सिल पर पीसते हुए
चटनी बना डाली
तय किया गया
दूसरों का हद
वो चार लोग
जो विराजमान थे
समाज के भयावह पद।
°°°
एक उम्र तक आते-आते
समझौता भी खत्म हो जाता है
खुद की आदत
खुद को ही कमजोर
दिखलाने में अव्वल हो जाती है।
°°°
जब तक मौन रही
सह देती रही
सह देना तो
सहना किसे..?
शासक होना
किसे नहीं जँचता!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 30 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार आपका
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-1-22) को "भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं" (चर्चा अंक 4326)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका
Deleteभ्रम बने रहना क्या बुरा है ख़ुद के लिए करते चलें जारी शशानादेश
ReplyDeleteजी 🙏
Deleteउव्वाहहहहहहह..
ReplyDeleteकित्ते दिन बाद
एक धारदार रचना
सादर नमन..
आपको पसन्द आयी
Deleteश्रम सफल हुआ
असीम शुभकामनाओं के संग सस्नेहाशीष छोटी बहना
एक उम्र तक आते-आते
ReplyDeleteसमझौता भी खत्म हो जाता है
खुद की आदत
खुद को ही कमजोर
दिखलाने में अव्वल हो जाती है।
सही कहा।
सारगर्भित सृजन।
सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
Deleteज़िन्दगी के अनुभव सहेज लिए हैं ।बेहतरीन ।
ReplyDelete🙏😍
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअजीब विडंबना.. यक्ष प्रश्न
ReplyDeleteसुंदर सृजन!
ReplyDeleteएक उम्र तक आते-आते
समझौता भी खत्म हो जाता है
सत्य सृजन!--ब्रजेंद्रनाथ
मौन रहना और सहना, अपने को कमजोर दिखाना.... स्त्री ने मानो नियति मान ली है अपनी !
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