Sunday, 5 May 2013

बस चार दिन


http://sarasach.com/vibha/

चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात की जगह
चारो दिन ,आठों पहर ,स्याह दिन ,कपाती रहती रूह
बस चार दिन
बस चार दिन
चार दिन पहले शोक-संताप
परसो आक्रोश-भड़ास
कल संकोच-सन्नाटा
आज सम्पूर्ण-शांति
बस चार दिन
बस चार दिन
फिर
इंतजार
फिर
एक घटना के लिए
बस चार दिन
बस चार दिन
चारो घड़ी आठों पहर
बस जीतने चाहो
गले फाड़ लो
बस जीतने चाहो
मोमबत्तियाँ जला लो
बस जीतने चाहो
शब्द उढेल लो
बस जीतने चाहो
कागज़ काला लो
फायदा व्यापारियों को भले हो
किसी और का भला हो
ऐसा हो नहीं सकता
हो ही नहीं सकता
चौथा हो चूका है
उसके जमीर का
जो कुछ कर सकता है
वो जानता है
ये उबाल भी है ,
बस चार दिन का ..................




14 comments:

  1. आप ठीक कह रही है दीदी ... पर यहाँ कुछ ऐसे बड़े बड़े लोग भी है जिन्हें यह 4 दिन भी बहुत ज्यादा लगे ... ऐसे मे 5 वें दिन काफी लोगो की हिम्मत जवाब दे देती है ... :(

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  2. बहुत गहन और सार्थक अभिव्यक्ति ....

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  3. बहुत ही सुन्‍दर लेख
    हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्‍त करने के लिये इसे एक बार अवश्‍य देखें,
    लेख पसंद आने पर टिप्‍प्‍णी द्वारा अपनी बहुमूल्‍य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
    MY BIG GUIDE

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  4. बिलकुल ठीक कहा है आपने माँ जी, गहन अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई

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  5. बहुत ही सुन्‍दर

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  6. बहुत बढ़िया आंटी


    सादर

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  7. इस देश का कुछ नही होसकता है...

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  8. क्या कहूँ इस रचना के बारे में. अनुपम अद्वितीय

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  9. बहुत सार्थक प्रस्तुति!!

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  10. बहुत सार्थक प्रस्तुति!!

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  11. बस , संवेदनाओं का उबाल भर होता है ..... गहरे अर्थ लिए पंक्तियाँ

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  12. गहन चिंतन

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  13. बिलकुल ठीक कहा है आपने ताई जी

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