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चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात की जगह
चारो दिन ,आठों पहर ,स्याह दिन ,कपाती रहती रूह
बस चार दिन
बस चार दिन
चार दिन पहले शोक-संताप
परसो आक्रोश-भड़ास
कल संकोच-सन्नाटा
आज सम्पूर्ण-शांति
बस चार दिन
बस चार दिन
फिर
इंतजार
फिर
एक घटना के लिए
बस चार दिन
बस चार दिन
चारो घड़ी आठों पहर
बस जीतने चाहो
गले फाड़ लो
बस जीतने चाहो
मोमबत्तियाँ जला लो
बस जीतने चाहो
शब्द उढेल लो
बस जीतने चाहो
कागज़ काला लो
फायदा व्यापारियों को भले हो
किसी और का भला हो
ऐसा हो नहीं सकता
हो ही नहीं सकता
चौथा हो चूका है
उसके जमीर का
जो कुछ कर सकता है
वो जानता है
ये उबाल भी है ,
बस चार दिन का ..................
आप ठीक कह रही है दीदी ... पर यहाँ कुछ ऐसे बड़े बड़े लोग भी है जिन्हें यह 4 दिन भी बहुत ज्यादा लगे ... ऐसे मे 5 वें दिन काफी लोगो की हिम्मत जवाब दे देती है ... :(
ReplyDeleteबहुत गहन और सार्थक अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख
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लेख पसंद आने पर टिप्प्णी द्वारा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
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बिलकुल ठीक कहा है आपने माँ जी, गहन अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteइस देश का कुछ नही होसकता है...
ReplyDeleteक्या कहूँ इस रचना के बारे में. अनुपम अद्वितीय
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति!!
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति!!
ReplyDeleteबस , संवेदनाओं का उबाल भर होता है ..... गहरे अर्थ लिए पंक्तियाँ
ReplyDeleteगहन चिंतन
ReplyDeleteबिलकुल ठीक कहा है आपने ताई जी
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