Wednesday 28 July 2021

प्रत्यापित अनुभव

उम्र के जिस पड़ाव (1960-2021) पर मैं हूँ और अब तक हुए समाज से भेंट के कारण , मुझे तीन पीढ़ियों को बेहद करीब से देखने का मौका मिला। तीन पीढ़ी यानि मेरी दादी की उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता, मेरी माँ की उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता, और मेरी उम्र की महिलाओं में सास बहू का रिश्ता..। अक्सर बिगड़ते रिश्ते और मूल्यह्रास होते सम्बन्ध का आधार बीच की कड़ी यानि माँ के पुत्र और पत्नी के पति में संतुलन ना बना पाने वाला पुरुष होता है।
बिहार हरियाणा राजस्थान जैसे राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों की ही बात नहीं है.. जहाँ आईएएस जैसा शिक्षित प्राणप्रिया से त्रस्त प्राणेश आत्महत्या कर लेते हों। धनाढ्य गृहों में गृहणी से भयभीत सास किसी कोने में आसरा पाने में असमर्थ हो जाती हो..। पत्नी के आत्महत्या कर लेने की धमकी से त्रसित पुत्र आँखेें चुराने में व्यस्त रह जाता हो...। आज के दौर में भी पढ़ा लिखा अशिक्षित मूढ़ अनेकानेक परिवार पाए जा रहे हैं..। हो सकता है महानगरों की तितलियाँ मेरी बातों से सहमत नहीं हों.. ।
किसी ने सच कहा है कि साहित्यकार भविष्यवक्ता होते हैं...। प्रेमचंद की *'गृहनीति'* को मैं तब पढ़ी थी जब मुझे पीढ़ी और बीच की कड़ी की समझ नहीं थी। आज भी सामयिक और सार्थक लेखन पा रही हूँ...।

क्यों केवल माँ की उलाहनों को सुनकर पुतर श्रवण कहलाये उसे पूरे ईमानदारी के साथ नायक की तरह..

बेटा -'ज़ब तुम समझने भी दो। जिस घर में घुड़कियों, गालियों और कटुताओं के सिवा और कुछ न मिले, उसे अपना घर कौन समझे ? घर तो वह है जहाँ स्नेह और प्यार मिले। कोई लड़की डोली से उतरते ही सास को
अपनी माँ नहीं समझ सकती। माँ तभी समझेगी, जब सास पहले उसके साथ माँ का-सा बर्ताव करे, बल्कि अपनी लड़की से ज्यादा प्रिय समझे।'
और
'तुम इस घर को जल्द छोड़नेवाली हो, उसे बहुत दिन रहना है। घर की हानि-लाभ की जितनी चिन्ता उसे हो सकती है, तुम्हें नहीं हो सकती।
समझदारी वाली बात का अनुकरण करना चाहिए

पत्नी के पल्लू को थामे या गले के लॉकेट में नग जड़ा मेहरमौउग/जोरू का गुलाम ना कहलाने के लिए...
पति -'नहीं-नहीं तुमने बिलकुल गलत समझा। अम्माँ के मिजाज में आज मैंने विस्मयकारी अन्तर देखा, बिलकुल अभूतपूर्व। आज वह जैसे अपनी कटुताओं पर लज्जित हो रही थीं। हाँ, प्रत्यक्ष रूप से नहीं, संकेत रूप से। अब तक वह तुमसे इसलिए नाराज रहती थीं कि तुम देर में उठती हो। अब शायद उन्हें यह चिन्ता हो रही है कि कहीं सबेरे उठने से तुम्हें ठण्ड न लग जाय। तुम्हारे लिए पानी गर्म करने को कह रही थीं !
नायक का अनुसरण करना चाहिए ...
कहानी में पढ़ा था कि किसी परिवार में सास-बहू के बीच झगड़े के कारण सदैव अशान्ति फैली रहती थी। एक बार दोनों के बीच की कड़ी का पुरुष किसी काम से दूसरे शहर जाता है और बहुत महीनों तक वापस नहीं लौटता है और ना अपनी ख़ैरियत की कोई खबर भेजता है। जब एक अचानक लौटता है और बिना कोई आहट किये घर के अन्दर की बात सुनने की कोशिश करता है तो उसे सास बहू की मधुर बातें सुनाई देती हैं और उसे लगता है कि उसकी अनुपस्थिति के कारण दोनों के बीच रिश्ते सुधर गए हैं तो वह उनलोगों से मिले बिना वापिस लौट जाता है..! यानि या तो वो सुलझाए या लोप हो जाये...!
कहने का तात्पर्य यह है कि सारी जिम्मेदारी बीच की कड़ी की है। 

कहने का तात्पर्य यह है कि सारी जिम्मेदारी बीच की कड़ी की है। सोने पर सुहागा हो जाये जो गृहधुरी स्वामिनी भार्या

स्त्री :- मुझे सास बनना ही नहीं है। लड़का अपने हाथ-पाँव का हो जाये, ब्याह करे और अपना घर सँभाले। मुझे बहू से क्या सरोकार ?'

पति -'तुम्हें यह अरमान बिलकुल नहीं है कि तुम्हारा लड़का योग्य हो,तुम्हारी बहू लक्ष्मी हो, और दोनों का जीवन सुख से कटे ? 

स्त्री -'क्या मैं माँ नहीं हूँ ?

पति -'माँ और सास में क्या कोई अन्तर है ?'

स्त्री -'उतना ही जितना जमीन और आसमान में है ! माँ प्यार करती है, सास शासन करती है। कितनी ही दयालु, सहनशील सतोगुणी स्त्री हो, सास बनते ही मानो ब्यायी हुई गाय हो जाती है। जिसे पुत्र से जितना ही

ज्यादा प्रेम है, वह बहू पर उतनी ही निर्दयता से शासन करती है। मुझे भी अपने ऊपर विश्वास नहीं है। अधिकार पाकर किसे मद नहीं हो जाता ?मैंने तय कर लिया है, सास बनूँगी ही नहीं। औरत की गुलामी सासों के बल पर कायम है। जिस दिन सासें न रहेंगी, औरत की गुलामी का अन्त हो जायगा।' विचार रखते हुए सहयोग करे...!

22 comments:

  1. सटीक विश्लेषण । बीच की कड़ी यदि समझदार है तो घर घर लगता है वरना बस एक मकान बन के राह जाता है ।
    विभाजी , आज पता चला कि आप मुझे 7 वर्ष छोटी हैं ।😄😄😄

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर प्रणाम
      बिना उम्र जाने भी आपको आदरणीया कहती या दीदी पुकारती रही हूँ दीदी
      हमारे घर में एक महीना दो महीना छोटे यानि एक साल के अन्दर में पाँच-छ ममेरे-फुफेरे-चचेरे भाई-बहन का जन्म है .. कोई किसी को नाम से नहीं बुलाता है।

      Delete
  2. रिश्तें लताओं की तरह ही होती है जिसे पनपने के लिए सहारे में जो मिला उसी को आधार मान लेती है। बीच की कड़ी के साँचे पर आधारित उसकी आकृति होगी।
    अनुभवों के आधार पर आपका सटीक विश्लेषण दी।
    प्रणाम
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. असीम शुभकामनाओं के संग सस्नेहाशीष छुटकी

      Delete
  3. सास, ससुर, बहू, बेटा, पत्नी.... ये सभी ओहदे हैं। हर ओहदे का एक चारित्रिक व्यवहार होता है। जो जिस ओहदे पर होता है, वैसा आचरण करता है। ओहदा बदलते ही आचरण बदल जाता है।

    ReplyDelete
  4. गहन अनुभव की अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  5. सुना पढा बहुत कुछ है महसूस उतना नहीं कर पाया। हो सकता है दिखा नहीं हो।

    ReplyDelete
  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-07-2021को चर्चा – 4,140 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete
  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    ReplyDelete
  8. अरे वाह विभा जी ,मेरा जन्म भी 1960 का ही है । सुंदर और सटीक विश्लेषण ।

    ReplyDelete
  9. रिश्तों की डोर बहुत ही नाजुक होती है इसे जोड़े रखना बहुत ही मेहनत का काम है! रिश्ते बनाना बड़ी बात नहीं है , बल्कि निभाना बहुत बड़ी बात है!
    स्त्री -'उतना ही जितना जमीन और आसमान में है ! माँ प्यार करती है, सास शासन करती है। कितनी ही दयालु, सहनशील सतोगुणी स्त्री हो, सास बनते ही मानो ब्यायी हुई गाय हो जाती है। जिसे पुत्र से जितना ही

    ज्यादा प्रेम है, वह बहू पर उतनी ही निर्दयता से शासन करती है। मुझे भी अपने ऊपर विश्वास नहीं है। अधिकार पाकर किसे मद नहीं हो जाता ?मैंने तय कर लिया है, सास बनूँगी ही नहीं। औरत की गुलामी सासों के बल पर कायम है। जिस दिन सासें न रहेंगी, औरत की गुलामी का अन्त हो जायगा।' विचार रखते हुए सहयोग करे...!
    मैम
    यह धारणा बिल्कुल गलत है , हर रिश्ते की एक अलग पहचान होती है अलग अलग महत्व, अक्सर मेरे मन में सवाल उठता है कि लोग बहू को बेटी और सास को सासू माँ से सिर्फ माँ बनाने की बात क्यों करते हैं क्यों सास बहू का अस्तित्व खत्म करने की बात करते हैं! क्या सास मतलब सिर्फ निर्दयी ही होता है क्या कोई स्त्री अपनी बहू को सास वाला प्यार नहीं दे सकती? क्या सास का प्यार मीठा नहीं होता या फिर बहू अपनी सास को बहू वाला प्यार नहीं दे सकती ? बहू का प्यार भी अच्छा नहीं होता? अगर कोई सास या बहू अपनी सास या बहू बहुत प्रेम करती है तो उसे माँ बेटी के रिश्ते का नाम दे दिया जाता है! सास को सास और बहू को बहू रहने में क्या बुराई है ? रिश्ते कोई बुरे नहीं होते बस अच्छे से निभाना आना चाहिए! हर रिश्ते अपने आप में बहुत खास होता है! माँ बेटी के रिश्ते को भी कलंकित कर चुके हैं कुछ लोग आज के समय में!
    रिश्ते की बारीकियों को अहमियत से रूबरू कराता बेहतरीन लेख👍👍👍👍

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद मनीषा गोस्वामी जी
      सास को सास और बहू को बहू रहने में क्या बुराई है ?
      –कोई बुराई नहीं... मैं तो यह भी कहती हूँ कि सास या बहू, बहू या सास को इन्सान मानते हुए इन्सानियत सा ही व्यवहार कर ले तो अशान्ति नहीं फैलेगी... मैं तो अपनी बहू को एक सहेली समझने का प्रयास करती रही..
      रिश्ते कोई बुरे नहीं होते बस अच्छे से निभाना आना चाहिए! हर रिश्ते अपने आप में बहुत खास होता है! माँ बेटी के रिश्ते को भी कलंकित कर चुके हैं कुछ लोग आज के समय में!
      –सहमत हूँ

      Delete
    2. आप मेरी बात का सही अर्थ समझने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद आदरणीय मैम🙏🙏🙏

      Delete
  10. अनुभव के आधार पर सुंदर विश्लेषण।

    ReplyDelete
  11. अपने अपने अनुभव अपनी अपनी धारणा है बहना,
    ये पहियाँ धूरी पर घूमता है, पर ऊपर नीचे होना इसकी प्रकृति है, वैसे बीच की कड़ी कितनी कितनी बार सामंजस्य के चक्कर में चक्कर घिन्नी बन जाती है।
    संयम और अनुशासन से निभावों तो सास बहु का रिश्ता बहुत प्यारा होता है दो घरों के अनुभव लेकर दोनों बाहर से आती हैं तीसरा उस घर की परम्परा अगर सामंजस्य बैठ जाएं तो नये संसार का निर्माण होता है ।
    आपके अनुभव के आधार पर सार्थक विश्लेषण।

    ReplyDelete
  12. सास-बहू के रिश्ते अलग-अलग परिवेश में भिन्न-भिन्न होते हैं.
    एक साथ मज़दूरी करने वाली सास-बहू कामरेड हो सकती हैं तो उच्च-मध्यवर्गीय सास-बहू एकता कपूर के सीरियल्स की तरह एक-दूसरे के ख़िलाफ़ साज़िश करने वाली हो सकती हैं.
    कहीं सास शोषक और दमनकारी होती है तो कहीं बहू परिवार-उजाडू होती है.
    रिश्तों में सुधार लाने के लिए दोनों को ही कुछ न कुछ बदलना होगा.

    ReplyDelete
  13. आपके द्वारा किया गया पारिवारिक रिश्तों का विश्लेषण सराहनीय है,आज के समय में हर रिश्ते में कुछ तो परिवर्तन हो रहा है, उसी क्रम में सास बहू के रिश्ते में भी काफी बदलाव आ रहा है,परंतु अभी आम नहीं है । सार्थक आलेख।

    ReplyDelete
  14. सही कहा बीच की कड़ी बेटाऔर पति का किरदार किस तरह निभाता है वैसा ही असर पड़ता है सास बहु के रिश्ते पर...।
    परन्तु मेरे ख्याल से सारा खेल अपेक्षाओं का है सास बेटे बहू से कितनी अपेक्षा रखती है और वही बहू भी पति और सास से ...।आपसी समझबूझ हो तो ऐसी स्थिति नहीं आती...रिश्तों पर शानदार विश्लेषण।

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

अनुभव के क्षण : हाइकु —

मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच {म ग स म -गैर सरकारी संगठन /अन्तरराष्ट्रीय संस्था के} द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव (५ मार्च स...