटी कुमुद, मैं और भाभी दिनभर तैयारी में समय गुजारे। शाम में तैयार होने जा ही रहे थे कि भैया आ गए ; भैया अकेले नौकरी पर रक्सौल रहते थे , माँ की मृत्यु हो जाने से भाभी मेरे साथ पापा की नौकरी पर सीवान में रहती थीं। हमारी तैयारी दूल्हे को देखने की नष्ट होती नजर आई लेकिन मेरी भी जिद हो गई कि हम कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं , हम दूल्हे को देखने जाएंगे ही तो जाएंगे। सही होने का एहसास विरोधी तो बना दिया लेकिन मुझे मुखर कौन बनाता। शाम में पड़ोस की चाची हमारे घर थर्मामीटर मांगने आईं कि कुमुद को बुख़ार हो गया है ; कुमुद को देखने के लिए मैं और भाभी चाची के घर गए। बारात से दूल्हे को देख कर लौटते समय जैसे मुड़े भैया सामने खड़े थे और हमारी योजना पकड़ी गई कि कुमुद को झूठा बुखार था क्यों कि कुमुद हमारे साथ थी ।हमें जो डांट पड़ी उसका बयान क्या करना…! लेकिन भैया को समय के साथ बदलते देख अच्छा लगा.. : सुखद! –बस! समय समझ-समझ का फेर होता है... कर्म, श्रम, शर्म पर आधारित! करेले अपने कड़वेपन के कारण कुछ लोगों को पसन्द नहीं आते, लेकिन भरवा करेले बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। मेरे बड़े भैया हमलोगों के लिये हमेशा हमारे पिता के समान रहे! समाज मजबूर करता रहा कि स्त्रियों पर पाबन्दी लगायी जाये।

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...