[08/04, 8:24 am] : 3 मई को बिटिया का मुंडन कराना है, हरिद्वार में और 13 मई को इसका जन्मदिन है। सब कुछ ही अकेले है भाई का थोड़ा साथ मिलता है।
मुंडन में इसके पिताजी नही हैं, घर से ननद को बुलाने का सोचा था पर बुलाने का मतलब यहाँ 2 महीने रुकवाना जो मेरे लिए ठीक न रहता सो अकेले ही करा लूँगी। अभी बहुत उथल पुथल चल रहा है
[08/04, 8:35 am] विभा : यही तो जीवन का असली रंग है
बिना टेढ़े-मेढ़े तो साँस नहीं चलती
: बढ़िया होगा
रिश्ते दूर ही भले
लेकिन ननद की भूमिका कौन अदा करेगी?
[08/04, 8:38 am] : मेरी दोस्त है वहाँ उसे बुला लूँगी।
इन भूमिकाओं का अस्तित्व न रह गया है माँ, जब इनकी बुआ को इनके लिए संवेदना नही है तो सामाजिक नियम निभाने से कोई फायदा नही है
[08/04, 8:40 am] विभा : तो फिर करवाना ही क्यों?
[08/04, 8:40 am] : 3 की हो जाएगी बिटिया किसी को चिंता न है कि मुंडन कराना है, मैं सोच कर करा रही, इतने दिन इनके इंतज़ार में रही अब मुझे कोई फर्क न पडता कोई रहे न रहे। बस इसके, पेट के बाल उतरवा देना है,इतना ही है।
[08/04, 8:42 am] विभा: तो कहीं भी किया जा सकता है
हरिद्वार जाने-आने में परेशानी और खर्च ज्यादा
जो हरि कहीं भी हों, वही होंगे न हरिद्वार में भी?
[08/04, 8:44 am] : यही मैं भी सोच रही हूँ
[08/04, 9:11 am] विभा : सोच रही हो तो अमल करो
प्रतीक्षा किस बात की•••!
कहीं भी उतरवा लेने से हरिद्वार वाले हरि नाराज होते हैं तो वहीं वाले हरि से पैरवी लगवा लेना आखिर माँ हो मातृ शक्ती को कब आजमाओगी••!"
[08/04, 9:15 am] : जी माँ
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteजो हरि कहीं भी हों, वही होंगे न हरिद्वार में भी?
ReplyDeleteसही कहा... और मातृशक्ति आजमाना !
उत्तम सलाह
🙏🙏
बेहतरीन ..........
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