Tuesday 22 January 2013

सफ़र , एक आजाद बच्ची की , कैद से स्वच्छंद जिंदगी


एक छोटी सी बच्ची , देर रात तक अपने ताऊ ,बड़े चाचा ,छोटे चाचा ,फूफा ,पापा के (काम से बाहर गए के) लौटने का इन्तजार करती .... जब सब घर आते और उस बच्ची को जगा देखते , तो , सबके चेहरे से थकान जैसे मिट सी जाती और उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती .... जब वे सब खाना खाने बैठते तो वो बच्ची दौड़-दौड़ कर सबकी थाली-पानी लगाती .. रोटियाँ पहुँचाती ....
संयुक्त परिवार था .... लेकिन सबकी पत्नियाँ (ताई , बड़ी चाची , छोटी चाची और बुआ) गाँव में रहतीं और शहर में उस बच्ची की माँ और सबके साथ , सबके मिला कर 22 बच्चे .... यानि बड़े-छोटे सबको जोड़ कर 28 व्यक्ति का परिवार .... सुबह से शाम तक चहल-पहल रौनक लगा रहता .... संयुक्त परिवार था तो कुछ खट-पट होती होगी .... लेकिन उस बच्ची को सभी बहुत प्यार करते .... सबकी वो दुलारी थी .... केवल उसका जन्मदिन बहुत धूम-धाम से मनता .... खाने-पीने ,पहनने-ओढ़ने में कोई रोक-टोक उसे नहीं मिला ....
आजाद पक्षी की तरह चहकती वो बड़ी हुई और उसकी शादी एकल परिवार में हुई .... जहाँ पर्दा भी था ...... उसे घर से बाहर के चौखट तक जाने की इजाजत नहीं थी .... उसके बोलने - हंसने पर ,खाने-पहनने पर रोज टीका - टिपण्णी होती .... एक दिन वो अपने सोने के कमरे में बैठी थी ,गर्मी का दिन था तो कमरे की खिड़की खुली रखी , बाहर सड़क से उसके ससुर जी को वो पलंग पर बैठी नज़र आई तो वे घर में आये और खिड़की के पर्दे में जगह-जगह काँटी ठोक दिए ताकि फिर बाहर से कोई उनकी बहु को देख ना सके ....
एक दिन घर में उसके अलावे केवल एक छोटा नौकर था ,घर के बाकी सदस्य कहीं घुमने गए थे ...... उसे बाहर से किसी औरत की आवाज सुनाई दी ,और नौकर बाहर से ही आता दिखा , तो वो नौकर से पुछी :- बाहर कौन है .... नौकर बोला :- आपकी माँ ......
वो बाहर झांक कर देखी तो फटेहाल में एक भिखमंगी खड़ी दिखाई दी .... नौकर की बात सुनने पर उसे बहुत गुस्सा आया ,लेकिन वो नौकर को डांट नहीं सकती थी .... सास के घर आने पर ,उनसे वो इस उम्मीद में बात की कि शायद वे डांटें ..... लेकिन सब हंस कर रह गए ... उसे बहुत बुरा लगा ...... वो नौकर से बात करना छोड़ दी और काम लेना भी ..... लेकिन ये बात घर में किसी को पसंद नहीं आया ........ एक दिन उसके पापा को बुलवा कर ,पापा के साथ उसकी की भी बहुत बेइज्जत की गई और घर से निकल जाने का आदेश मिला ....... परन्तु ,उसके पापा ,उसके सास-ससुर से हाँथ जोड़ ,पैर पकड़ कर माफ़ी मांग लिए और बात को संभाल लेने की सीख बेटी को दे कर चले गए ....
अब उसकी सास को हथियार मिल गया ,कोई छोटी-बड़ी बात होती ,किसी तरह की कोई घटना होती , उसके बाप-भाई को बुलवा लेती और दिल खोल कर बेइज्जत करती और उसका मनोबल तोड़ने का  पूरा कोशिश करती .... वो चाह कर भी किसी बात , कोई अन्याय का विरोध नहीं करती ... उसे अपने मैके के लोगों पर  गुस्सा आता , कि वे उसकी सास के बुलाने पर आ क्यूँ जाते हैं , उन्हें मना भी करती , तब भी वे आ जाते ,शायद उन्हें डर हो , कि वे नहीं जायेगें तो उनकी बेटी को वापस पहुँचा दे .... ब्याहता बेटी को कौन अपने घर में बोझ बना कर रखना चाहेगा ...... आसान था आकर माफी मांगना और बेटी को नरक में जलने के लिए छोड़ना .... ये सिलसिला या यूँ कहें ,ये नाटक हर महीने चला शादी से 6छ्ह साल तक ....
***********************************************************
रिश्ता बनाने वाले , ये तूने सबको क्या दिया
एक ओर  कुआँ , दूजी ओर खाई खोद दिया
एक  श्रवण को अंधा , कान से कच्चा बना दिया
माता कहती दिन को रात , तो रात कह दिया
माता , सूरज को कहती चाँद , तो चाँद कह दिया
श्रवण की हुई नहीं थी शादी , क्या तूने उसे बता दिया 
श्रवण जब मारा गया , तब उसके माँ-बाप ने श्राप दिया  
खुद माँ-बाप की जिन्दगी कैसे कटी नहीं सुना दिया
खुद माँ-बाप जी लिया , बहू की जिन्दगी नर्क बना दिया !!
************************************************************
फिर वो जिद पर अड़ कर पति के पास नौकरी पर आ गई ....
नौकरी पर पति के मर्जी के खिलाफ रह रही थी तो मार खाना भी शामिल हो गया .... हालात कैसे भी रहे ,लेकिन वो कभी यह नहीं सोची कि वो तलाक ले ले और अपनी जिंदगी अकेले जिए .... समाज और समाज के नियम-कानून , पति की छोड़ी औरत का क्या हाल होता है , उससे वो अनजान नहीं थी ....  और तलाक़ के बाद उसकी जिंदगी और मुश्किलों से घिर जाती .... ऐसी बात भी नहीं थी कि उसमें अकेले जीने की हिम्मत और काबिलियत की कोई कमी थी .... लेकिन वो हारने वालों में से नहीं थी ..... लड़ कर जितने वालों में से थी ....
जब वो एक परिवार से लड़ कर अपनी गरिमा की रक्षा नहीं कर पाती तो दहलीज़ लांघने के बाद हज़ारों नर-भक्षियों से अपनी अस्मिता की रक्षा करनी पड़ती तो वो कैसे करेगी .... रोज मरमर कर जीने की हिम्मत वो कहाँ से लाती और वो अपने पति को छुटकारा दे , उनकी जिंदगी आसान नहीं बनाना चाहती थी .... मर्दों का क्या , तलाक हुआ और उनकी दूसरी शादी हुई और एक लड़की बली-बेदी पर चढ़ी .... समाज तो पति से अलग हुई मादा को न जीने देती है और ना मरने .... उसे बस इन्तजार रहा अपने बेटे के बड़े होने का ....
बेटे के बड़े होते ही , वो सब ठीक करती चली गई .... पहले विरोध की अपने भाई-बाप के बुलाने का , फिर ,अपने ऊपर उठने वाले हांथो का .... एक दिन में नहीं हुआ , उसमें वर्षो लगे .... लेकिन हिम्मत रखी और आवाज़ उठाती रही .... आज अपने पति के साथ रहते हुये भी , वो स्वच्छंद जिंदगी जी रही है .......... !!
इन बातों को बताने का मक़सद यही है कि अपने हालातों को बदलने का जज्बा हर इंसानों में होनी चाहिए ...... जब एक परिवार की स्थति में बदलाव ला सकेंगे , तभी तो समाज बदलेगा और जब समाज बदलेगा तो देश की स्थिति तब तो सुधरेगी ...........

6 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  2. सच है ..बदलना जरुरी है.बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  3. sahi kaha didi....seekh aur sahas dene wali prastuti

    ReplyDelete
  4. प्रेरक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  5. सहमत हूँ......सारे सामाजिक बदलाव आपस में जुड़े हुए हैं...शुरुआत हमें ही करनी होगी......

    ReplyDelete
  6. कितनी कठिन रही होगी उसकी पल-पल की ज़िंदगी. प्रेरक रचना, शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

शिकस्त की शिकस्तगी

“नभ की उदासी काले मेघ में झलकता है ताई जी! आपको मनु की सूरत देखकर उसके दर्द का पता नहीं चल रहा है?” “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो, मैं माँ होकर अ...