Thursday, 19 March 2020

निरभिलाष



"हम क्यों चाहते हैं हमारे किये हर कार्य पर दूसरे मोहर लगाएं या उन बातों की आलोचना कोई ना करें ...?"
"क्या हो गया क्या बड़बड़ा रही हो.. स्पष्ट बोलो तो कुछ बातें समझ में भी आये..!" बहुत देर से अपनी दीदी को हल्के दबे स्वर में बुदबुदाते देखकर निमिषा ने कहा।
"भला ई भी कोई बात हुई... जिस समय सभी को सबसे ज्यादा जरूरत ईश्वराश्रय की है। बताओ वैसे समय में देवालय जाने पर पाबंदी लगा दी जाए.. जनता में आक्रोश फैलेगा कि नहीं?"
"तब तो मंदिर में जाने के इच्छुक को किसी और स्थान के लिए बंदी का समर्थन नहीं करना चाहिए? और जरा तुम मुझे समझाओ आस्था क्या है?"
"उस शक्ति पर विश्वास करना जिसके हाथों में हमारे साँसों का डोर है.. ,"
"वो तो कोई एक ही शक्ति होगी न और हम अभी जहाँ खड़े हैं वहाँ विद्यमान है.. फिर यह छतीस कोटि और एक ही देवता के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मंदिर तो अलग-अलग राज्यों से जुटी भीड़.. क्या है यह.. चलो छोड़ो ! आज एक सुनी आओ तुम्हें भी सुनाती हूँ...
–"किसी ज़माने में एक शिव भक्त था जो नियमित शिव मंदिर जाता और मंदिर का मूर्ति का परिक्रमा करता तब अपने कामों में जुटता। यह क्रम वर्षों से चलता आ रहा था लेकिन उसकी स्थिति बदल नहीं रही थी..! वह निर्धन था तथा निर्धनता से जूझता वह परेशान भी रहता था। उस पर आश्रित उसका परिवार था।
उसकी गरीबी से, उसके परेशानियों से माता पार्वती व्यथित होती रहती थीं और विचलित होकर बार-बार भगवान शिव से अर्जी लगाती रहती थीं कि,-"आपकी कृपालुता इस भक्त पर क्यों नहीं दिखलाई देती है? सभी जानते व मानते हैं कि आप शीघ्र प्रसन्न हो जाने वाले ईश हैं। भांग-धतूरा-बेलपत्र चढ़ाकर आपको झट से मनोवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। इस भक्त की भक्ति तो छोड़िए आप मेरी इच्छा भी अनसुनी कर देते हैं... आखिर क्यों?"
हर बार भगवान शिव माता पार्वती की बात बड़े धैर्य से सुनते और मुस्कुराते हुए उत्तर देते,-"देवी! मैं विवश हूँ! इसका जो कर्म और भाग्य है उसमें इसे धनवान बनना लिखा ही नहीं है। मैं चाहकर भी इसकी कोई मदद नहीं कर सकता हूँ।"
इस तरह कई बार माता पार्वती के समझाने पर मानो उनके जिद के आगे हारकर एक दिन भगवान शिव बोले,-"ठीक है जब आप इतना जोर दे रही हैं तो आज धन से भरा कलश उस भक्त के राह में रख देते हैं। उस धन से उसकी निर्धनता दूर हो जाएगी।"
इधर भक्त जब शिव मंदिर की जा रहा था तो उसके मन में विचार आया कि मेरी आँखों की रौशनी किसी वजह से किसी दिन जा सकती है। जब मेरी आँखों की रौशनी चली जायेगी तो मैं परिक्रमा कैसे कर पाऊँगा.., आज से ही अभ्यास शुरू कर देता हूँ..,"
"बस! बस! तुम मुझे जो समझाने की कोशिश कर रही थी वो मैं समझ गई!"
"तब ठीक है दीदी! मंदिर मस्जिद गिरजाघर, गुरुद्वारा जलसा समोरोह बन्द करने के पीछे के उद्देश्य को सभी समझें...।

अगर आस्था है तो घर बैठे उस शक्ति को याद करें.. आज के समय में ... हमें सलाम हर देश के चिकित्सकों को तथा चिकित्सा से जुड़े हर इंसान को करना चाहिए... इस विश्व युद्ध में मुख्य बात है किसी देश की हार/जीत से किसी खास देश को लाभ/हानि नहीं पहुँचने वाली।

जिंदगी से हम जब भी ...
सा, रे, ग, म सीखने के लिए प्रयत्नशील होते हैं
वो हमें उलझते देखने में जुटी रहती
"सारे गम" को लेकर 


1 comment:

  1. बहुत सुंदर.
    आस्था हमारी इतनी कमजोर नहीं की मन्दिर की चार दिवारी के अंदर ही पनपे.
    बचाव ही चिकित्सा है. सही.

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