Friday 10 January 2014

"चौपई" छंद



"चौपई" छंद 

"चौपई" एक मात्रिक सम छंद है। इस छंद में चार चरण यानि चार पाद होते है। 
प्रत्येक चरण में 15 मात्राओं के साथ ही प्रत्येक चरण में 
समापन एक गुरु एवं एक लघु के संयोग से होता है। 
अपने समय में इस छंद का प्रयोग धार्मिक साहित्य 
जैसे श्लोकादि में किया जाता रहा है। 
उत्तम छंद सृजन के लिए अगर इस छंद की रचना करते समय 

। । । । ऽ । । ऽ ऽ ऽ । या 4, 4, 7 का 

मात्रिक विन्यास रखा जाए तो लयबद्धता अधिक निखर कर आती है। 

1

रवि को छिपा लिया है मांद
संझा ले आई है चाँद 
जुगनू भेजा है संवाद 
तम तज दो अपना उन्माद 
............

2

खलती है वृद्धों की छाँव !
भूल नहीं पाती हूँ गाँव !!
सहरा क्या देता है ठाँव !
छाले ही पाता है पाँव !!

...........................

3

दोस्त बनाते ही हैं जाँच
लाख टके की बातें सांच
रिश्ते होते ही हैं कांच
बिखराता है शक का आंच 

~~

6 comments:

  1. राजीव कुमार झा has left a new comment on your post ""चौपई" छंद":

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (11-1-2014) "ठीक नहीं" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1489" पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!
    &
    vibha rani Shrivastava has left a new comment on your post ""चौपई" छंद":

    आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार
    God Bless U

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर चौपाई !
    नई पोस्ट आम आदमी !
    नई पोस्ट लघु कथा

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  3. तीनो ही अति सुन्दर. शक जितना दूर रहे उतना अच्छा.

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  4. अति सुंदर।शुभकामनाएँ

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
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