Thursday, 12 September 2019

मुक्तक

ढूँढ़ रही आजू-बाजू दे साथ सदा रहमान
क्रांति की परिभाषा रहे पहले सा सम्मान
सबके कथन से नहीं हो रही सहमती मेरी
आस रहे तमिल-हिन्दी एक-दूजे का मान 
संगी ज्योति उर्जा व ज्ञान का भंडार है
श्रेष्ठ जीवन का लक्ष्य उत्तम संस्कार है
वो हमारी नहीं, हम हिन्दी की मांग हैं
भाषा-उठान आंचलिक का अंकवार है

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरूवार 12 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

“नगर के कोलाहल से दूर-बहुत दूर आकर, आपको कैसा लग रहा है?” “उन्नत पहाड़, चहुँओर फैली हरियाली, स्वच्छ हवा, उदासी, ऊब को छीजने के प्रयास में है...