लघुकथा लेखक द्वारा आयोजित 'हेलो फेसबुक लघुकथा' सम्मेलन का महत्त्वपूर्ण विषय 'काल दोष : कब तक?' था।
आमंत्रित मुख्य अतिथि महोदय डॉ. ध्रुव कुमार, डॉ. सतीशराज पुष्करणा के विचारों को उदाहरण में रखते हुए अपने विचारों को रखा कि काल-खण्ड दोष से बचना चाहिए। सारिका में छपे स्व रचित दो लघकथाओं का पाठ भी किया। जिमसें काल दोष से बचाव नहीं हो सका था।
अध्यक्षता कर रहे अतिथि महोदय को अपनी बात दृढ़ता से रखने का आधार मिल गया। उन्होंने कहा कि "हम अगर काल दोष को अनदेखा ना करें तो उम्दा लघुकथाओं से पाठक वर्ग वंचित रह जायेगा। देखिए सारिका में छपी लघुकथा में काल दोष है लेकिन भाव सम्वेदनाओं से परिपूर्ण लघुकथा एक ऊँचाई पा रही है।
अब बारी आयी विभा रानी श्रीवास्तव की, कहना पड़ा कि इतने वरिष्ठ जनों के सामने क्या बोलूँ.., बस! एक उदाहरण देती हूँ जो आपलोग अवश्य पढ़े होंगे, मधुदीप जी की लिखी कथा 'समय का पहिया' (विश्वास था कि उपस्थित में से कोई पढ़ा नहीं होगा)। अगर लघुकथा में डायरी विधा , पत्र लेखन या यादों को शामिल किया जाए तो काल दोष से बचा भी जा सकता है और उम्दा लघुकथाओं को पाठक के सामने लाया भी जा सकता है। वैसे ना तो सभी पाठक और ना पुस्तक, पत्रिका, समाचार पत्र के सभी सम्पादक विधा के पारंगत होते हैं। वैसे भाई जान! लघुकथा से ही पाठक को क्यों सन्तुष्ट करना। लघु कथा से भी पाठक सन्तुष्ट हो जाते हैं।
अगर हम लघुकथा के प्रति समर्पित हैं तो उसके दिशा निर्देश और अनुशासन मानने के प्रति भी प्रतिबद्धता रखेंगे।
सहमत
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