"फरवरी : वसन्त आ गया...वसन्त आ गया.. इश्क का मौसम आ गया...
°°
मुझे चम्पा से इश्क हुआ...,
°°
और आपको ?"
"सभी जगह ये मौसम इस बार इश्क़ ले कर नहीं आया।"
"ऐसा हो ही नहीं सकता..। शुरू हुआ इश्क कभी समाप्त नहीं हो सकता..।
मुझे बचपन से चम्पा से लगाव था, तब पागलपन समझने की उम्र नहीं थी। गुड़ियों से या घर-घर खेलना रुचिकर नहीं रहा। चम्पा के पेड़ के नीचे कंचा खेलना अच्छा लगता था। जब-तब अमरूद के पेड़ पर चढ़कर अमरूद खाना और चम्पा को निहारना अच्छा लगता। जब सन् 1994 में पटना निवास की तो बगीचा में चम्पा से पुनः भेंट हो गयी। कुछ सालों के बाद एक दिन पथ चौड़ीकरण में कट गया पेड़। रात को भोजन नहीं किया जा सका। लेकिन बहुत ज्यादा देर उदास रहने की मोहलत नहीं मिली। कुछ दिनों के बाद कटे ठूँठ बने मृतप्राय तने में से कोपल झाँक रहा था। "तुम्हारी उदासी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो सकी। वृक्ष बनने का स्थान बनाओं..।"
सन् 2017 में हरिद्वार साहित्यिक सम्मेलन में उपहार स्वरूप चम्पारण के चम्पापुर से आया चम्पा का पौधा मिला। "तू जहाँ -जहाँ चलेगा, मेरा साया, साथ होगा.."
14 जुलाई 2019 को वृक्षारोपण के लिए कुछ पौधा मंगवाया गया था। सवाल आया "किस चीज का पौधा भेज दूँ?"
"अपने मन से भेज दो जो तुम्हारे पास उपलब्ध हो!"
और पौधों के झुंड में चम्पा मुस्कुरा रहा था..। उसे द इंस्टीच्यूशन ऑफ इंजीनियर्स(इंडिया) पटना में बड़ा होने का मौका दिया जा रहा है पर अभी तक खिला नहीं। हर गोष्ठी में पूछती हूँ, "तू मुकम्मल कब होगा?"
"जो मुकम्मल हो जाऊँ तो बिखड़ना पड़ेगा न...,"
एक ऋतु या कुछ पल का मोहताज नहीं हो सकता इश्क!
–जीवन में ऐसे ही तो आता है..
मेरे तात्कालिक आवास के इर्द गिर्द ढेरों चम्पा के पौधे हैं,और जब भी देखतीहूँ, आपका यह इश्क़ याद आता है ।
ReplyDeleteवाह..बहुत खूबसूरत इश्क।सच में समय में कहाँ बंधता है ये इश्...
ReplyDeleteचम्पा का विशल वृक्ष मेरे आंगन में भी है। वाह।
ReplyDeleteएक तस्वीर उपलब्ध करवा देने का कष्ट करें
Deleteसादर
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह! इश्क़ भी चम्पा की तरह ही ख़ूबसूरत होता है
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०२ -२०२२ ) को
'तुझ में रब दिखता है'(चर्चा अंक -४३३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार आपका
Deleteबस इश्क भी मुक्कमल नहीं होना चाहिए ।
ReplyDeleteदेखा जाए तो फूलों में चम्पा किसी ऋषि के समान होता है ! इसका परागण नहीं होता ! विषय-वासना रहित !
ReplyDeleteबहुत सुंदर, वाह
ReplyDeleteवाह बहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteएक ऋतु या कुछ पल का मोहताज नहीं हो सकता इश्क!
बिल्कुल सही कहा आपने...!
यह चित्र चम्पा का तो नहीं लगता, बहुत सुंदर पोस्ट, चम्पा के साथ मेरे बचपन की यादें भी जुड़ी हुई हैं
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेखनी
ReplyDeleteबहुत सुंदर सटीक कथन ।
ReplyDeleteइश्क किसी समय या ऋतु का मोहताज नहीं ।
सराहनीय सृजन ।
बहुत बढ़िया प्रिय दीदी। इश्क हो तो ऐसा 👌👌 फूल से इश्क होना सही में इन्सान होना है 🙏🙏🌷🌷
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