चित्राधारित लेखन
"लघुकथा वाले पोस्ट पर आपकी टिप्पणी दिखलाई नहीं दे रही है?"
"मैंने बहस से बचने के लिए डिलीट कर दी। मुझे वह लघुकथा अस्वाभाविक एवं अतिरंजित लगी।"
"डिलीट करने का कारण मेरे समझ में आ गया था लेकिन सुनिश्चित होने के लिए आपसे पूछ लिया। वो लेखक हमारे शहर में ही रहते हैं और हमारे गुरु एक हैं। बस फर्क इतना है कि जब मैं नर्सरी का अध्येता तो वे स्नातक होने का दम्भ बटोर रहे थे। लेकिन वे विधा का विनाश करने में जुटे हैं तो...,"
"मेरे सामने लघुकथा, जो ठीक नहीं लग रही थी । मैं लेखक और लेखन के बारे में नहीं जानना चाहता क्योंकि यही बातें हमसे हमारी ईमानदारी डिलीट करवाती हैं । वे कहाँ से सीखे है यह मायने नहीं रखता । मायने रखता है कि वे प्रस्तुत क्या कर रहे हैं । अगर वे काबिल हैं तो फिर गुरु का नाम लेकर लघुकथा का बचाव क्यों कर रहे थे?"
"आज गुरु हैं नहीं तो प्रमाणित कैसे हो पाता..,"
"शायद यह उनके शिष्य को भी समझ में आ गया है..।"
"साहित्य समुन्द्र का जो नदी हो सकता था वो फैक्ट्री से निकलने वाला नाला होकर रह गया शिष्य। गुरु के जीते जी गुरु का अपमान करता ही रहा। अब गुरु का नाम जपकर...।"
ईमानदारी डीलिट वाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteअद्भुत! सटीक प्रहार हृदय तक उतरता।
ReplyDeleteमैं लेखक और लेखन के बारे में नहीं जानना चाहता क्योंकि यही बातें हमसे हमारी ईमानदारी डिलीट करवाती हैं । बहुत सटीक और सार्थक पंक्तियाँ। साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteसटीक प्रहार आदरणीय ।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteऐसा भी होता है?
ReplyDelete