Wednesday, 12 August 2015

संग्रह





चाहत के बेड़े में जो खड़ी होती
हाथ-लकिरों से यूँ ना लड़ी होती
तरसते रह गए एक सालिम मिलते
न तपिश औ न असुअन झड़ी होती
....

बचना ऐसे मेहमाँ से
खुद राजा बन बैठता मेजमाँ पर रजा चलाता है
गुलाम खुद के घर में रंक टुकड़ो में बाँट बनाता है
..
क से कुबेर क से कंगाल कहो है न वश की बात
मेहमाँ न रहे बसे ज्यादा दिन जो बाहर औकात
..
जुबान नहीं होते तो जंग नहीं होते मान ली बात
घुटन से निजात कैसे मिलते सहे जो ना जाए घात
....
छोटे छोटे टांको से 
दर्द की तुरपाई की
खिलखिलाहट पैच
दरके की भरपाई की




9 comments:

  1. चित्ताकर्षक

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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    1. आभारी हूँ
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 14 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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    1. आभारी हूँ
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  4. बहुत शानदार

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  5. क्या खूब लिखा है..!! लाजवाब..!!!

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

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