बोसा की नमी
पंखुड़ी पर छायी–
रूपा तितली
°°
प्यार का बोसा–
तृण कोर अटकी
ओस की कनी
°°
"क्या कर रही हो?"
"साड़ी के मिलान का शॉल ढूँढ़ रही हूँ..,"
"लाओ मैं मिलाकर ढूँढ़ देता हूँ। तुम दूसरा काम देख लो।"
"क्या कर रही हो, खाना बन गया?"
"भुजिया बनाना बाकी है,"
"मैं देख लेता हूँ, तुम तब तक तैयार हो जाओ।"
"जोरू का गुलाम हो गया है।"
"हाँ! आपने सही कहा। सेवा निवृति के बाद तो पता चला कि मैं कितना ऋणी होता रहा। बच्चों को सोये देखा। माता-पिता मुझे श्रवण पूत कहते रहे। लेकिन मैं उनके लिए कभी कुछ नहीं किया । सारी जिम्मेदारियों में जोरू को जोते रखा।"
"अब तू घर में बैठा रहता है और तेरी..."
"समाजिक ऋण उतार रही है।"
कितने कितने सत्य :)
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