"क्या हमारे देश में स्वच्छता नहीं है.. और जहाँ ज्यादा स्वच्छता हो वहीं बस जाना चाहिए तो पूरा हिन्दुस्तान घूम चुके हों तो चूक गए अनेकों महानगरों की स्वच्छता देखने से? पहाड़ों की खूबसूरती भारत में ज्यादा है"
"जी मेरे कहने का मतलब यह था...,"
"आपके कहने का जो भी मतलब रहा हो, मेरे विचार पूरी तरह से स्पष्ट हैं , जिन्हें अपनी मिट्टी से प्रेम नहीं वे देश के गद्दार हैं.. ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसके लिए विदेश जाकर बसना हो। भारत में जो दान कर देने की शक्ति है,केवल दधीचि-कर्ण की बात नहीं अभी हाल में ही तीन सौ करोड़ में बिकने वाला होटल कैंसर अस्पताल को दान किया गया...,"
"क्या माँ! आप भी किससे विवाद कर रही हैं उनलोगों के वाणी-विवेक-विद्या में ताल-मेल ही नहीं।" श्रीमती सान्याल की बहू ने समझाने की कोशिश किया।
"माँ भी न! किसी बात को बहुत लंबा खिंचती हैं इतना लंबा तो च्यूंगम को नहीं खिंचता है। आप निश्चिंता से रहें हम देश वापस जल्द लौट जायेंगे।" बेटे के आश्वासन से श्रीमती सान्याल को सबेरा ज्यादा चमकीला लग रहा था ।
चूल्हे पे चढ़ी
लेवा लगी हंडिया–
दादी की हँसी।
नि:शब्द हूँ आदरणीया दीदी इन्हीं शब्दों के साथ महसूस किया है आपको
ReplyDeleteसादर
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 3 जनवरी 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
सस्नेहशीष संग हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह! सचमुच बहुत प्यारी रचना सार्थक संदेश के साथ। काश विदेश बसने की लालसा लिए लोग ये संदेश समझ पाएं। प्रणाम और आभार दीदी 🙏🙏🙏
ReplyDeleteशानदार , बहुत सुंदर।
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