"मधुदीप गुप्ता नहीं रहे! लघुकथा जगत में शोक की लहर फैल गयी है। हाहाकार मच गया है। हालांकि लघुकथा विधा के लिए जुनून की हद तक जाकर किए अपने कार्य के लिए, मधुदीप सदैव याद रखे जाएंगे।"
"लगभग बीस लाख अपनी जमापूँजी लघुकथा की पुस्तकों को प्रकाशित करवाने, लघुकथाकारों को पुरुस्कार देने में लगा दिया। अपनी अन्तिम साँस तक लघुकथा के लिए काम करता रहा। मधुदीप पिछले तीन महीने से अस्पताल का चक्कर लगा रहा था क्या तुम उससे भेंट करने गए थे। तुम्हारे घर से उसका घर बस पाँच मिनट की दूरी पर है न?"
"नहीं न जा सका हमारा मतभेद रहा।"
"अरे! जीवन से बड़ा रहा मतभेद? समय रहते बेबाकी पचने योग्य अपना हाज़मा दुरूस्त करवा लेना चाहिए।"
हाँ, मैं जीतना चाहता हूँ / मधुदीप / लघुकथा
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‘आओ, जिन्दगी से कुछ बातें करें !’ हाँ, अनुपम खेर ने एक टीवी विज्ञापन में यही तो कहा था |
वह भी पिछले साठ साल से अपनी जिन्दगी से बातें करता रहा है मगर जिन्दगी ने जैसे उसकी बातें कभी सुनी ही नहीं |
उसने अपने बचपन से बातें की थीं | सफेद कमीज और पतलून पहनकर क्रिकेट का बल्ला घुमाने की बातें मगर जिन्दगी ने उसकी बातें सुनने की बजाय उसके पिता की बातें सुनीं और उसे फुटबाल का खिलाड़ी बना दिया | हासिल रहा शून्य |
बचपन से युवावस्था आने तक वह अपनी जिन्दगी से फुसफुसाहटों में बातें करता रहा | यह जिन्दगी से सपनों की बातें करने का समय था | उसने जिन्दगी से प्राध्यापक बनने के सपने की बात की मगर यहाँ भी जिन्दगी ने उसकी बजाय नियति की बातें सुनी | पिता के अचानक अवसान के कारण वह भारत सरकार में एक अदना-सा लिपिक बनकर रह गया |
उसके बाद अब तक वह जिन्दगी से बतियाने और उसे अपनी सुनाने का भरसक प्रयास करता रहा मगर जिन्दगी ने जिस अन्धी दौड़ में उसे धकेल दिया था उसमें उसे ठहरकर इत्मीनान से बातें करने का मौका ही नहीं मिला | घर,परिवार,बच्चे और उन सबका दायित्व...वह जिन्दगी से कब अपने मन की बात कह सका ! कब अपनी बात उससे मनवा सका ! वह बस हारता ही तो रहा |
आज वह सेवा-निवृत्त हो रहा है | कार्यालय से उसे विदाई की पार्टी दी जा रही है | अभी एक अधिकारी ने उसके सेवाकाल की प्रशंसा करते हुए यह जानने की जिज्ञासा जताई है कि वह आगे क्या करना चाहता है |
“मैं जिन्दगी से खुलकर बातें करना चाहता हूँ | सिर्फ बातें करना ही नहीं चाहता, जिन्दगी से अपनी बातें मनवाना भी चाहता हूँ | हाँ, मैं जीतना चाहता हूँ |” बस, इतना ही कह सका है वह और उसने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए हैं |०००
मधुदीप जी से आपके सौजन्य से अभी हाल ही में पहली बार मिला। उनका हमने साक्षात्कार भी लिया। उन यादों का दीप अभी मंद-मंद अपनी ज्योति का मधु प्रसारित करना शुरू ही किया था कि वह प्रकाश-स्त्रोत सदा के लिए बुझ गया। कैंसर से लड़ते इस महापुरुष का जीवट अदम्य था। अंत समय तक साहित्य साधना की तीव्र लौ उनके अंदर जलती रही। अस्वस्थ दिनों में अपने कुछ विशेष मित्रों की उनके प्रति अनपेक्षित उपेक्षा उन्हें अंदर तक टीसती रही जिसकी चर्चा आपने इस स्तम्भ में प्रकारांतर में की है। ईश्वर उन्हें चिर शांति दे!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 12 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
ईश्वर उन्हें श्री चरणों में स्थान दें।ॐ शांति 🙏
ReplyDeleteमाननीय मधुदीप जी के बारे में लेख्य मंजूषा मंच से ही ज्ञात हुआ। साहित्य प्रेमी होने के बावजूद एक अथक साधक के योगदान से अपरिचित रही इसका खेद है पर लेख्य मंजूषा में उनके साक्षात्कार से ज्ञात हुआ कि वे लघुकथा के लिए कितने समर्पित थे। आपके भावपूर्ण लेख ने आँखें नम कर दी । एक साधक की जिंदगी यूं ही कट गई पर जिन्दगी ने उन्हें खिलखिलाने का मौका ना दिया। दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि। काश जिंदगी उन्हें खुलकर जीने देती ।उनके जाने पर साक़िब लखनवी साहब का एक शेर याद आया
ReplyDeleteज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते
पुनः सादर नमन
🙏🙏😔🙏😔🙏😔🙏
आपका और विश्वमोहन जी का, मधुदीप जी के साथ लाइव देखा लघुकथा लेखन के बारे में जानकारी और उनका समर्पित लेखन के बारे में जानकारी मिली । अचानक इस खबर से बहुत अफसोस हुआ, मैं उनकी लघुकथाएं जरूर पढ़ूंगी । उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏💐💐
ReplyDeleteनमन।
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