Monday, 31 January 2022

टके के तीन


"सैनानी जिसने सेना में जवानों को खिलाये जाने वाले खाने में परसी जा रही पतली दाल का वीडियो वायरल करने पर सेवा मुक्त कर दिया गया, यह समाचार पढ़कर दुःख भी हुआ और सन्तोष भी।" अभी मैं उधेड़बुन में ही था।

कि मित्र रमेश आ गया,-"महेश किस दुविधा में फँसे हो?" आते ही उसने मुझसे कहा।

मैंने समाचार-पत्र उसके आगे बढ़ा दिया और वह उसे पढ़ने लगा। कुछ देर के बाद मुझे लौटाते हुए बोला, "इसमें दुविधा जैसी तो कोई बात नहीं है।"

"क्यों?"

"इसलिए कि जिन सैनिकों के हाथों में देश की सुरक्षा की बागडोर है.., सेना की किसी भी कार्यवाही को वायरल नहीं करना चाहिए और यह सेना के नियमों के विरुद्ध भी है।"

"किन्तु यह तो सैनिकों के साथ नाइंसाफी है...।"

"नहीं! नाइंसाफी नहीं है..., जैसे अपने घर की बातें कभी बाहर नहीं करनी चाहिए...। घर की बातें घर में ही सुलझा लेनी चाहिए। बाहर की हवा भी नहीं लगनी चाहिए। ऐसा ही सेना में होता है... होना ही चाहिए..।"

"हाँ! यह बात तो बिलकुल ठीक है...।"

"देश की सुरक्षा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सदैव है गाँठ में बाँधकर रखना चाहिए...। दाल –पतली है या मोटी इसकी चिन्ता किए बेगैर यह सोचना चाहिए दाल काली ना हो सके।"

10 comments:

  1. ऐसे में कभी-कभी कर्ता की मंशा पर भी शक होने लगता है !

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  2. "नहीं! नाइंसाफी नहीं है..., जैसे अपने घर की बातें कभी बाहर नहीं करनी चाहिए...। घर की बातें घर में ही सुलझा लेनी चाहिए। बाहर की हवा भी नहीं लगनी चाहिए। ऐसा ही सेना में होता है... होना ही चाहिए..।"...सही कहा दी बोलना नहीं।
    सादर

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  3. देश की सुरक्षा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सदैव है गाँठ में बाँधकर रखना चाहिए...। दाल –पतली है या मोटी इसकी चिन्ता किए बेगैर यह सोचना चाहिए दाल काली ना हो सके।"
    बिल्कुल सही कहा आपने

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  4. ऐसी मजबूरी का नाम?

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  5. Bilkul sahi. Har jagah har samay hum bhi apna best nahi de paate.rasoyi mein hum se na jne kitni baar galatiyan hoti hain....cook bhi har din ek sa chchha khana kahan bana paate honge.

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  6. बढियां बहुत सुंदर

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