Saturday, 29 January 2022

आज की


 सिल पर पीसते हुए

चटनी बना डाली

 तय किया गया

दूसरों का हद

वो चार लोग

जो विराजमान थे

समाज के भयावह पद।

°°°

एक उम्र तक आते-आते

 समझौता भी खत्म हो जाता है

खुद की आदत

 खुद को ही कमजोर

दिखलाने में अव्वल हो जाती है।

°°°

जब तक मौन रही

सह देती रही

सह देना तो

सहना किसे..?

 शासक होना

किसे नहीं जँचता!



16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 30 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-1-22) को "भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं" (चर्चा अंक 4326)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. भ्रम बने रहना क्या बुरा है ख़ुद के लिए करते चलें जारी शशानादेश

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  4. उव्वाहहहहहहह..
    कित्ते दिन बाद
    एक धारदार रचना
    सादर नमन..

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    Replies
    1. आपको पसन्द आयी
      श्रम सफल हुआ
      असीम शुभकामनाओं के संग सस्नेहाशीष छोटी बहना

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  5. एक उम्र तक आते-आते

    समझौता भी खत्म हो जाता है

    खुद की आदत

    खुद को ही कमजोर

    दिखलाने में अव्वल हो जाती है।

    सही कहा।
    सारगर्भित सृजन।
    सादर

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  6. ज़िन्दगी के अनुभव सहेज लिए हैं ।बेहतरीन ।

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  7. बहुत बहुत सुन्दर

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  8. अजीब विडंबना.. यक्ष प्रश्न

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  9. सुंदर सृजन!
    एक उम्र तक आते-आते
    समझौता भी खत्म हो जाता है
    सत्य सृजन!--ब्रजेंद्रनाथ

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  10. मौन रहना और सहना, अपने को कमजोर दिखाना.... स्त्री ने मानो नियति मान ली है अपनी !

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