Monday, 22 May 2023

अमर धन

"उगता नहीं तपा, तो डूबता क्या तपेगा! अपने युवराज को समझाओ पुत्र तुम्हारे कार्यालय जाने के बाद दिनभर उनके दरवाजे, खटिया पर पड़ा रहता है जिनके बाप-दादा जी हजूरी करते रहे। किसी घर का बड़ा बेटा चोरों का सरदार है। किसी घर की औरत डायन है,"

"जी उससे बात करता हूँ।"

"उसे समझाना पंक भाल पर नहीं लगाया जा सकता।"

"कहाँ खो गये पापा?" 

"अतीत में! तुम्हारे देह पर वकील का कोट और तुम्हारे मित्र की वर्दी तथा तुम्हारे स्वागत में आस-पास के कई गाँवों की उमड़ी भीड़ को देखकर लगा, पंक में पद्म खिलते हैं।"

"फूलों की गन्ध क्यारी की मिट्टी से आती ही है।"

5 comments:

  1. और कांटों को कौन सा मिट्टी में रहना है |

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  2. कम शब्दों में बहुत कुछ कह गई लघुकथा!

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  3. अच्छी कहानी

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  4. बहुत बढ़िया

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  5. पिता के अनुभव और बेटे की समझ, दोनों अपने-अपने तरीके से ज़िंदगी को पकड़ते हैं। पापा अपने अतीत से सीख निकालते हैं, और बेटा बड़ी ही सहजता से बताता है कि अच्छे फूल वहीं खिलते हैं जहाँ मिट्टी ने कड़वाहट भी देखी हो।

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