Saturday, 25 May 2013

औरत को घर बचाना है कैसे बचाए ??........

रामायण में एक प्रसंग है कि राम जब वनवास में थे और एक बार नदी पार करने के क्रम में मल्लाह उनके पैर धो कर नाव में चढ़ने का अनुरोध करता है ,क्यों कि राम जी पैर के धूल लगने से पत्थर भी औरत हो गई थी ....
 खैर ....
प्रश्न उठता है कि दूसरी स्त्री क्यों किसी विवाहित पुरुष को चुनती है ?
इसके कई कारण हो सकते हैं पर उसमें सबसे महत्वपूर्ण कारण है ,पुरुष-प्रधान व्यवस्था .... यह व्यवस्था महत्वाकांक्षी स्त्री को अपने सपने पूरा करने का सीधा रास्ता नहीं देती .... ऐसी अवस्था में वह मजबूत पुरुष के कंधे का सहारा ले बैठती है .... यौनाकर्षण भी ऐसे रिश्ते का एक बहुत बड़ा कारण  हो सकता है ....
अकेली , अविवाहित ,परित्यक्ता ,विधवा ,आश्रयहीन परिवार से उपेक्षित स्त्रियाँ भी ऐसा कदम  उठा  लेती हैं .... पर रिश्ते बन जाने  के बाद  दूसरी औरत को महसूस  होता  होगा  कि उसके  भीतर  के दादी -नानी  वाले  संस्कार  अभी  मरे  नहीं हैं .... और भारतीय  समाज अभी इतना  आज़ाद  ख्याल  नहीं हुआ है  कि अवैध  रिश्तों  को आसानी  से हजम  कर ले ....  तभी उसकी महत्वाकांक्षा  भी उसके  अंदर की रूढ़िवादिता  में घिरी  स्त्री के आगे  हार  जाती  होगी  और वह  पारंपरिक  पत्नी  और माँ  बनाने  के लिए  छटपटाने  लगती  होगी  .... ऐसी मनोस्थिति  में वह  प्रेमी -पुरुष पर दबाब  बनाने  लगती  होगी  ....
वह  भूल  जाती  है कि रिश्ते  बनाते  समय  उसने  सामाजिक  मर्यादा  की शर्त  नहीं रखी  थी .... जब उसने  पहले  पत्नी और माँ  का अधिकार  नहीं चाहा  था  , फिर  वह  सब उसे कैसे मिले  ?
पुरुष चाह  कर भी उसे  यह सब  दे  ही  नहीं सकता  .... यह सब  तो  उसके  पास पहले  से ही  होता  है .... पूरी  सामाजिक  मान्यता  और प्रतिष्ठा  के साथ  ....
दूसरी औरत यह भी भूल  जाती  है कि  अगर  पुरुष उसे  वह  सब दे देता है ,तो  पहली  स्त्री के जायज  हक़  मारे  जाएंगे  ....
लेकिन 
शादीशुदा ,सम्पन्न प्यारे-प्यारे बच्चे प्यार करने वाला पति और एक अच्छी सैलरी पर काम करने वाली औरत दूसरे शादीशुदा मर्द के साथ नाजायज रिश्ता रख कर क्या पाती है ....? आज का बौद्धिक पुरुष मानसिक अर्धगिनी चाहता है वो स्त्री के बौद्धिकता से प्रभावित होता है अगर उसकी पत्नी बौद्धिक स्तर में भी कम ना हो तो .... ?? 
एक स्त्री की बर्बादी  पर दूसरी स्त्री अपना  घर  कैसे  आबाद  कर सकती  है ?
दूसरी तरफ  पुरुष यौनाकर्षण  में दूसरी औरत को अतिरिक्त  आत्मविश्वास  से भर  देता  है .......। पुरुष भी भूल  जाता  है कि यह नवीनता  का आकर्षण  है ,जो  बहुत  जल्द  ही अपनी  चमक  खो  देगा  और होता  भी वही  है ......।
दूसरी औरत को देह - स्तर पर हासिल  करते  ही  नशा  हिरण  हो जाता  है .......। पुरुष को महसूस  होता  है कि देह -स्तर  पर सब  स्त्री एक जैसी  ही  है ......। अत: उसे  दूसरी स्त्री के लिए  अपना  सब -कुछ  दांव  पर लगाना  मूर्खतापूर्ण  कदम  लगने लगता  है और वह बदलने   लगता  है ..........। पुरुष के बदलाव  का जब दूसरी औरत विद्रोह  करने लगती  है ,तब पुरुष उस  दूसरी औरत से छुटकारा  पाने  के लिए घृणित  कदम  उठा  लेता  है और वापस  पत्नी  की शरण  में ही  आ  जाता है …. और  पत्नी  अपने  बच्चों  परिवार  समाज तथा  अपनी पराश्रयता  के  कारण  खून  का  घूंट  पीकर  भी  ऐसे  पति  को  क्षमा  कर  देती  है ....... पुरुष  भी सारा दोष  दूसरी  औरत  पर  मढ़  कर  पल्ला  झाड  लेता  है  …….
ऐसे हालातो  के  बाद  उस  दूसरी  औरत  को  क्या  मिलता  है  …. मारी  जाती  तो  वो  दूसरी औरत  ही  है   ……… एक  तो  वो  दूसरी  औरत  पुरुष  के  प्रेम (जो तो  होता  ही  नहीं है, सिवाय  वासना  के) से  वंचित  हो  जाती  है  ,दूसरे  ये  बौना  समाज  उसे  क्षमा  नहीं  करता  …. ऐसे  हालातों  में  उसके  मन  में  ये  अपराध -बोध  आ  जाता  है  कि  वो  एक  पत्नी  से उसका  हक़  छिनने  का कोशिश  की थी  जिसमें  कुछ  समय  के  लिए  कामयाब  भी  हुई  थी ….
इन  सारी  विसंगतियों  के  कारण  दूसरी  औरत  टूटने - बिखरने  लगती  है  और  उसके पास कोई  संभालने  वाला  नहीं  होता  ऐसे  में  वो  मौत  को  गले से  लगा  बैठती  है  ……
एक  स्त्री  को  पुरुष  की  स्त्री  बनने  के  बजाय  पहले  सिर्फ  एक  स्त्री  बनाना  चाहिए एक पूर्ण  आत्मनिर्भर  स्वाभिमानी  स्त्री  ….. तभी  वह  कठपुतलिपन  से  छुटकारा  पा  समाज  से  अपने अधिकार  पा  सकेगी ....
आत्मनिर्भर  स्त्री  ही  बिना  कुंठित  हुये  तीव्रता   और  साहस  के  साथ   समाज   की  बंद  कोठिरियों  की  अर्गलायें  अपने  लिए  खोल  सकेगी  ……..
ऐसा नहीं है कि पहली पत्नी बहुत सुखी होती  है  …. उसकी छटपटाहट का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता .... पर  …. वह  पति  त्याग  का साहस  नहीं  जुटा  पाती  है  .... कुछ विद्रोह  करती है तो अपना घर तबाह कर  लेती है ….
हर हाल में  घर  बनाने  से  लेकर  बिखरने  के   हालात  तक  की जिम्मेवार  एक  औरत ही होती है ?? …………
बस  एक  औरत  ??
दादी को सजना सीखना है
माँ को घर संवारना है
पत्नी को नहीं बिखरना है
औरत को घर बचाना  है
कैसे बचाए .........
??

विभा रानी श्रीवास्तव

http://sarasach.com/vibha-3/

15 comments:

  1. घर मिलता है तो बचाना नहीं पड़ता .... उपकार और टुकड़े की अवधि कब ख़त्म होगी - कौन जाने !

    ..............और किसी बात पर इतना ही कह सकती हूँ ......... हज़ार बातें करे ज़माना - ठेंगे से

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  2. मैं सिर्फ इतना कहूँगा की दमदार लेख | इससे ज्यादा कुछ नहीं |

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  3. पुरुष प्रधान देश है अपनी पत्नी को छोड़ क्यों किसी और स्त्री के साथ |उनके अपने घर में भी बेटी,बहिन है | आप स्त्री होकर स्त्री के प्रति लिख रही कोई यह बात आपके लिए भी लिख सकता समाज में सुधार की आवश्यकता आपके व्यंग की नहीं पुरानी कथाओं के अनुसार |क्या कुंती के पांच पति नहीं थे कर्ण पुत्र भी तो हुआ | एक लव्य की माँ पुत्र को लेकर जंगलों में नहीं रही
    विष्णु जिन्हें भगवान् कहते अपनी कन्या के साथ सम्भोग किया था लक्ष्मण ने स्वरूप नखा के साथ और बाद में उसकी नाक काट दी|दोष महिलाओं क्यों

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  4. कारण और निवारण दोनों ही संतुलित रूप में लिखे हैं ...

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  5. बहुत बेहतरीन दमदार आलेख ,,,
    RECENT POST : बेटियाँ,

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  6. दमदार प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...

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  7. बस यही तो मुश्किल है..पुरुष करे तो कुछ नहीं स्त्री करे तो दोषी..गहन सोच..

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  8. आपकी यह रचना कल सोमवार (27 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  9. बहुत ही गहन विश्लेषण किया है आपने. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.

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  10. सुंदर प्रस्तुति चाची ....

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  11. लेख अच्छा है.. विचारणीय भी है..
    दोष क्या सिर्फ स्त्री का ही होता है..?
    नहीं पुरुष भी बराबर का दोषी होता है.. तो फिर समाज में सजा सिर्फ औरत को ही क्यूँ..त्रिस्कार सिर्फ औरत का ही क्यूँ..?
    इसका जवाब भी मैं देती हूँ.., क्यूंकि औरत ही पुरुष को क्षमा कर देती है, लेकिन पुरुष औरत को कभी क्षमा नहीं कर पाता..वो इसलिए क्यूंकि समाज पुरुष प्रधानता को मानता है.. हम ऐसे कितने ही लेख लिख डाले लेकिन औरत स्वाभाविक रूप से हमेशा पुरुष के साए में ही खुद को महफूज़ समझती रहेगी..

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  12. बहुत कुछ स्वभावगत अथवा संस्कारगत भी है!!

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