जैसे सावन के अंधे को हरा हरा दिखता है
वैसे ही इस माह में लोग मुझे बौराये दिखते हैं
बौराई तो मैं जो खुद हूँ …




सिंदूरी साँझ
क्षितिज चित्रपट
टेसू चितेरा।

रिश्ता जलाता
ध्रूमपान करता
शक का कीड़ा ।

“नगर के कोलाहल से दूर-बहुत दूर आकर, आपको कैसा लग रहा है?” “उन्नत पहाड़, चहुँओर फैली हरियाली, स्वच्छ हवा, उदासी, ऊब को छीजने के प्रयास में है...
सुन्दर चित्र सुन्दर हाईगा
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर और प्रभावी हाइगा..
ReplyDeleteसुन्दर चित्र गीत..
ReplyDeletetesu chitera ke sath tesu ke fool hote to sone men suhaga ho jata
ReplyDeleteरिश्ता जलाता
ReplyDeleteध्रूमपान करता
शक का कीड़ा ।
बहुत गहन हाइकु है ...!!
मनोहारी और सार्थक
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .
ReplyDeletechitrmay hayku , bahut bahut manohari
ReplyDeleteati sundar haiga evam haiku di shubhkamnaye :)
ReplyDeleteलाजबाब,बेहतरीन हईगा ...!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
वाह ...बेहतरीन
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुती....
ReplyDeleteसुंदर चित्रावली से सजी पोस्ट !
ReplyDeleteशायद पहली बार आपका लिखा हाइगा पढ़ रहा हूँ. अति उत्तम.
ReplyDeleteकल 13/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
शुक्रिया और आभार आपका
Deleteहार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुंदर हाइगा ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र भी पंक्तियाँ भी
ReplyDeleteसुंदर हाइगा
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDelete