Sunday 28 March 2021

फाल्गुनोत्सव की शुभकामनाएँ

 रंग, खुशी, उत्साह सब न जाने कहाँ गया ,

देखो ,ये कोरोना दूसरी होली भी खा गया !

( संजय सनन)

हमारा ही खा गया जिनको दूसरों की चिन्ता है

उनका ना तो मस्ती छूटा है ना धमाल जो हन्ता है

>>>>><<<<<

01. चैता दंगल–

बाँस के जंगल में 

सीत्कार गूँजें

02. मुट्ठी में दाबे

फरही और गेंहूँ–

भोर का सुर

03. वृद्धावलम्ब

बेड़ी से बंधा टॉमी–

मूर्ख दिवस

04. कोरे पन्ने में

केसर की खुशबू–

अप्रैल फूल

>>>>><<<<<

18 मार्च 2021

सुबह बैंगलोर से पटना आने के लिए तैयार ही हो रही थी कि रवि श्रीवास्तव का फोन गया, मेरे हेल्लो कहने पर उसने कहा,

"सोच रहा हूँ कि आपको बताऊँ कि नहीं बताऊँ, कॉल करने के बाद ध्यान आया कि इतनी सुबह तो आप यात्रा पर निकलने वाली होंगी?"

"जैसी भी सूचना हो तुम सहज मुझे बता सकते हो। अच्छी हो या बुरी हो.. अब मैं किसी भी तरह की सूचना के लिए हर पल तैयार रहती हूँ और तटस्थ हो जाती हूँ। चिन्ता बिलकुल नहीं करो। अंदाज़ा तो लगा ही ली हूँ कि तुम कोई बुरी सूचना दोगे। बस बता दो क्या और किसकी है?" मैंने कहा।

"सुनील जी के पिता का देहान्त रात ग्यारह बजे हो गया।" बेहद उदास स्वर में रवि ने कहा।

"नियति की जैसी मर्जी... बाकी लोगों को भी सूचित कर देना।

मैं ज्यादा देर उलझी नहीं रह सकती थी कि सुनील जी अभी किस मनोस्थिति में होंगे... फोन करूँ या फोन ना करूँ.. क्योंकि हवाईअड्डा के लिए ओला कैब बुक करना था..।

व्हाट्सएप्प पर ,"🙏बेहद दुःखद...।" सन्देश भेज ओला बुक की और हवाईअड्डा आ गयी...। दिमाग ना उलझने से बचा नहीं रह पाया.. सुनील जी और सुनील जी के पिता के बारे में सोचता रहा..। पिता जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने के कारण सुनील जी चिन्तित रहा करते थे। हवाईअड्डा से उन्हें फोन की लेकिन वे उठा नहीं पाए।

पन्द्रह महीने और पाँच दिन के बाद पटना पहुँचकर घर में धूल और बदबू के फैले साम्राज्य के मकड़जाल फँसी मैं छींक और दिमाग में हलचल से बेहोशी में डूबने-उतराने लगी...। 

22 मार्च 2021

"मेरे पसन्द के दो ही रंग श्वेत और श्याम हैं... श्वेत जिन्दगी से मिले बाकी सब रंगों को सहेज लेता है और श्याम उसे सहारा देता है...। 

आज कुछ सामान्य मनोस्थिति में आते सुनील जी को दो-तीन बार फोन की। वे शायद अति व्यस्त रहे होंगे.. मेरा फोन नहीं उठा पाए तो "चित्त शान्त हो तो फोन कीजियेगा..!" पुनः उन्हें व्हाट्सएप्प पर सन्देश भेज दी।

कुछ देर के बाद सुनील जी का फोन आया। उनसे उनके पिता जी के स्वास्थ्य और मोक्ष पर बातें हुई। बिस्तर पर पड़ा पिता भी बरगद का छाँव होता है। नियति के आगे बस सभी मजबूर हैं। अब सुनील जी अपने घर के बरगद हो गए। उनके सर पर पगड़ी बाँधने का रस्म 29 मार्च 2021 को होना था।

23 मार्च 2021

"उम्मीद है भाई सुनील कुमार जी से आप सभी की बात हुई होगी.. 29 मार्च 2021 को उनका पगड़ी का रस्म होगा ... होली भी है लेकिन उनके साथ खड़ा होना भी उतना ही आवश्यक है... क्या हम एक समय तय कर लें जिसमें हम सभी एक संग चलें ?" व्हाट्सएप्प समूह में मैं सन्देश दे दी।

कल सोमवार 29 मार्च 2021 को भाई सुनील जी से मिलने... संजय कुमार सिंह, रवि श्रीवास्तव, अभिलाष दत्त, एकता कुमारी, इन्दल जी, करुणा श्रीवास्तव जी और मैं ... शाम के साढ़े छ बजे निकलेंगे...

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    रंग भरी होली की शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  2. कठिन परिस्थिति में मन को शांत रखना सबको नहीं आता .... ये साल न जाने किस किस को ले गया अपने साथ ... हार्दिक संवेदनाएं

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

शिकस्त की शिकस्तगी

“नभ की उदासी काले मेघ में झलकता है ताई जी! आपको मनु की सूरत देखकर उसके दर्द का पता नहीं चल रहा है?” “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो, मैं माँ होकर अ...