सह जाने की मिसालें नहीं दी जाती
काश गुलाब में कांटे नहीं होते
जीवन आतंक में सिमटे नहीं होते
जंग में मिसाइलें नहीं होते
कहीं सास बहू से पीड़ित है
कहीं बहू सास से पीड़ित है
कहीं बेटी के लिए माँ का दुखड़ा है
कहीं भाई-भाई में झगड़ा है
सोच के कचरे की अति भीड़ का रगड़ा है
नासमझ, काल का बड़ा विशाल जबड़ा है
जो पीड़ित वो किसी के दिल का टुकड़ा है
जाल में मकड़ी का रहना ही बड़ा लफड़ा है
मिसाइलें /प्रक्षेपास्त्र
एक जाल कई मकड़ियां
ReplyDeleteसादर प्रणाम
ReplyDeleteआदरणीय हार्दिक आभार आपका
यथार्थ का सटीक चित्रण ।
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक कहा आपने!
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteवर्तमान समय के सच को उजागर करती
ReplyDeleteअच्छी रचना
सादर