![à¤à¤¿à¤¤à¥à¤° मà¥à¤ यॠशामिल हॠसà¤à¤¤à¤¾ हà¥: 2 लà¥à¤, सà¥à¤à¥à¤°à¥à¤¨](https://scontent.fblr4-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/70244969_2489246654503732_8990926237836771328_n.jpg?_nc_cat=103&_nc_oc=AQlf-IBXspZ0rymzADXrSQJVizyGD-AMolyW1sXTDupuS5Gpu7DQV5ac98lUH3yLMFFHD0ELFy_3FBbEbJiyg7AU&_nc_ht=scontent.fblr4-1.fna&oh=5f647aeea28e1727f65a5d73382b3ae1&oe=5E0D2CAC)
ग्यारह रुपये जब मिलते थे
जाते हुए अतिथि की दबी मुट्ठी से
आई किसी भउजी के खोइछा से
कई मनसूबे तैयार होते थे
हमारे ज़माने में
छोटी खुशियों की कीमत
बड़ी होती थी
चन्द्रयान के सफर में लगा
ग्यारह साल सुन-पढ़
कुछ वैसा ही कौतूहल जगा
इस ग्यारह साल में कितने
सपने बुने उलझे टूटे होंगे
फिर दूने जोश से
उठ खड़े हुए होंगे
वैसे जमाना बहुत पहले जैसा रहा नहीं...
–मेरे भैया मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन
–जा ये चंदा ले आवs खबरिया
–चंदा मामा दूर के, पुए पकाए गुड़ के
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-09-2019) को " महत्व प्रयास का भी है" (चर्चा अंक- 3452) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सस्नेहाशीष संग शुक्रिया बहना
Deleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तूति।
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