Friday 20 November 2020

अवसाद का सफाया


"देख रही हो इनके चेहरे पर छायी तृप्ति को? इन सात सालों में आज माया पहली बार रसियाव (गुड़ चावल) बनाई... बहुत अच्छा लगता है जब वह सबके पसन्द का ख्याल रखती है!"
"रसियाव बनाना कौन सी बड़ी बात है ? और यह क्या दीदी तुम भी न माया की छोटी-छोटी बातों को अनोखी स्तब्धता तक पहुँचा देती हो.. , चल्ल, हुह्ह्ह..!,"
"यही तो बात है छुटकी! रसम, सांभर यानी इमली जिसके रग-रग में भरा हो वह मीठा भात पका कर तृप्त करे तो है बड़ी बात..।"
"साउथ इंडियन होकर बिहारी से शादी...,"
"जरा सोच! खुश होकर ना पकाती तो... अरे छोड़ो ... यह बताओ बेटियों की गुणगान करने वाली माताएँ बहू प्रशंसा में इतनी कंजूस क्यों हो जाती हैं? ललिता पवार सी सास वाली भूमिका से बाहर निकलेंगी भी नहीं और आजकल की बहुएँ, आजकल की बहुएँ जपेंगी भी।"
"हमारी प्रशंसा तो कोई नहीं किया। खैर! मैं अब चलती हूँ दीदी। अम्मा जी का भेजवाया छठ का प्रसाद तुम्हें देने आयी थी।"
"जिस दिन हम बहू को बहू भी समझने लगेंगे उस दिन समाज में फैला स्यापा मिटने लगेगा और सच में छठ पूजन की सार्थकता समझ में आने लगेगी।"


 

15 comments:

  1. सटीक और मन को छूने वाली रचना..।रसियाव..हमारे घरों में नयी बहू के आने पर बनाया जाता था ,और वह सात सुहागिनों के साथ ससुराल में पहला भोजन रसियाव का करती थी ।आजकल तो काफ़ी कुछ बदल रहा है..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत अच्छी जानकारी ज‍िज्ञासा जी

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. दिल को छूती लघुकथा।

    ReplyDelete
  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२१-११-२०२०) को 'प्रारब्ध और पुरुषार्थ'(चर्चा अंक- ३८९८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  6. सही कहा जिस दिन हम बहू को बहू भी समझने लगेंगे उस दिन समाज में फैला स्यापा मिटने लगेगा .....
    मन से और खुशी से बनाया भोजन ही परम संतुष्टि एवं तृप्ति देता है....।
    बहुत सुन्दर सीख देती हृदयस्पर्शी लघुकथा।

    ReplyDelete
  7. सुन्दर रचना - - छठ पर्व की आपको शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  8. सार्थक,प्रेरक सृजन।

    ReplyDelete
  9. वास्तविकता से भरी सुंदर रचना

    ReplyDelete
  10. रस‍ियाव के ''रसीले कायदे कानून'' आज पता चले..बहुत खूब

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

नेति नेति —अन्त नहीं है, अन्त नहीं है!

नेति नेति {न इति न इति} एक संस्कृत वाक्य है जिसका अर्थ है 'यह नहीं, यह नहीं' या 'यही नहीं, वही नहीं' या 'अन्त नहीं है, अ...