Sunday 13 July 2014

सावन



कोई शब्द मेरे नहीं हैं ..... मुझे अच्छे लगते हैं ..... बस संजो लेती हूँ 
किसी को लगता है कि चोरी हो गई है ..... 
तो .... खर्च नहीं हुए हैं ...... सबके सामने है .... 
वो अपने शब्द यहाँ से ले जा सकते हैं .... 




वृक्ष हैं जीते
पत्ते से साँस लेते
वंश पत्ते भी।

खा के झकोरा 
साखें गुत्थम गुत्था
पत्ते छिटके।

मूक है बैन
रहस्य रही बातें
बोल ले नैन।

भय से पीला
सूर्य-तल्खी है झेले
है घास पीला।

सुख सम्बल
छोड़ मेघ कोठरी
बरस बूंदे।

हवा किलोल
बादल फुटबॉल
जन बेहाल।

पथ गुम है
छिपे रत्नों के पोत
मेघो के ओट।

सांसे किलोल
जीव है फुटबॉल
उठा पटक।

स्वप्न किलोल
मंजिल फुटबॉल
रास्ते अनन्त।

सावन आई
दिगंचल संवरा
बहार छाई।

जग है प्यासा
सावन आ मिटाए
नीर पिपासा।

पेड़ है नफ़ा/सफ़ा
बादलें करे जफा
इंसा से खफ़ा।

भू स्तन सूखा
स्रष्टा का है संताप
है जीव भूखा।

उग हर्षाते
मशरूम से स्वप्न
ऋतु बरसे



जिन्दगी जैसी 
आवा जाही रहती
है बूंदें रत्न
मेघ से भरे नदी {मेघ उडती नदी}
नदी से बने मेघ {नदी तैरता मेघ}


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11 comments:

  1. बहुत ही सुंदर हाइकु , फोटो में रचना व फ़ोटो दोनों बहुत आनंदित , धन्यवाद !
    सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - १४ . ७ . २०१४ को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !

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    Replies
    1. स्नेहाशीष इस आभार के लिए .... बहुत बहुत धन्यवाद आपका ...
      God ब्लेस्स you ...

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  2. बढ़िया प्रस्तुति

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  3. जग है प्यासा
    सावन आ मिटाए
    नीर पिपासा।

    Bahut Sunder....

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  4. सावन के इतने रूप आपकी छोटी छोटी हायकू में दिख रहा है!

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  5. सारे हाइकु अच्छे लगे.

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  6. बहुत ही सुंदर लिखा है , आपने :)

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  7. ह्रदय स्पर्शी रचना है सुन्दर प्रकर्ति वर्णन है !

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