दो दो लड्डू दो दो लड्डू दो दो
खिली सरसों–
बवंडर में नाचे
पत्ते व पन्ने
°°
कुर्सी कुछ ऐसी है
जिससे चिपकते ही
राग बदल जाता है
पंच में परमेश्वर नहीं दिखता है
न्याय का क्रय-विक्रय होता है
अपने होने का उपहार पाता है
अन्तर्कथा “ख़ुद से ख़ुद को पुनः क़ैद कर लेना कैसा लग रहा है?” “माँ! क्या आप भी जले पर नमक छिड़कने आई हैं?” “तो और क्या करूँ? दोषी होते हुए भ...
सटीक
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4351 में दिया जाएगा| ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
दिलबाग
हार्दिक आभार आपका
Deleteएकदम सही कहा आपने
ReplyDeleteकुर्सी से चिपकते ही राग बदल जाते हैं
बहुत खूब !
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