Wednesday 17 April 2024

छतरी का चलनी…

 हाइकु लिखने वालों के लिए ०४ दिसम्बर राष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में महत्त्वपूर्ण है तो १७ अप्रैल अन्तरराष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में यादगार है…

सुरकानन—

तितली पपड़ियाँ

नख में चढ़े


छतरी का चलनी…

“शहर के किसी कोने में कोई आयोजन हो आप बतौर अतिथि नज़र आ ही जाती हैं और पत्रकार होने नाते हमारी भेंट हो जाना स्वाभाविक है! पहले पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित थीं अभी साल-दर-साल नारी शक्ति पुरस्कार, मानव सेवा पुरस्कार, बालिका प्रोत्साहन पुरस्कार इत्यादि आपकी झोली में गौरवान्वित हो रहे हैं! हमारी ओर से बधाई स्वीकार करें महोदया!”

“हमारी संस्था और हम सभी के श्रम का फल मिल रहा है!”

“आपकी संस्था के अन्दर की बातें बाहर फैलने भर की देर है!”

“कैसी बातें?”

“संस्था के अन्दर में जो विद्यालय चलता है उसमें रात्रि कक्षा चलना दिखाया जाता है लेकिन कभी-कभी महीने में दो-तीन दिन अध्यापकों को सुबह में बुलाकर शाम तक रखा जाता है।आपके संस्था में और बाहर के दो चेहरे हैं! कर्मचारियों और बच्चिओं पर तानाशाही वाला माहौल है। वाणी में कठोरता से : अटकती हैं बोलने में! बहुत - बहुत अहंकारी है! हवा में उड़ती रहती है।

 उन्नति के कार्यक्रम में नौ-दस लाख का बिल दिखलाया गया।और इस बिल का भुगतान तीन-चार जगहों से करवाया गया! यानी मुश्किल से लगभग तीन-चार लाख का खर्चा हुआ मिला लगभग तीस-चालीस लाख मिला!”

“प्रवाद है सब! परखने वाली दुनिया में समझने वाले कम मिलते हैं!”

“हँसना और रोना समानांतर में असरदार नहीं होते!”

Wednesday 3 April 2024

नेति नेति —अन्त नहीं है, अन्त नहीं है!

नेति नेति {न इति न इति} एक संस्कृत वाक्य है जिसका अर्थ है 'यह नहीं, यह नहीं' या 'यही नहीं, वही नहीं' या 'अन्त नहीं है, अन्त नहीं है' या "न यह, न वह"

“मुझे किसी दिन सुबह में बेहद ज़रूरी रहता है तुम्हारी सहायता की और जल्दी आने के लिए कहती हूँ तो दस बहाने बनाती हो! आज इतनी सुबह कैसे काम करने आ गयी?”

“अरे! अभनी एक काम नहीं हुआ न। बहुते बेल बजाने, किवाड़ थपथपाने के बाद भी डाकदर साब दरवाजा नहीं खोले। गाढ़ी नींदवा में होंगे।”

“क्या उनके साथ और कोई नहीं रहता है?”

“उनकी पत्नी दूसरे शहर नौकरी करती हैं अउरी बचवा सब हास्टल में रहता है। छुटटी-छपाटी में आवेगा सब।”

“तो तुम अकेले रहने वाले मर्द के घर में काम करने के लिए कैसे तैयार हुई?”

“डाकदर साब बड़े भले मानुष हैं। दरवाजा खोलने के बाद पलट के नहीं देखते हैं। कुछ नहीं बोलते-बताते हैं। मैं अपने मन से काम कर देती हूँ! काम करना ही क्या रहता है… बस रोटी भुजिईया बनाना रहता है रोज के रोज।”

“यह तो तुम जानों…! ऊँच-नीच होने वाले इस ज़माने में किस पर कितना विश्वास करना है!”

“पाँचों उँगली एक बराबर त नहीं ही होता है न?”

“कानाफूसी की चिंगारी लुपलुपाते भी…, सदा यह याद रखना कि तुम अपने पति से अनुमति लेकर सहायिका का काम करने नहीं निकली हो! ना तो तुम अग्नि परीक्षा में बचने वाली और ना तुम्हारे लिए धरती फटने वाली!”

Friday 29 March 2024

अनुभव के क्षण : हाइकु —


मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच {म ग स म -गैर सरकारी संगठन /अन्तरराष्ट्रीय संस्था के} द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव (५ मार्च से १३ मार्च २०२४) में १२-१३ मार्च को शामिल होने का मौक़ा मिला! मेरे एक नाम में रूप अनेक थे 

—देश-विदेश की लगभग १०४५ संस्थाओं में से तृतीय स्थान प्राप्त करने वाली लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष (भीड़ में तन्हा : कहे के त सब केहू आपन आपन कहावे वाला के बा, सुखवा त सब केहू बाँटे दुखवा बटावे वाला के बा...) सम्मान ग्रहण कर्त्ता

—मगसम:१७९९९/२०२१, पटना की संयोजक

—लेख्य-मंजूषा संस्था प्रायोजक थी तो उसकी प्रतिनिधित्वकर्त्ता

—लघुकथा-हाइकु की अध्येता

“जैसा हम जानते हैं कि हाइकु तीन पंक्ति और ५-७-५ वर्ण की रचना,”

“जापानी कविता है..”

“जापानी और कविता इन दोनों होने वाली बातों से मेरी सहमति नहीं है…! हम यह क्यों ना माने कि वेद में ५ वर्णी और ७ वर्णी ऋचाएँ होती हैं! बौद्ध धर्म के संग वेद भी भ्रमण के दौरान जापान गया हो और सन् १९१६ में रवीन्द्रनाथ टैगोर के संग घर वापसी हुई हो! समय के साथ रूप बदलना स्वाभाविक है और आज सन् २०२४ में भी प्रवासी कविता क्यों कहलाए! 

—हाइकु पर हाइगा बनता है जिसमें कल्पना की कोई गुंजाइश नहीं और बिना कल्पना कविता कैसी…!

उदाहरणार्थ प्रस्तुत है—


Monday 25 March 2024

शिकस्त की शिकस्तगी


“नभ की उदासी काले मेघ में झलकता है ताई जी! आपको मनु की सूरत देखकर उसके दर्द का पता नहीं चल रहा है?”

“तुम ऐसा कैसे कह सकते हो, मैं माँ होकर अपने बेटे का दर्द नहीं देख पा रही हूँ! हनुमान जी की तरह मेरा कलेजा फटे तब न तुमलोगों को विश्वास होगा…!”

“माँ! फिर आप रंगोत्सव की तैयारी क्यों नहीं करने दे रही हैं?”

“तुम्हारे दादा को गुजरे महीना नहीं लगा और तुम्हारे पिता का श्राद्धकर्म तीन दिन में कर दिया गया तब न, अभी पंद्रह दिन…,”

“दादा की अर्थी बारात की तरह श्मशान तक गयी। सभी चर्चाकर रहे थे कि ऐसी मौत ख़ुशियाँ देती हैं। और मेरे पिता की आत्महत्या पर भी चर्चा चल रही थी कि धरती का बोझ मिटा…! घर-परिवार से समाज तक सभी शराब के नशे में उनके अवगुणों के प्रदर्शन से त्रस्त थे।सरकारी शराबबन्दी बस कागज़ तक क़ैद है।”

“बेटा? लोक-लिहाज़…,”

“माँ! महान बनने के चक्कर में स्त्रियाँ स्वयं की बलि चढ़ाती रहती हैं!”

“अच्छा! अच्छा। जाओ चाची से कहना रात के भोजन में कढ़ी-बड़ी और चावल बनवा ले और बिना नमक वाली पाँच बड़ी बना लेगी होलिका-दहन में डलवाने के लिए।”

होली की शुभकामनाएँ

रंगों की झड़ी–
खिड़की से झलके या ड्योढ़ी के उस पार
टेसू झकोरा


Friday 22 March 2024

बिहारी की कढ़ी-बड़ी


 ‘कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी’ के तर्ज़ पर बिहार के किसी-किसी इलाक़े {मेरे मायके में नहीं बनता है लेकिन ससुराल में बनाया जाता रहा है} में दीवाली की शाम और होली के एक दिन पहले होलिका जलाने की शाम में चावल और बड़ी-कढ़ी बनाने का रिवाज़ है। सभी के शरीर से उतरे उबटन के संग बिना नमक डाले पाँच बड़ी जलते होलिका में डाली भी जाती है। यूँ तो बड़ी-कढ़ी गर्मी-बरसात भर भी बनती रहती है, लेकिन सावन में कढ़ी का सेवन करना वर्जित माना जाता है।

कुछ वर्षों पहले एक होलिका जलने वाली शाम के नाश्ते में बड़ी ही बना देने के लिए घर में जितना बेसन था सबको घोलकर मेरी बड़ी देवरानी छानने लगी और मेरे बेटे तथा अपने बेटे को ज़िद कर नाश्ता करने के लिए बैठा दी।

  (मुझे एक बेटा और देवरानी को दो बच्चे, उसका बेटा, मेरे बेटे से डेढ़ साल बड़ा तो बेटी लगभग साढ़े तेरह महीने छोटी। तीनों बच्चे एक संग पले थे। दोनों बेटों में गहरी दोस्ती रही। हमारा संयुक्त परिवार था तब सास-ससुर भी थे…। होली-छठ में सबका जुटान होना सुनिश्चित था।) 

बड़ी देवरानी बड़ी छानती जा रही थी और भेजती जा रही थी… बड़ी का घोल समाप्त हो गया तो वो हाथ धोकर चौके से बाहर आ गयी और देखा कि दोनों बेटे ख़ाली तश्तरी लेकर बड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं…! बड़ी की जगह बड़ी देवरानी को देखकर दोनों के बेटे हँस पड़े।

ससुर जी, मेरे पति, दोनों देवर, देवर की बेटी, सासु जी, छोटी देवरानी, उसका बेटा और मैं तो बड़ी चखे भी नहीं हैं…

“ऐसा कैसे हो सकता है?” देवरानी लगभग चीख ही पड़ी। वो बेहद स्तब्ध थी!

“अगली बार से हमें ज़िद करके कोई ऐसी चीज खाने के लिए मजबूर नहीं कीजिएगा चाची-माँ जो हमें पसंद ना हो! हम बड़ों की बात टालकर अवज्ञा नहीं कर पाते हैं और मेरी माँ कहती हैं कि ना कहना अनाज का भी अपमान होता है! आख़िर ज़िद करने वाले बड़ों को सिखलाया कैसे जाये।”

“कढ़ी में आयरन की भरपूर मात्रा होती है.. इसके सेवन से शरीर में हीमोग्लोबिन को बढ़ाने में मदद मिलती है और शरीर भी स्वस्थ रहता है.. कढ़ी बहुत लाभदायक होती है.. इसका सेवन त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने में मदद करता है…,” मेरी बात पूरी भी नहीं हो सकी,

“बस! बस बस! माँ! बेसन लाने किसी को भेजो! सभी प्रतीक्षा में हैं! और आप कहती हैं ‘अप रूपी भोजन, पर रूपी शृंगार’ हमें उसका हलवा बेहद पसंद है…!” 

“धत्त तेरे की। दोनों बाबूलोग मेरे उम्मीद पर पानी फेर दिए। मैं चुपके से आज कढ़ी-बड़ी बनाना सीख लेती लेकिन…,” छोटी देवरानी ने कहा।

“हा! हा! छोटी मम्मी आपका तो अभिमन्यु सा हाल हो गया…,” बड़ी देवरानी की बेटी ने कहा।

“दीदी! आप हमें कढ़ी-बड़ी बनाना बता दीजिए! मेरी बनायी कढ़ी फट जाती है तो बड़ी कड़ी रह जाती है!” छोटी देवरानी ने कहा।

“खट्टी कढ़ी पसन्द आती है देवर जी को। दही को खट्टा बनाने के लिए जमे हुए दही को कुछ घंटों के लिए कमरे के तापमान पर रख देना चाहिए। कढ़ी बनाने के लिए कमरे के तापमान पर दही का उपयोग करना चाहिए। बस उसे 3-4 घंटे पहले फ्रिज से निकाल लो ताकि यह ठंडा न हो… यदि आप ठंडे दही का उपयोग करते हैं, तो गर्म करने पर वह फट जाएगा और दानेदार हो जाएगा।

बड़ी कड़ी ना हो उसके लिए बेसन ताज़ा हो  और खूब फेंटा गया हो तथा घोल ना बहुत पतला हो और ना बहुत गाढ़ा हो। घोल पूरी तरह से फेटना हो गया है या नहीं इसको जाँचने के लिए किसी गिलास या कटोरी में पानी लेकर उसमें एक बड़ी खोटने पर पता चल जाता है। अगर फेटना हो गया है तो बड़ी पानी के ऊपरी सतह पर आ जाएगी और अगर फेटना नहीं हुआ है तो पानी के निचली सतह पर रह जाएगा । घोल में नमक बड़ी छानते समय मिलाना चाहिए।

एक टोटका तुम्हें बताऊँ ‘बेसन में पानी डालने के बाद जब उँगलियों को डालकर दाहिने तरफ चलाओ तो फिर उसे वापिस उलटा बायीं ओर ना करना।”

“सब डायरी में लिख ही लेती हूँ, चक्रव्यूह भेदन के समय भूल ना जाऊँ…” खिलखिलाते हुए छोटी देवरानी ने कहा।

लिख लो बड़ी बनाने के लिए : सब जुटें तो मन से बनाना यूँ ही अच्छा बनेगा…

सामग्री

1 कप बेसन

1/4 चम्मच हल्दी

1/8 चम्मच हींग

चुटकी भर खाने वाला सोडा

स्वादानुसार नमक

आवश्यकतानुसार पानी

आवश्यकतानुसार तलने के लिए तेल


कढ़ी के लिए:

1 कप दही

1/2 कप बेसन

1/2 चम्मच हल्दी

1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर

आवश्यकतानुसार पानी

2 चम्मच तेल

स्वादानुसार नमक

1/2 चम्मच सरसों के दाने

1/2 चम्मच जीरा

दो-तेजपत्ता या 10-12 करी पत्ते

1/2 चम्मच लाल मिर्च पाउडर

1 सूखी लाल मिर्च

-तले बड़ियों को एक बर्त्तन में रखे पानी में डालकर 5 मिनट भिगोकर पानी से बाहर निकाल देती रहना।

-कढ़ी को लगातार चलाती रहना… (उबाल आ जाने से रिश्ते फट जाते हैं…) जिससे तुम्हारे श्रम में बचत होगी..”

“दादा अक्सर कहते रहते हैं ‘गिथिन के बड़ी’ वो क्या है?” 

“उसके बारे में फिर कभी…”

Wednesday 20 March 2024

आसमान में सुराख


“यह समीक्षाओं की छ खण्ड वाली पुस्तकें हैं जिनका प्रकाशन बेहद कम मूल्य में किया गया है!” वरिष्ठ अतिथिगण लोकार्पित पुस्तकों के संग तस्वीर उतरवा रहे थे और मंच संचालक अबीर से लेखक के चेहरे पर इंद्रधनुष बना रहे थे…! मौक़ा था राष्ट्रीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव में प्रतिभागी लेखक के पुस्तक लोकार्पण का…।

“लेखक महोदय अंजनेय भक्त हैं! अधिकांश समय मन्दिर में गुज़ारते हैं और मन्दिर के चढ़ावे में जो राशि मिलती है उसको ऐसी पुस्तकों को प्रकाशित करवाने हेतु प्रकाशक को सौंप देते हैं…?” मंच संचालक के इतना कहते ही पूरे सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट से विस्फारित आँखें वापिस लौटने लगीं!

“इन पुस्तकों को क्या कीजिएगा?” दर्शक दीर्घा से किसी ने प्रश्न किया!

“बाँट दो।” लेखक ने कहा।

“क्या?” किनकी-किनकी आवाज़ गूँजी पता नहीं चला लेकिन उसके बाद दर्शक दीर्घा में सुई गिरती तो शोर मचा देती। सभी पलकें गिराना भूल गए थे। सबका मुख इतना खुला था कि भान हो रहा हो ऐसे ही किसी के मुख में हनु सूक्ष्म रूप में टहल आये होंगे…।

थोड़ी देर में ही सभी पुस्तकों के आधे मूल्य की राशि पुनः लेखक के हिस्से में थीं। अध्यात्म के जुगनुओं ने सभागार से मंच तक कब्जा कर लिया था।


यह चयनित होना आदरणीय सुधीर सिंह जी मंच संचालक और आदरणीय गिरीश ओझा जी लेखक को समर्पित

Sunday 17 March 2024

दुर्वह


“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने कहा।

“दो-चार दिन कि छ-आठ दिन..!” रूमा ने व्यंग्य से कहा।

“इस बार एक मुश्त की छुट्टी छठ में चार-पाँच दिनों की…,” सहायिका दबे ज़ुबान में भी बात पूरी नहीं कर सकी।

“अरे तू छठ किसलिए करती है तुझे कौन सा बेटा है! एक बेटी ही तो..,” रूमा ने गुर्राते हुए कहा।

“जी मालकिन चाची! उसी बेटी के लिए छठ करती हूँ… बड़े जप-तप से माँगल बेटी है। बेटी को किसी चीज की कमी ना हो, अच्छी पढ़ाई कर सके, इसलिए आपलोगों के घरों में चाकरी-काम करती हूँ…!” सहायिका के स्वर में मान झलक रहा था।

“एक दिन मैं अपनी बेटी को लेकर काम पर आ गयी थी। मेरी बेटी के विद्यालय में अभिभावक-अध्यापक की गोष्ठी थी। मेरी बेटी विद्यालय की पोशाक में थी। मालकीन माँ ने उस दिन मुझसे काम नहीं लिया और समझाया, बेटी को अपने काम के घरों में लेकर मत आया करो…!” सहायिका ने पुनः कहा।

“बेटी दूसरे के घर चली जाएगी..,” रूमा की व्यंग्य भरी बातें सहायिका को नागफनी पर चढ़ा रही थी।

“तो क्या हो जाएगा.. वक्त पड़ने पर अपनी माँ की तरह काम आएगी। क्या आप जानती हैं हमारी सहायिका तीन बहन छ भाई है…! जब इसके पिता गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे तो उन्हें यही अपने पास रख लाखों खर्च कर इलाज़ करवायी है। कितना भी पौ फट जाये हमारी ही आँखें नहीं खुलती है!” सहायिका को उबारते हुए पुष्पा ने रूमा को चेताया।

Thursday 29 February 2024

वामन का चाँद छूना : २९ फरवरी २०२४

“स्तब्ध हूँ! यह पोशाक विदेशी दुल्हन का होता है जो यह सिर्फ़ एक तस्वीर खिंचवाने के लिए शौक़ से पहन ली हैं!”

“तो क्या हो गया! हिर्स में पहन ली!”

“हुआ कुछ नहीं… अभी उनके माथे से सिन्दूर पोछाए हुआ ही कितना दिन है! क्या ज़रा भी मलाल झलकता है आपको? भगवान ना करे किसी पर ऐसा दिन आए लेकिन आ गया तो थोड़ा तो लोक लिहाज़ का ख़्याल कर आज़ाद होने के दिखावे से परहेज़ किया जाना चाहिए कि नहीं?”

“किस लोक लिहाज़ की चर्चा कर रही हैं! उसी लोक लिहाज़ की जिसके कारण आप अपने को ड्योढ़ी के अन्दर क़ैद कर ली हैं! व्रत त्योहार में भी पैर हाथ नहीं रंगती हैं!”

“मैं तो किसी आयोजन में नहीं जा पाती हूँ!  हित नात वाले लगातार फोन पर खोज-ख़बर लेते हैं…! मेरी देवरानी मुझसे बहुत छोटी है वो भी मुझसे ज़्यादा दयनीय स्थिति में समय गुज़ार रही है!”

“अपने हित नात वालों के लिए उनका हद तय कर दें! आप से उम्मीद की जाती है कि अपनी देवरानी के लिए आप बड़ी बहन बन दोनों के राह के काँटें हटा सकती हैं!”


Sunday 4 February 2024

मानी पत्थर

 “दो-चार दिनों में अपार्टमेंट निर्माता से मिलने जाना है। वो बता देगा कि कब फ्लैट हमारे हाथों में सौंपेगा! आपलोग फ्लैट देख भी लीजिएगा और वहीं से हमलोग ननद के घर रात में रुककर, दूसरे दिन वापस आएँगे..!” देवरानी ने कहा।

“तुमलोग चली जाना, मैं नहीं जा सकूँगी।” जेठानी ने कहा।

“क्या आप हमारा घर देखना नहीं चाहेंगी?” देवर ने पूछा।

“देखूँगी न! अवश्य देखूँगी जब आपलोग उस घर में व्यवस्थित हो जाएँगे। आ जाऊँगी किसी दिन आपके घर से मिलने।” भाभी ने कहा।

“इस बार तुम्हारा चलना अलग बात होती…।” जेठानी के पति ने कहा।

“तब क्या अलग बात नहीं थी जब आपने फ्लैट खरीदा था। ख़रीदने के पहले कम से कम दस फ्लैट को जाँच-परखकर, मोल-भाव हुआ होगा। नहीं-नहीं पहले तो योजना बनी होगी; उसके पहले भी रक़म जमा की गयी होगी। किसी एक पड़ाव पर मेरे कानों तक बात पहुँची होती।” जेठानी ने कहा।

“लगभग बीस-पच्चीस साल पुरानी बातों का क्या बदला लेना चाह रही हो?” जेठानी के पति ने पूछा।

“बदला! किस-किस बात का बदला लूँ और क्या उस पल का बदला लिया जा सकता है? आपके संग आपसे मिले सारे रिश्तों ने मेरे सम्मुख केवल अपनी-अपनी माँग रखी। और मैं अधिकार का बिना कोंपल उगाये अपना संपूर्ण अस्तित्व कर्त्तव्यों के पीछे विलीन कर सारी उम्र ख़र्च कर गयी। आपने अपने मित्र और उनकी पत्नी के संग बड़े से फ्रेम में लगी अपनी जो तस्वीर को अलमीरा में डाल रखा है। आप दोनों मित्र एक दिन ही सेवा निवृत हुए थे। मैं अपने बुलावे का देर रात तक प्रतीक्षा करती रही…।” जेठानी ने कहा।

Wednesday 24 January 2024

उलझे रहो

 ।। विचार -सार।। -रावत

लक्ष्य क्या है ? यदि उसमें शुभ संकल्पों की नींव न हो । पराजय फिर निश्चित है।

रावत-:- आदि शंकराचार्य की दार्शनिक शिक्षाओं में, यह कथन श्री राम की न केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक व्यक्ति के रूप में, बल्कि सर्वोच्च वास्तविकता के अवतार के रूप में गहन समझ को समाहित करता है। शंकराचार्य के अनुसार, श्री राम एक दिव्य मार्गदर्शक के रूप में सेवा करने के लिए मानव रूप में अवतरित हुए, जो पारलौकिक ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाने वाला मार्ग बताते हैं। सर्वोच्च वास्तविकता के रूप में श्री राम का उल्लेख इस धारणा पर जोर देता है कि परमात्मा उच्च आध्यात्मिक समझ चाहने वाले व्यक्तियों के लिए मार्ग को रोशन करने के लिए मूर्त मानवीय अनुभव में प्रकट हो सकता है। इस संदर्भ में, श्री राम का जीवन और शिक्षाएं एक आध्यात्मिक रोडमैप बन जाती हैं, जो अस्तित्व की प्रकृति, आत्म-जागरूकता और परम सत्य की ओर यात्रा में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। आदि शंकराचार्य का दृष्टिकोण दिव्य ज्ञान की सार्वभौमिकता और मानव अनुभव के भीतर दिव्य को पहचानने में निहित परिवर्तनकारी क्षमता को रेखांकित करता है।

विलक्षण-:- अति उत्तम! जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि राम का नाम राजनीति का या धार्मिक विषय है ही नहीं।

शंकराचार्य जी ने यही तो समझाने का किया है, जिसे समझने में हिंदू जनमानस सदैव की भाँति आखिरकार असफल साबित हुआ है। हम वे हैं, जिन्होंने विश्व की ज्ञान दिया, और यह भी हम ही हैं कि मानसिक रूप से दिवालियेपन की ओर बढ़ रहे हैं। यदि इसे राम से जोड़कर देखें तो समझ आ जाएगा कि हमने राम को समझने में कहाँ गलती की है।

राम एक राजकुमार हैं, किंतु सामान्य बालक की भाँति वन में जाकर शिक्षा पूरी करते हैं। शस्त्र और शास्त्र का उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त करते हैं। इतने से ही नहीं, विश्वामित्र के साथ फिर वन चले जाते हैं। कुछ राक्षसों का वध करते हैं और फलस्वरुप उत्कृष्ट अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह सब क्या था? चाहते तो महल में रहकर भी शिक्षा पूरी कर सकते थे। विश्वामित्र साथ जाने से इंकार कर सकते थे, लेकिन नहीं। उन्हें पता है कि यह सब तो सोने को तपाकर कुंदन बनाने की प्रक्रिया है। यदि ऐसा न होता तो अच्छे धनुर्धर तो बन जाते, लेकिन जीवन के कष्टों को इतनी सरलता से न झेल पाते। रावण जैसे अति बलशाली को हराना असंभव था। संभवतः शिव धनुष को उठाने में भी असफल हो जाते।

विभा-:-विवेकशील होने के लिए सन्तुलित होना होता है अभी तो असन्तुलन का काल है… अहं ब्रह्माऽस्मि का काल…! वरना बिना दानव के देव कब थे..! वैसे भी ईश्वर बनना आसान है इन्सान बनने से…

Tuesday 24 October 2023

घर्षण


"दो बार का मस्तिष्काघात और एक बार का हल्का पक्षाघात सह जाने वाला पति का शरीर गिरना सहन नहीं कर पाया। कलाई की हड्डी टूट गयी। सहानुभूति रखनेवालों का पत्नी के पर कुतरने का प्रयास जारी है।"
"मेरे पति मेरे लिए मित्र से बढ़कर थे। उनके मृत्यु के बाद उनके रिश्तेदारों ने मेरे नौकरी करने, बाहर जाने-आने पर रोक लगाने के लिए रुढ़िग्रस्त पाँच-दस कारणों का आधार बनाने लगे तो मेरे बेटों ने मेरा साथ दिया कि मैं अपने शर्तों पर जीना शुरू कर सकी।"
"वन में सीता का सती अनसूया से भेंट, सीता का अपहरण, अग्नि परीक्षा देने की बातें, वन में लव-कुश का जन्म पालन-पोषण, भूमि में समा जाने की बातें मिथक कथा में फैलायी नहीं गयी होती तो क्या स्त्रियों से इतने धैर्य की उम्मीद की जाती••!"
"मिथक कथानुसार सीता स्वयं रावण का नाश कर सकती थी।लेकिन उदहारण देना था, मुश्किलों में जीवन साथी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। हालात का निडरता के साथ सामना करना चाहिए। एकदम से किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए••!"
"कलयुग के पिता अपनी सुता के साथ खड़े हो रहे हैं। क्या राजा जनक को इतना सामर्थ्य नहीं था कि वे अपनी एक गर्भवती बेटी का साथ दे पाते••!"

छतरी का चलनी…

 हाइकु लिखने वालों के लिए ०४ दिसम्बर राष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में महत्त्वपूर्ण है तो १७ अप्रैल अन्तरराष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में यादगा...