Monday, 12 July 2021

ज्ञान

 लाहौर में जन्मस्थली और पटना में कर्मस्थली बनाये हमारे गुरु/अभिभावक में अनुकरणीय बहुत से गुण हैं... –'जंग जीतने का जज़्बा, –'सब ईश की कृपा मान सहज स्वीकार कर लेना, –'लगातार पढ़ना और लिखना, 【और हाँ! लेखन कार्य करते समय रेडियो से गाने सुनना और टॉफी खाना, (एक बात बताऊँ टॉफी खाते हुए निश्छल शिशु लगते.. वैसी ही सरल मुस्कान चेहरे पर होती है)】, –'समय का पाबन्द होना –'महिलाओं का मन से आदर करना। रक्त से बने जो जिस सम्बन्ध में आती महिला उनको वो आदर मिलना स्वाभाविक है लेकिन रक्त से परे समाज में मिली जिन महिला से जो सम्बन्ध उनके दिल ने स्वीकार किया उसे उस रूप में ही वे स्वीकार करते हैं यानि जिसे शिष्या कहा तो सदैव शिष्या रही, जिसे बिटिया कहा वो एक पिता का प्यार ही पाया.. जिसे बहन कहा उसे कभी गलती से भी दोस्त नहीं कहा हालांकि बहन सच्ची मित्रता निभाई..., जिस महिला को दोस्त कहा , किसी भी दबाव में उसे बहन नहीं कहा।

पुरुषों की गलत बात पर तो थपड़ियाने-धकियाने में सोचते नहीं हैं । लेकिन किसी महिला से नाराज होते नहीं देखा गया। सबसे मज़ेदार बात तब होती है जब भाभी जी (गुरु जी की पत्नी) नाराज़ होती हैं और गुस्से में बोलना शुरू करती तो गुरु जी अपने शर्ट का किनारा पकड़कर फैला लेते हैं जैसे कुछ मांग रहे हों। भाभी जी अकेले बोलते-बोलते जब थक कर चुप हो जाती हैं तो शर्ट को झाड़कर हाथ झाड़ते हुए खिलखिलाने लगते हैं और भाभी जी गुस्सा तो दूर हो ही चुका था। माहौल ऐसा हो जाता है जैसे कुछ देर पहले कोई बात ही नहीं हुई हो गुस्सा दिलाने वाली।

एक बार मैं पूछी थी कि," आप इतनी देर चुप कैसे रह लेते हैं और शर्ट फैलाने का अर्थ क्या है ?"

"अगर मैं चुप नहीं रहूँ तो बहस में बात बिगड़ती जाएगी और रिश्ते में कड़वाहट के सिवा कुछ नहीं बचेगा। मेरी किसी गलती से उसे नाराज होने का पूरा हक है और वो किससे कहेगी..! और वो जो गुस्से में कहती है उसे मैं फैलाये अपने शर्ट में बटोरता जाता हूँ । जो समझने योग्य बात होती है उसे आत्मसात करता जाता हूँ और उस गलती को दोबारा नहीं दोहराने का प्रयास करता हूँ और जो अनर्थक विलाप होता है उसे झाड़ देता हूँ।

मुझे नए-नए सबक मिलते रहे...

5 comments:

  1. आदरणीया विभा दी,
    एक प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में आपने जो बातें साझा की हैं वे हमारे लिए एक संदेश हैं, सीख हैं। ऐसे आपके गुरुवर्य को मेरा नमन।

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  2. कितनी सार्थक सीख दी है इस संस्मरण के द्वारा । बहुत खूब

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  3. बाल सुलभ भोलापन और निश्छलता उनके व्यक्तित्व से अविरल टपकता रहता। अफसोस होता है कि उनकी 45 मिनट लंबी वार्ता को रिकॉर्ड क्यों नहीं कर लिया! प्रणाम।

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