आँखों की नमी
या चश्मे पर धुन्ध !
रौप्य जयंती
लघुकथा के कार्यशाला में कॉपी का निरीक्षण करते हुए कथा पर शंका जाहिर किया तो लेखक झट से कह गया, –"यह सत्य घटना है मेरे सामने घटी है,"
"तो लेखन पूराकर अखबार के कार्यालय में भेज देते, इसमें तुम्हारी मेहनत कहाँ है ? सत्य एक का होता है। थोड़ी कल्पना का सहारा लेकर..."
""चलो मान लेते हैं आपकी बात 'सत्य मत लिखो'... सत्य कथा अखबार के लिए होती है..., 'यथार्थ' सबकी बात लिखेंगे...,"
"बहुत बढ़िया ! तुम्हारा श्रम तुम्हें बहुत आगे एक ऊँचाई पर लेकर जाएगा।"
"क्या करेंगे ऐसी ऊँचाई का ! जिसमें खुद के अनुभव के भावाभिव्यक्ति की गुंजाइश नहीं। मानो बरगद के नीचे घोलघेरे में जलहीन।"
"कहने की क्या चाहत है ?"
"गुटबन्दी के शिकार होने का अनुभव एकल का सत्य होता है..,"
सटीक
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