दरवाजे पर हल्की-हल्की थाप की ध्वनि सुनकर मैंने दरवाजा खोला तो देखा सजा-सँवरा कृष्णा खड़ा था।
"वाह बहुत अच्छे लग रहे हो कृष्णा! आओ, अन्दर आ जाओ !"
"ऑफिस जा रहा हूँ आपको प्रणाम करने के लिए माँ ने कहा है !" कृष्णा की बातें अस्पष्ट होती हैं। कई बार पूछने पर पूरी बात अंदाजा से समझा जा सकता है। नवजात से देख रही हूँ ।
"नवजात रो नहीं रहा है डॉक्टर।"
नर्स के इतना कहते ही हडकंप मच गया। शहर का बेहतरीन नर्सिंग होम, दक्ष चिकिस्तक और जमींदार घराने का पहला नाती और वह बचे नहीं! सड़कों को रौंदने लगी गाड़ियाँ। शहर में बच्चों के जितने सिद्धहस्त चिकित्सक थे, सभी लाये गये। उपचार शुरू हुआ। नवजात की साँसें चलने लगी। वो रोने लगा। सबके चेहरे से भय मिट गया। कुछ दिनों के बाद जज्चा-बच्चा घर आ गये। बच्चे की परवरिश अच्छे से होने लगी। लेकिन बच्चे के बोलने-चलने में परेशानी झलकने लगी। पूरे परिवार पर वज्रपात हो गया। सबकी खुशिओं को ग्रहण लग गया। पुन: चिकित्सकों की पेशी हुई। विभिन्न जाँच के बाद पता चला कि नवजात की साँस वापसी में बच्चे के पूरे शरीर के एक नस में ऑक्सीजन नहीं पहुँच सका था जिसके कारण कृष्णा का शरीर असंतुलित, बोलने में अस्पष्टता आजीवन रहने वाला है। दादी के आँखों का तारा, ननिहाल का दुलारा, माता-पिता के लिए एक जंग/परीक्षा के साल गुजरते रहे। वर्षों बाद पिता की अचानक मौत हो गई। अनुकम्पा पर कृष्णा की नौकरी लग गई।
जीवन की गीता का एक श्लोक यह भी |
ReplyDeleteजी
Deleteवंदन
हृदय स्पर्शी लघु कथा।
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