खुद की अंग्रेजी की गाड़ी राम भरोसे खींच जाती थी। लेकिन दूसरों का बोलना चुम्बकीय (अरूण/माया/महबूब फर्राटे से बोलते हैं तो सम्मोहित होती हूँ पर चुप्प ही रहती हूँ) असर करता था।
बिहार का पड़ोसी देश नेपाल होने से विदेश यात्रा का सुख बचपन से मिलता रहा। लेकिन सात समुन्द्रों को पार कर विदेश यात्रा की अलग बात होती होगी। कल्पना करना जारी रहा। विदेश में रहने वाले भारतीय भारत के मुद्दों पर बात करते तो उनका सम्मान बहुत रहता।
सारे सुख में रहकर दुख की बात करना कैसा लगता है अब अनुभव कर रही हूँ... जाके फटे ना बिवाई...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 26 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार छोटी बहना
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-01-2020) को 'धुएँ के बादल' (चर्चा अंक- 3593) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
हार्दिक आभार भाई
Deleteसारे सुख में रहकर दुख की बात करना कैसा लगता है अब अनुभव कर रही हूँ... जाके फटे ना बिवाई...
ReplyDeleteबहुत सटीक...
वाह!!!
चंद शब्दों में बहुत बड़ी सिख ,सादर नमस्कार दी
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