बाड़ छाया की
आँगन से वापसी
गुल अब्बास
सूर्य की छाया
स्तुति जल में दृश्य
आँखों में आँसू
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'"दादा ने मुझसे कहा था कि जब मैं मेडिकल में नामांकन करवाने जाऊँगी तो वे मेरे साथ जाएंगे।"
"तो क्या हुआ, वे नहीं गए तुम्हारे साथ?"
"परिणाम आने के पहले वे मोक्ष पा गए।"
"ओह्ह!"
"बाबा के श्राद्धकर्म के बाद उनका बक्सा खोला गया तो उसमें लगभग चार लाख रुपया था और दादा की लिखी चिट्ठी। जिसमें लिखा था मुनिया की शिक्षा के लिए।"
"वाह! यह तो अच्छी बात है। तुम्हारी पढ़ाई में आर्थिक बाधा नहीं आएगी।"
"बाधा नहीं आएगी, मेरी माँ ने वादा किया है। उस रुपया को मेरी फुफेरी बहन की पढ़ाई के लिए देते समय।"
"क्या तुम चिन्तित हो?"
"नहीं! बिलकुल भी नहीं।"
"फिर?"
"आप इस बार हमारे घर में स्थापित नहीं होंगी। इसलिए तो मैं आपसे अपनी बात कहने कुम्हार काका के घर आयी हूँ। आप जगत जननी हैं। मेरी जननी का साथ दीजियेगा।"
"कर भला...,"
सुन्दर
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१६ -१०-२०२१) को
'मौन मधु हो जाए'(चर्चा अंक-४२१९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteनवरात्रि पर इतनी सुंदर कहानी विभा जी, गजब लिखती हैं आप। बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDelete.... सुंदर कहानी
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