काश !
मैं एक विशाल वृक्ष और
छोटे-छोटे पौधे ही होती ....
एक विशाल वृक्ष ही होती जो मैं ....
मेरी शाखाओं-टहनियों पर
पक्षियों का बैठना - फुदकना
मेरे पत्तों में छिपकर
उनका आपस में चोंच लड़ाना ,
उनकी चह-चहाहट - कलरव को सुनना ,
उनका ,शाखाओं-टहनियों पर ,पत्तों में घर बनाना ,
गिलहरी का पूछ उठाकर दौड़ना-उछलना मटकना ,
मेरी छाया में थके मनुष्य ,
बड़े जीव जंतुओं का आकर बैठना
उनको सुकून मिलना ,
सबको सुकून में और खुश देख कर
मेरी खुशी को भी पंख लग जाते ....
मेरे शरीर से निकली आक्सीजन की
स्वच्छ वायु जीवन को सुकून देते ,
छोटे-छोटे पौधे ही होती जो मैं ....
मेरे फूलो से निकले खुसबु ,
वातावरण को सुगन्धमय बनाती ....
मेरे पत्तों-बीजों से
औषधि बनते
सबको नवजीवन मिलते
कितनी खुश होती मैं ...........
मुझे बयाँ करना मुश्किल है ......
लेकिन एक नारी औरत स्त्री हूँ मैं
जुझारू और जीवट
जोश और संकल्पों से लैस मैं
सामाजिक-राजनीतिक चादर की गठरी में कैद मैं
सामाजिक ढाँचे में छटपटातीं-कसमसातीं मैं
नए रिश्तों की जकड़न-उलझन में पड़ कर
पर पुराने रिश्तों को भी निभाकर
हरदम जीती-चलती-मरती हूँ मैं
रिश्तों में जीना और मरना काम है मेरा ....
ऐसे ही रहती आई हूँ मैं
ऐसे ही रहना है मुझे ?
उलझी रहती हूँ उनसुलझे सवालों में मैं
जकड़ी रहती हूँ मर्यादा की बेड़ियों में मैं
जीतने हो सकते हैं बदनामी का ठिकरा
हमेशा लगातार फोड़ा जाता है मुझ पर
उलझी रहती हूँ मैं
लेकिन
हँसते-हँसते सब बुझते -सहते
हो जाती हूँ कुर्बान मैं
कब-कब , क्यूँ-क्यूँ , कहाँ-कहाँ , कैसे-कैसे
छली , कुचली , मसली और तली गई हूँ मैं
मन की अथाह गहराइयों में
दर्द के समुद्री शैवाल छुपाए मैं
शोषित, पीड़ित और व्यथित मैं
मन, कर्म और वचन से प्रताड़ित मैं
मानसिक-भावनात्मक और
सामाजिक-असामाजिक
कुरीतियों-विकृतियों की शिकार मैं
लड़ती हूँ पुराने रीति-रिवाजों से मैं
करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
अंधविश्वासों की आँधी से
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
पर देती हूँ सबको अभयदान मैं
http://sarasach.com/vibha-2/
https://www.facebook.com/sarasachupdate?filter=2
di :)
ReplyDeletebahut behtareen rachna..
अंधविश्वासों की आँधी से
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
पर देती हूँ सबको अभयदान मैं
मानसिक-भावनात्मक और
ReplyDeleteसामाजिक-असामाजिक
कुरीतियों-विकृतियों की शिकार मैं
लड़ती हूँ पुराने रीति-रिवाजों से मैं
करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
अंधविश्वासों की आँधी से
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
पर देती हूँ सबको अभयदान मैं
बहुत सुन्दर रचना माँ | लाजवाब | बधाई
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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पौधे से वृक्ष तो आप बन ही चुकी ..... शाखाओं पर चिड़ियों की चहचहाहट, एहसासों की छाँव और कोमल पत्तियों की हवा में थिरकन ......
ReplyDeleteबस इतना ही सच है,जहाँ अधिक सोच हुई - कैद हो जाएँगी
कब-कब , क्यूँ-क्यूँ , कहाँ-कहाँ , कैसे-कैसे
ReplyDeleteछली , कुचली , मसली और तली गई हूँ मैं
मन की अथाह गहराइयों में
दर्द के समुद्री शैवाल छुपाए मैं
शोषित, पीड़ित और व्यथित मैं
मन, कर्म और वचन से प्रताड़ित मैं
वाह दी ......बहुत बढ़िया ......बेहतरीन रचना दी .....
बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना प्रस्तुति !!
ReplyDeletenishabd hu didi......
ReplyDeleteगहन सोच के साथ सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteऐसे ही रहती आई हूँ मैं
ReplyDeleteऐसे ही रहना है मुझे ?
स्पष्ट बात कही... संवेदनशील भावों के साथ
ReplyDeleteमानसिक-भावनात्मक और
सामाजिक-असामाजिक
कुरीतियों-विकृतियों की शिकार मैं
लड़ती हूँ पुराने रीति-रिवाजों से मैं
करती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
अंधविश्वासों की आँधी से
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
पर देती हूँ सबको अभयदान मैं
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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ReplyDeleteउलझी रहती हूँ उनसुलझे सवालों में मैं
जकड़ी रहती हूँ मर्यादा की बेड़ियों में मैं
जीतने हो सकते हैं बदनामी का ठिकरा
हमेशा लगातार फोड़ा जाता है मुझ पर
उलझी रहती हूँ मैं
लेकिन
हँसते-हँसते सब बुझते -सहते
हो जाती हूँ कुर्बान मैं---------
जीवन की गहन अनुभूतियों को समेटकर लिखी
भावुक और मार्मिक रचना
बधाई
वाह बहुत सुंदर गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
बहुत प्यारी रचना. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteऐसे ही रहती आई हूँ मैं
ReplyDeleteऐसे ही रहना है मुझे ?
ऐसे ही रहें आप हमेशा ... अनंत शुभकामनाएँ
सादर
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteBeautiful picture. From where it was taken?
ReplyDeleteकरती हूँ अपने बच्चों को सुरक्षित मैं
ReplyDeleteअंधविश्वासों की आँधी से
खुद रहती हूँ हरदम अभावों में मैं
पर देती हूँ सबको अभयदान मैं
...बिल्कुल सच...यही तो नारी और माँ का रूप है...बहुत भावपूर्ण और प्रभावी रचना...
behtareen rachna..
ReplyDeleteBeautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems...tai ji
बेहतरीन रचना दी ... अंतर्मन की व्यथा ..नारी का जीवन .. है तो वृक्ष का जड़ नारी पर ..
ReplyDeleteनारी की परिभाषा...क्या खूब लिखी है
ReplyDeleteगहन आभास लिए बहुत सुन्दर रचना...
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