अभी राजा विक्रम शव को कंधे पर लादकर कुछ ही क़दम चले थे कि तभी उस शव में मौजूद बेताल ने अपनी पुरानी शर्त को दोहराते हुए राजा विक्रम को यह नयी कथा सुनाई,
देश के विभिन्न राज्यों के अलग-अलग शहरों में लगे पुस्तक मेला, विश्व पुस्तक मेले में विभिन्न मंच सजे थे जिनपर विचारों का आदान प्रदान, पुस्तक लोकार्पण, विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रम हो रहे थे। सत्रों के बाज़ार में सात-आठ गुणा राशियों का जबरदस्त उछाल था। आयोजकों के बल्ले-बल्ले होना तय था। ऐसे आयोजनों के बहाने पाठक तथा लेखक के पैसों से कैसे- कैसे लोगों को उन्नत कर के जबरदस्ती गढ़ रहे हैं। प्रतिस्पर्धी बाजार को बढावा देना हो रहा था। विभिन्न प्रकाशकों के दूकान सजे थे। इस बार दोगुने से कुछ अधिक मूल्य पर दूकान आवंटित हुई थी। जिनके हौसले बुलन्द थे उनके दूकानों के बाहर लेखक - लेखिकाओं और उनके आत्मीयों के संग-साथ में चर्चाओं की गरम-नरम बातें उछल रही थीं..जितने बड़े प्रकाशक हैं उतने लूटने में व्यापारी हैं..। पुराने लेखक किताब बिकने के आधार पर लिखते थे क्या..! नए लेखक लेखन पर श्रम करें तो न पाठक और न क्रेता मिलेंगे..आज वाली बेस्ट सेलर पढ़कर सर के बाल नोच लेने या दीवाल में सर दे मारने का मन किसी का नहीं किया हो तो साझा कर सकते हैं। बेस्ट सेलर का स्याह कालिख का पता कैसे चले..!.. कोई पाठक कितनी पुस्तक खरीद सकता है... और क्यों सब पुस्तक खरीदे...।"
"विचारणीय है, पूछ लूँ कि ऐसा क्या विशेष सृजन हो गया था जो बड़ा - बड़ा अवार्ड मिल गया ?"
"पूछ लो! रोका किसने है... ?"
"चुप रह जाना बेहतर लगा यह सोचकर कि अंत में पता क्या चलेगा ?"
"सच बोलने का हिम्मत होगा ही.."
"जुगाड़ वाले सच बोलेंगे क्या..!"
अच्छा अब आप बताइए राजन इस आयोजन के पीछे जो लोग हैं उनकी विचारधारा साहित्य की नौका को डूबो देने की है क्या ?
शर्त को भूलते हुए राजा विक्रम ने तनिक क्रोधित होते हुए कहा "इस पर कौन बात करेगा? क्योंकि जिनको इसपर बात करनी चाहिए वे लोग वहाँ लार टपकाते और जी हजूर, जी हजूर वाली भूमिका में देखे जा रहे थे!"
"आप भी न राजन! आप चुप रह नहीं सकते और मैं ठहर नहीं सकता !"
क्या है ? अभी भी विकर्म और बेताल उसी खींचतान में लगे हैं? अरे एक ठो छापाखाना खोल लेते ना :)
ReplyDelete😀🙏
Deleteशुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDelete"आप भी न राजन! आप चुप रह नहीं सकते और मैं ठहर नहीं सकता !"
ReplyDeleteबेहतरीन आधुनिक कथा
आभार
सादर वन्दे
वाह!!!
ReplyDeleteविक्रम बेताल के जरिए लाजवाब खाका खोला है आपने...