Friday, 9 July 2021

दीर्घकालव्यापी को नमन

 लगता है प्रलय करीब ही है?" कल्पना ने कहा।

"तुम्हें कैसे आभास हो रहा है?" विभा ने कहा।

"जिधर देखो उधर ही हाहाकार मचा हुआ है, साहित्य जगत हो, चिकित्सा जगत, फ़िल्म जगत..," कल्पना ने कहा।

"तुम यूसुफ खान साहब के बारे में बात कर रही हो न? वे तो बेहद शारीरिक कष्ट में थे।" विभा ने पूछा।

"लोग सवाल कर रहे उन्हें दफनाया जाएगा कि जलाया जाएगा?"

"कुछ देर की प्रतीक्षा नहीं होती न लोगों से...! वक्त पर सभी सवाल हल हो जाते हैं। उपयुक्त समय पर उपयुक्त सवाल ना हो तो तमाचा खाने के लिए तैयार रहना पड़ता है।"

"आज बाबा को भी गए बारह दिन हो गए!" कल्पना ने कहा।

"कुछ लोगों को शिकायत है कि बाबा उन्हें अपने फेसबुक सूची में जोड़ने में देरी किये या जोड़े ही नहीं..! बाबा तो अपने फेसबुक टाइमलाइन पर केवल तस्वीर पोस्ट किया करते थे.. और उनका पोस्ट पब्लिक हुआ करता था...,"

"अरे हाँ! इस पर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया। नाहक मैं उस बन्दे को समझाने चली गयी।"

"नासमझ को समझाया जा सकता है। अति समझदार से उलझ अपना समय नष्ट करना है।

प्रत्येक जीव प्रायः तीन प्रकार की तृष्णाओं से घिरा होता है, जैसे :- वित्तेषणा, पुत्रेष्णा, लोकेषणा।

वित्तेषणा, पुत्रेष्णा की बात छोड़ो ...लोकेषणा का अर्थ होता है प्रसिद्धि। जब मनुष्य के पार पर्याप्त धन-संपदा आ जाती है और उसे कुछ भी पाना शेष नहीं होता है साथ ही पुत्र-पौत्र से भी घर आनंदित होता है तब उसे तीसरे प्रकार की तृष्णा अर्थात लोकेषणा से ग्रसित होने की इच्छा जगती है। जब धन संपदा और पुत्र पौत्र से घर संपन्न हो जाता है तब उसे प्रसिद्धि की इच्छा होने लगती है कि कैसे भी हो लोग उसे जाने। इसके लिए वह अनेक प्रकार के यत्न करता है क़ि कैसे भी हो उसका समाज में मान सम्मान बढ़े। फिर वह किसी के थोड़े से सम्मान से भी गर्व का अनुभव करता है और कोई ज़रा से कुछ गलत बोल दे तो अपना घोर अपमान समझता है। और जिन्हें किसी से बिना मतलब शिकायत होती है न वे लोकेषणा से ग्रसित होते हैं..!"


8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

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  2. बहुत सुंदर और सटीक

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  3. लोकेषणा नई सी जानकारी .... बेहतरीन सोच ।

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  4. उत्तम लिखा विभा दीदी

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. इच्छायें (इष्)अनन्त हैं पर इन्हीं तीन वर्गों में रखी जा सकती हैं। सुन्दर विश्लेषण और विवेचन।

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