मैं
एक पागल
और
आप
अलग - अलग
श्रेणी के पागल
जनता ही गूंगी बहरी हो गयी है !
पागल सारी दुनिया पागल है !!
विभा
पागल
एक कवि लिखता है कविता --------
बहुजन हिताय की !
समाज सुखाय की !!
करता है ,वर्णन
कुंठा ,संत्रास घुटन ह्त्या बलात्कार का
भूख बेरोजगारी आतंक और उग्रवाद का
व्यवस्था परिवर्तनकामी एक पाठक
पढ़ता है जब इसे
बढ़ जाता है रक्तचाप उसका
आने लगता है इससे चक्कर उसको
डाक्टर देता है परामर्श ----
ऐसी कविताओं का पढ़ना फौरन बन्द करें
वरना । उसका तो अहित होगा ही
उसके स्वजन को भी
खामियाजा भुगतना पड़ेगा इसका
मगर बहुजन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा
परिवर्तनकामी वह पाठक तब
देता है गाली ,ऐसे लिखानेवाले कवि को !
जिसे सुनकर कवि हँसता है और उसे -----
पागल कहता है!!
एक दूसरा कवि
लिखता है कविता स्वान्त: सुखाय की ----
करता है वर्णन जिसमें -
नारी के मांसल सौंदर्य का ,
प्रकृति के मनोरम दृश्य का ।
इस कविता का पाठक भी
व्यवस्था परिवर्तन का पक्षधर है
पढ़ता है जब वह इस कविता को तो
देता है गली उस कवि को की
जिसकी बहन जवान हो रही है
पिता कर गए हैं रिटायर
खेत पड़े हैं रेहान जिसके
महाजन सूद के लिए तक़ाज़ा कर रहा है
वह बेशर्म और बेखबर बनाकर
औरत की नंगी देह पर कविता लिख रहा है .....।
ताज्जुब होता है उस पाठक को कि
जब कवि के स्वजन -सहित सारी दुनिया
दुख में है तो
अपनी कविता से
दुनिया में आग लगाने कि जगह
सुख कि अनुभूति करते हुये
स्वान्त:सुखाय की कविता वह
किस प्रकार लिख रहा है ?
तब कवि को देता है गाली और
उसके मुंह पर पच्छ से थूक देता है
इस पर हँसता है कवि और
थूकने वाले को ही पागल कहता है ........।
कृष्ण अंबष्ट 10 अप्रैल 2000
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कवि अपनी भावनाओं को लिखता है ,पढने वाला चाहे पागल कहे या मूर्ख,,,इससे कवि को कोई फर्क नही पड़ता,,,उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteRecent post: जनता सबक सिखायेगी...
Well said. Good one . Plz visit my blog.
ReplyDeleteजा की रही भावना जैसी
ReplyDeleteप्रभु मूरत देखी तिन तैसी
kavi ko paagal kah lo ya vuddhimaan koi farak nahi padta
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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लेखन स्वान्तः सूखे के लिए ही होता है ...पढ़ने वाला उसे अपने भाव से पढता है ...
ReplyDeleteसही कहा ...
kavi bhi insaan hi hai.. ab pagal samjhen ya buddhimaan..
ReplyDeletewaise kavita dil ko chhooo jati hai
लेखन हमेशा स्वान्तः सूख के लिए ही होता है..पढ़्ने वाला किस भाव से पढ़ता है वह उस पर निर्भर करता है...वैसे कवि को सभी पागल कहते है क्योंकि बह अपना दिल खोल कर रखदेता है...
ReplyDeleteलेखन स्वयं की अभिव्यक्ति है , कोई इसको क्या समझे , उसकी मानसिकता पर निर्भर है !
ReplyDeleteलोग जो कहें लेखन तो जारी रहना ही चाहिए. सुन्दर रहना.
ReplyDeleteये दुनिया ही पागलखाना है ..अंदाज पसंद आया ..नयापन लगा. सादर बधाई
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