पत्रकार : "विधा के दिशा निर्देशों के अनुसार से कमजोर लिखी गयी रचना को आपने प्रकाशित क्यों किया?"
उत्तरदायी : "ताकि वैसी रचना नहीं लिखी जा सके•••!"
पत्रकार : "इस बात को नवोदित लेखक और पाठक कैसे समझेंगे, क्या आपको नहीं लगता कि पुस्तक में अलग से एक परिशिष्ट में सूचना होनी चाहिए?
उत्तरदायी : "कमजोर होता क्या है••• जिस रचना की दस बार चर्चा हो, वही बन जाए कालजयी रचना•••! संगत के अपने किस दिन के लिए होते हैं•••!"
पत्रकार : कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन
उम्मीद करता हूँ वक्त का हिसाब ना हो हीन।"
हिसाब होना जरूरी है और उस हिसाब की किताब भी होनी |
ReplyDeleteछोटे से लेख में गूढ़ बात
ReplyDeleteकदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
ReplyDeleteजैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन
गहरी बात और क़रारा व्यंग्य। साधुवाद।
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