"चार सौ एक वाले नहीं रहे..,"
"मतलब?" सुबह-सुबह मेरी आँख खुली ही थी, खबर को समझना नहीं चाह रही थी।"
"मृत्युंजय बाबू! 401 फ्लैट वाले की मुक्ति कल दोपहर में ही हो गयी थी। अभी गार्ड ने बताया।"
"अपने बेटे को छत पर खेलने मत भेजा कीजिये। क्रिकेट के बैट का खट-खट सिर में लगता है।"
"आप ही बताइए कहाँ खेले? कार पार्किंग में खेले तो गाड़ी वाले हल्ला करते हैं। सड़क पर खेले तो जिनकी खिड़की का काँच टूटता है वे शोर करते हैं।"
"अपार्टमेंट में रहने वाले बच्चों को घर में बैठकर खेलना चाहिए।"
"यह ज्ञान आप अपने नाती पोतों को दीजियेगा।"
"पहले बेटे की शादी होने दीजिए।
"सचिव बदल लिया जाए! यह सचिव फेरी वाले को ऊपर नहीं आने देते हैं"
"सचिव का हुक्का पानी बन्द कर दिया जाएगा।"
जब मैं (सचिव की पत्नी) मृत्युंजय बाबू के मुँह में गंगाजल तुलसी डाल रही थी तो फ्लैश बैक से गुजर रही थी। लगभग चार साल पर उन्हें देख रही थी।
मुझ पर नजर पड़ते उनकी पत्नी को मुझे अँकवार में भर ली और जोर से फफक पड़ी, "मैं हार गई मिसेज श्रीवास्तव। मैं हमेशा कहती थी कि मैं पहले जाऊँगी। ये कहते थे पहले जाएँगे। देखिए ये पहले चले जायेंगे।"
"हार-जीत कैसा..! कौन पहले जाएगा कौन पीछे जाएगा यह अपने हाथ में कहाँ। पहले पुरुष चला जाये तो उनके लिए अच्छा। स्त्रियों को समझौता कर जीने में ज्यादा परेशानी नहीं होती।"
मैं दिलासा किसे दे रही थी.. उन्हें या अपने भविष्य को...
घर वापसी पर सवाल किया गया, "मृत्युंजय बाबू की उम्र क्या रही होगी?"
"अपने रहने का आकलन करना है क्या?"
"उनको चार बच्चे हैं चारों आस-पास रहे। और हमदोनो..?"
"'वन फैमली वन चाइल्ड', में यह दिन आना ही था। तब देश हित था सामने...! आगे भी देश हित ही लक्ष्य रहना चाहिए"
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 जनवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आपका
Deleteराष्ट्रभक्ति भी कितनी तरह से की जा सकती है । विचारणीय ।
ReplyDeleteनिःशब्द
ReplyDeleteभावना प्रमुख है. वर्ना भरे-पूरे परिवार के बीच आदमी अकेला है. और एक अकेले को भी पड़ोसियों के बीच परिवार मिल जाता है.
ReplyDeleteसंक्षेप में बहुत कुछ कह गई कहानी.
उद्वेलित करती हुई...
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